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Saturday, August 23, 2014

जितेंद्रीय

व्यक्ति  की कार्य क्षमता  का थकान से 
बहुत गहरा सम्बन्ध होता है 
व्यक्ति थकता क्यों है?
 व्यक्ति या तो बहुत अधिक परिश्रम से थकता है 
या व्यक्ति थकता इसलिए है की 
उसे सम्बंधित कार्य को करने में रूचि नहीं होती 
व्यक्ति को रूचि के अनुसार कार्य करने का अवसर मिले तो 
उसे किये गए कार्य से 
थकान के स्थान पर ऊर्जा प्राप्त होती है 
 जिस व्यक्ति को संगीत में रूचि नहीं उसे संगीत 
सुनने  और जिस व्यक्ति को पढने में रूचि नहीं 
उसे किताब पढने से थकान अनुभव होने लगती  है 
थकान का तन से अधिक मन से सम्बन्ध होता है
 इसलिए थकान भरी अवस्था से मुक्ति पाना हो तो 
हमें अपनी रुचियों में परिवर्तन करना होगा
 या तो हम अपनी वृत्ति के अनुरूप अपनी रूचि बदल ले 
या हम अपनी रूचि के अनुसार अपनी वृत्ति का चयन कर ले
 जितना कठिन व्यक्ति का अपनी रूचि में परिवर्तन है
 उससे अधिक कठिन अपनी रूचि के अनुसार 
वृत्ति या आजीविका का सफलता पूर्वक चयन कर लेना है
 सबसे बेहतर है कि
 हमें अपना स्वभाव अपनी वृत्ति के अनुरूप विकसित करना होगा
यह संभव तभी हो पायेगा 
जबकि हमारा अपनी इन्द्रियों पर संयम हो 
जिसका अपनी इन्द्रियों पर संयम होता है 
वह जितेंद्रीय कहलाता है

Monday, August 4, 2014

शक्ति पीठ की ऊंचाई का रहस्य

हमारे पूर्वजो ने देवीयो के शक्ति पीठ 
ऊँचे पर्वत की चोटियों पर क्यों बनाये है 
क्योकि ऊँचे पर्वत की चोटियों पर चढ़ने में
 अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है 
देव स्थान सहज गम्य स्थान पर स्थित हो तो 
मनुष्य को उसका मूल्य ज्ञात नहीं होता है 
व्यक्ति की प्रवृत्ति रहती है की वह उसी स्थान 
और प्रतीकों की और भागता है जो दुर्लभ हो 
प्रत्येक व्यक्ति में शक्ति होती  है 
परन्तु व्यक्ति को अपने भीतर छुपी शक्ति का 
अहसास नहीं होता 
भीतरी शक्ति का अहसास व्यक्ति को 
तभी होता है 
जब अतिरिक्त परिश्रम की आवश्यकता होती है 
पर्यटन के स्थान हो या तीर्थ स्थल 
वे अधिक चहल पहल भरे होते है 
जो अधिक दूर हो दुर्गम राहो से भरपूर हो 
ईश्वरीय तत्व की अनुभूति भी एकांत में होती है
 सहज  रूप मानव रूप में उपलब्ध ईश्वरीय अवतार 
श्रीराम और श्रीकृष्ण का किसने महत्व जाना था
 
 

Saturday, August 2, 2014

त्रिकाल दर्शी

एक व्यक्ति ज्योतिषी के पास पहुंचा 
और प्रश्न किया की मेरा कल कैसा होगा ?
ज्योतिषी ने जन्म कुंडली के आधार पर 
कई प्रकार की कल गणनाएं की
और तरह तरह के विधि विधान बताये 
फिर भविष्य वाणी की 
कई प्रकार के किन्तु परन्तु लगाए
वही व्यक्ति एक संत के पास पहुंचा 
और उसने संत से यही प्रश्न किया 
की महाराज बताइये मेरा कल कैसा होगा 
संत ने जबाब दिया "जैसे तुम्हारे आज कर्म है,
 तुम्हारा कल वैसा ही होगा ,
जैसे  तुम्हारे भूतकाल में कर्म रहे है ,वैसा तुम्हारा वर्तमान है ,
तुम भूतकाल के अपने कर्मो पर दृष्टिपात करो 
,फिर वर्तमान में अपनी स्थिति के सम्बन्ध में विचार करो"
कल भी तुम सत्कर्म न कर भविष्य वक्ताओं के पीछे
 अपना भविष्य खराब कर रहे थे 
 आज भी तुम कठोर परिश्रम न कर 
अपना भविष्य भविष्यवक्ताओं के पीछे घूम कर खराब कर रहे हो 
हमारा आज हमारे भूत और भविष्य का दर्पण है 
यदि हम स्वयं हमारी वर्तमान स्थिति को देख पायेगे तो 
हमारे भूत काल के सारे कर्म याद आयेगे 
और हम हमारे वर्तमान के कर्मो को श्रेष्ठ बना पायेगे 
तो भविष्य में को हम सुखद बना पायेगे
 ऐसा सुनते ही उस व्यक्ति को 
अपनी गलती का अहसास हो गया उसने जान लिया था
 संत और भविष्य वक्ता में क्या अंतर होता है   
भविष्य वक्ता केवल भविष्य के बारे में बताता है
 और उसमे भी कई प्रकार के किन्तु परन्तु लगाता है 
जबकि संत भूत भविष्य के साथ वर्तमान को भी बताता है 
और वह त्रिकाल दर्शी कहलाता है