Total Pageviews

Friday, April 30, 2021

कोरोना काल की मान्यताये और मिथक

कोरोना काल ने कई मिथकों को तोड़ा है । कई को जोड़ा है । कई मान्यताये ध्वस्त हुई । कितने ही सिद्धान्त खंडित हुए । कितने ही मंडित हुए  है। कोरोना काल के पूर्व उस व्यक्ति को सर्वाधिक सफल माना जाता था । जो लोगो से मिलता जुलता हो , व्यवहार कुशल हो । अंतर्मुखी न हो । समूह में रहने का अभ्यस्त है , जिसके कई मित्र हो ।  परन्तु कोरोना ने उक्त सभी धारणाओं को ध्वस्त किया है । कोरोना ने हमे यह बताया है कि जीवन मे सफलता के साथ साथ स्वस्थ रह कर जीवन जीना भी जरूरी है । मात्र व्यवहार कुशलता काम नही आती है व्यक्ति को एकांत में रहने का भी अभ्यास भी होना आवश्यक है ।  कोरोना से बचाव का मूल मंत्र सोशल  डिस्टेंसिग बन चुका है । आत्मीयता दर्शाने के तरीकों में कई प्रकार के बदलाव आये है 
           व्यक्ति कितना ही धनी हो उसका कोई महत्व नही है व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रहना जरूरी है । कोरोना ने रोग प्रतिरोधक क्षमता को नवीन आयाम दिये है । वर्तमान में इस महामारी ने कई बलवान और शक्तिशाली लोगो को भी नही छोड़ा है वही गरीब और अमीरी के भेद को भी समाप्त किया है । जहाँ किसी जमाने मे कुछ लोग हॉस्पिटल जाना पसन्द  नही करते थे, परन्तु आजकल हर व्यक्ति  हॉस्पिटल में  और  बेड वेंटिलेटर की तलाश कर रहा है । 
           वैज्ञानिकों का यह मत है कि एक वृक्ष कम से कम 200 पौंड ऑक्सिजन  दिन भर में देता है । जिसके परिसर में जितने अधिक वृक्ष है वह उतना ही प्राणवान है यह मान्यता बलवती हुई है कि बलवान और धनवान होने की अपेक्षा व्यक्ति को प्राणवान होना जरूरी है  । किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में एक दिन में वृध्दि नही हो सकती है । यह दीर्घकालिक और सतत प्रक्रिया है जो नियमित जीवन आहार विहार और समुचित व्यायाम से ही सम्भव है ।
                   जिन लोगो को किसी जमाने मे यह कहते हुए सुना जा सकता था कि पेड़ो की छाया के कारण उन्हें सूरज की धूप नही मिलती , पेड़ के पत्ते गिरने से घर आँगन में कचरा बहुत होता है । पेड़ की डालियो पर पक्षियों के बैठने से उनकी बीट गिरती है जिससे उन्हें दुर्गंध अनुभव होता है । फलदार वृक्षो से आकर्षित होकर आए दिन बंदर आते रहते है । उन्हें कोरोना से संक्रमित होने के फलस्वरूप शरीर मे  ऑक्सिजन के अल्प स्तर की समस्या से जूझते हुए देखा जा सकता है ।  अब उन्हें याद आती है वे पेड़ की घनी डालिया । शीतल छाया , उड़ते हुए खगदल और उनके घोसले । यह कोरोना काल  का सकारात्मक पक्ष ही है । ऐसे लोग किसी भी कीमत पर ऑक्सिजन के सिलेण्डर क्रय करने को तैयार बैठे है । 
         वे लोग जो किसी व्यक्ति की यह कह कर मजाक उड़ाते थे कि वह व्यक्ति अंर्तमुखी प्रवृत्ति का है । अव्यवहारिक है । स्वयं में डूबा रहता है । अत्यधिक धार्मिक है , किताबी कीड़ा है , दार्शनिक है , स्वयम को बहुत बड़ा कलाकार या साहित्यकार समझता है, अप्रासंगिक विषयों पर विचार करता रहता है । समाज से कटा रहता है । आज उस उस व्यक्ति की उन सब बुराईयो में उन्हें अच्छाईयां दिखाई देती है और सोचते है कि काश वे ऐसा बन पाते तो वे वे कोरोना काल मे समुचित शारीरिक और मानसिक प्रतिरोधक क्षमता के साथ महामारी से मुकाबला कर पाते 
                 कोरोनाकाल के पूर्व एक यह भी मान्यता थी कि  हम तो बूढ़े हो चुके । हमने हमारी जिंदगी जी ली है अब नये युवा लोगो को देखना कि वे क्या कर सकते है । कोरोना ने इस धारणा को ध्वस्त कर सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों को अपनी आंतरिक और बाहरी  क्षमताओं का परिचय देना का मौका दिया है  जैसे जैसे कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है । व्यक्ति कम आयु हो या या अधिक का अपने स्वास्थ्य की चिंता प्रत्येक व्यक्ति को होने लगी है आयु वर्ग वाले लोगो ने यह कहना शुरू कर दिया है कि हमने तो हमारा जीवन जी लिया तुम अपनी चिन्ता करो । ऐसी स्थिति में युवा लोगो ने भी यह जबाब देने लगे कि 

1 comment:

  1. कोरोना काल के बाद शायद मनुष्य के व्यहवार में पर्यावरण को लेके कुछ सुधार आये। इस लेख को पढ़ने के बाद क्या क्या गलतिया हुई है मनुष्यो द्वारा ओर क्या क्या नही करना चाहिए ये समझ आया है। आपके द्वारा लिखित लेख युवा जानो के लिए प्रेरणा का काम करेगी। बहूत अच्छा लेख।

    ReplyDelete