नवरात्रि के अवसर पर व्रत उपवास कर
जप तप कर शक्ति पूजा करने का विधान है
प्राचीनकाल में यह पौराणिक कथा प्रचलित है
की वृत्तासुर नामक राक्षस जिसने भारी तप कर अलौकिक सिध्दिया प्राप्त की थी
तथा अपनी तामसिक प्रवृत्तियों के कारण तीनो लोक में अत्याचार करने लगा था
सभी देवता वृत्तासुर के समक्ष विवश थे
इसलिए सभी देवता दधिची ऋषि के पास उनकी तपो बल से निर्मित अस्थियो की याचना करने पहुचे
दधिची ऋषि की अस्थियो द्वारा निर्मित वज्र से वृत्तासुर का वध हुआ उक्त कथा का तार्किक आशय यह है
वृत्ति +असुर अर्थात वृत्तियों के असुर को पराजित करने के लिए सर्वप्रथम
अपनी इन्द्रियों को दधिची रूपी तपोबल से निर्मित वज्र से पराजित करना होगा
तभी अपनी आसुरी अर्थात तामसिक प्रवृत्तियों पा विजय प्राप्त कर सकते
नवरात्रि साधना में यह देखने आता है
लोग काम क्रोध लोभ इत्यादि तामसिक प्रवृत्तियों पर इन्द्रियों पर वज्र के तपोबल से नियंत्रण करने के बजाय
मन में एक अनावश्यक अहम भाव लेकर शक्ति की उपासना करते है जिससे मन में सात्विक प्रवृत्तियों का इन्द्र का जाग्रत होने के स्थान पर तामसिक वृत्तियों के वृत्तासुर उत्पन्न होता है
क्योकि वृत्तासुर की उत्पत्ति भी तो शुक्राचार्य के तप से ही तो हुई थी किन्तु उस तप में तमो भाव का आधिक्य था इसलिये
वास्तविक शक्ति तो सात्विक शक्ति साधना से ही जाग्रत होगी