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Monday, December 17, 2012

राज धर्म,और राम राज्य


राज धर्म, राम राज्य कितने आकर्षक और कर्णप्रिय शब्द है
परन्तु क्या राज धर्म का पालन इतना आसान है
सर्व प्रथम राज धर्म किसे कहते है
इस विषय को जानना हो तो
रामायण में श्रीराम के अनुज भरत
और उनकी प्रशासन प्रणाली की और दृष्टिपात करना होगा
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वनवास गमन के पश्चात
उनके अनुज भरत द्वारा अयोध्या में राम राज्य की घोषणा की गई थी
स्वयं राज सिंहासन पर आसीन न होकर
श्रीराम को की चरण पादुका को सिंहासन पर स्थान दिया गया
स्वयं तपस्वी वेश में नगर के बाहर झोपड़ी बना कर रहने लगे
झोपड़ी से ही भरत प्रशासन चलाते थे
जिससे उनको आम आदमी की पीड़ा की अनुभूति होती थी
सिंहासन पर स्वयं आरूढ़ न होकर
श्रीराम की चरण पादुका रखे जाने से
उन्हें सत्ता का अहंकार नहीं रहता था
तथा सत्ता और राजसी वैभव से कोई लगाव नहीं था
वे तो स्वयम को सत्ता न समझ कर
परम सत्ता श्रीराम के प्रतिनिधि समझते थे
अर्थात वे अयोध्या राज्य को भगवान श्रीराम की अनुपस्थिति में
उनकी ही धरोहर समझ कर स्वयम को उस धरोहर का रखवाला
अर्थात न्यासी मानते थे सत्ता के प्रति यह न्यासी भाव ही
भरत को महात्मा भरत बनाता है
न्यासी भाव ही भरत की राज्याधिकारी रहते हुए महान सन्यासी बनाता
वर्तमान में क्या हमारे सत्ताधीश राज धर्म का पालन कर रहे है
महात्मा भरत की राम राज्य की भावना से देखे तो
बिलकुल नहीं
जबकि सभी लोग राज धर्म और राम राज्य की बाते करते है
परन्तु सत्ता के प्रति वह न्यासी भाव कहा है
इसके विपरीत सत्ता के प्रति भूख दिखाई देती है

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