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Monday, March 5, 2012

भगवान् पशुपतिनाथ

भगवान् पशुपतिनाथ जो शिवजी का स्वरुप है 
जिनकी विश्व में दो स्थानों पर प्रतिमाए विद्यमान है 
प्रथम प्रतिमा भारत के मध्यप्रदेश प्रान्त में मंदसौर जिसका प्राचीन नाम दशपुर तथा यशोधर्मन नगर था में है,
 दूसरी प्रतिमा नेपाल देश के काठमांडू में  विद्यमान हैं
 भगवान् शिवजी के कई रूप हैं 
तो फिर पशुपतिनाथ के रूप में भगवान शिव के अवतरित होने की आवश्यकता क्यों हुई,
 पशुपतिनाथ जिसका संधि विच्छेद करने पर पशु + पति + नाथ होता हैं  
अर्थात थलचर, नभचर, उभयचर में रमण करने वाले प्राणियों के पालन करने वालों के नाथ अर्थात ईश्वर होता हैं 
भगवान् पशुपतिनाथ की आकार  की दृष्टि से वृहत प्रतिमा मंदसौर में विद्यमान प्रतिमा हैं 
जिस पर अष्टमुख मानवीय भाव भंगिमाओ के अनुसार विद्यमान हैं 
उदाहरणार्थ हास्य, करुण, क्रोध, आनंद इत्यादि हैं के रूप में मुखरित होते हैं,
 भगवान् पशुपतिनाथ की आराधना करने की क्यों आवश्यकता है 
इस सम्बन्ध में यह कहना उचित होगा की भगवान् पशुपतिनाथ सभी प्रकार के मानसिक, सांसारिक बन्धनों से मनुष्य को उसी प्रकार से मुक्त करते हैं
 जिस प्रकार से वे पशुपतिनाथ के रूप में पशु-पक्षियों को मानव रचित कृत्रिम बंधन अर्थात जानवरों को रस्सीनुमा एवं पिंजरों के बंधन से मुक्त करने में समर्थ होते हैं, 
पशुपतिनाथ मानव हो चाहे प्राणी सभी प्रकार के बन्धनों से उन्मुक्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं 
यह उल्लेखनीय हैं के जब तक आत्मा सांसारिक बन्धनों से मुक्त नहीं हो जाती 
तब तक आत्मा परमात्मा के निकट या उनमें विलीन नहीं हो सकती हैं 
इसलिए इष्ट की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को पारिवारिक, सामाजिक, मानसिक बन्धनों से मुक्त होना आवश्यक हैं 
संसार में रहकर व्यक्ति सुख-दुःख में हँसता है, रोता है, दुखी होता है प्रसन्न होता है,
 भगवान् पशुपतिनाथ की अष्टमुख मुद्राएं यह सन्देश देती है की सांसारिक बन्धनों से मुक्ति प्राप्त करनी हो तो सभी प्रकार के मानवीय भावनाओं पर विजय प्राप्त कर, साधनारत रहो इसी से इष्ट की प्राप्ति संभव है, 
    महाभारतकाल में वीर अर्जुन को भगवान् शिव द्वारा पशुपतास्त्र प्रसन्न होकर दिया गया था 
पशुपतास्त्र के बल पर वीर अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में कौरवदल पर विजय प्राप्त की थी 
इसका तात्पर्य यह है की वीर अर्जुन ने युद्ध क्षेत्र में उक्त अस्त्र के माध्यम से अपनी मानवीय भावनाओं पर नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयास किया था 
तथा विपक्षियों का संहार कर राग-द्वेष की भावना से मुक्त होकर उन्हें सांसारिक बन्धनों से मुक्त किया था 
इसी तथ्य को भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा गीता में उपदेश की भाषा में वीर अर्जुन का ही नहीं वरन समस्त संसार का मार्गदर्शन प्रदान किया है
भगवान्  पशुपतिनाथ पर्यावरण के देव हैं, स्वभाव के अनुरूप वे पशु-पक्षियों को स्वाभाविक एवं स्वछन्द, उन्मुक्त रूप से विचरण  करने हेतु उन्हें बंधनमुक्त करने के पक्षधर हैं  परिणामस्वरूप प्रकृति मैं खाद्यश्रृंखला बने रहने से पर्यावरण संतुलन बना रहता हैं

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