श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों भगवान विष्णु के अवतार थे
श्रीराम को भगवान विष्णु के अंशावतार
तथा श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का पूर्णावतार माना जाता है
परन्तु दोनों में महत्वपूर्ण भेद है
जहा श्रीराम ने जीवन भर यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है
कि वे ईश्वर नहीं एक सामान्य मानव है
वही श्रीकृष्ण ने यह प्रमा णित करने का प्रयास किया
कि वे सामान्य मनुष्य नहीं ईश्वर है
कि वे सामान्य मनुष्य नहीं ईश्वर है
इस हेतु उन्होंने बचपन से लगा कर कई प्रकार की लीलाये रची
श्रीकृष्ण का ध्यान और दर्शन जहा व्यक्ति में
आत्म विश्वास का भाव पैदा करता है
जीवन में प्रेम का उद्भव और उल्लास का भाव लाता है
वही श्रीराम के दर्शन से अहंकार का नाश होता है
ऐश्वर्य से विरक्ति हो जाती है
अभावो में रहने का अभ्यास होता है
जीवन की कठिन परिस्थितियों में दोनों के व्यक्तित्व
हमारा मार्ग दर्शन करते है
जब व्यक्ति के जीवन में अहंकार उत्पन्न हो जाए
भोग ऐश्वर्य के प्रति आसक्ति होने लगे
पाखण्ड और प्रदर्शन की और मन उन्मुख हो जाए
तो श्रीराम का ध्यान दर्शन श्रेष्ठ है
जब व्यक्ति के मन में हताशा विषाद और घृणा की
भावना पैर जमाने लगे
मानसिक रूप से व्यक्ति दरिद्र होने लगे
किंकर्तव्य विमूढ़ मन स्थिति हो तो
श्री कृष्ण के दर्शन और ध्यान करना चाहिए
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