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Thursday, December 22, 2011

सहिष्णुता सृजन क्षमता एवम शिव

शिव जी को यद्यपि  प्रलय का देवता माना जाता है
अधिकतर लोग शिव जी को लोक कल्याण का देवता भी मानते है
मेरी द्रष्टि मे शिव जी ऐसे देव है जो घोर विषम विपरित परिस्थितियो मे
जीवन कैसे जिया जावे इसे दर्शाते है
हिम से घिरे घनघोर वन मे ऊँचे -ऊँचे पर्वतो बीच कन्दरा
मे हिंसक जंगली पशुओ के बीच निवासरत होना यही संदेश तो देता है
सहन शक्ति कि इतनी क्षमता की समुद्र मंथन से निकले हलाहल को पीने के पश्चात नीलकंठ हो जाना
और उसी कंठ मे विषैले सर्पों को गले मे धारण कर लेना विचित्र लगता है
किन्तु वर्तमान मे भी जिस व्यक्ति की जितनी अधिक दर्द दुख कठिनाईया सहन करने की क्षमता होगी
वह प्रतिकुल परिस्थितियो मे उतना ही अपना अस्तित्व बचा कर जीवन के समस्त समाधान प्राप्त कर सकता है
व्यक्ति को जीवन मे कुछ निर्माण करना है तो उसे शिव जी सहन क्षमता विकसित करना होगी
इतनी विपरित परिस्थितियो के बीच शिव का ध्यान मग्न होना तथा
मस्तक पर गंगा एवम चंद्रमा धारण कर लेना यह दर्शाता है कि विपरित परिस्थितयो मे व्यक्ति को धैर्य न खोकर
पूरी एकाग्रता से चंद्रमा सी शीतल बुध्दि धारण कर कर्म रत रहना चाहिये
तथा बडी -बडी जिम्मेदारी को उठाने को तत्पर रहना चाहिये
भले ही विषैले सर्पो के समान दुष्ट जनों से व्यक्ति घिरा हो
ऐसा करने से व्यक्ति के चिंतन से वह स्रजन की धारा प्रवाहित होगी
जैसे शिव जी के मस्तक से स्रजन की गंगा प्रवाहित हुई
ऐसी स्रजन की गंगा आस पास के वातावरण को
उसी प्रकार सम्रध्द करेगी जैसे पुण्य सलिला गंगा ने
धरा मे अपना निर्मल जल सिंच कर उसे उर्वर बना कर
मानवता को सम्रध्द किया
तात्पर्य यह है व्यक्ति मे विपरित परिस्थितियों मे कार्य करने कि जितनी क्षमता होगी
वह उतना ही विशाल लक्ष्य सामने रखेगा ,उतनी ही महती जिम्मेदारिया निभाने मे समर्थ होगा
और  उसी अनुपात मे महान कार्य कर सकेगा