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Thursday, December 23, 2021

माँ नर्मदा का भारत माता को नमन

कुदरत तरह तरह से अपने रंग और रूप बिखेरती है । कभी कभी यह अविश्वसनीय लगता है । परन्तु नदी के बीच द्वीप नुमा यह आकृति दर्शाती है कि भारत को यूं ही माता नही कहा जाता ।भारत देश जमीन का टुकड़ा नही यह  ईश का आशीष है। प्राचीन काल मे इसलिए जम्बू द्वीप कहा जाता था। चित्र में दिखाई दे रही यह संरचना मानव निर्मित नही है । यह कुदरत ने स्वयं बनाई है ।इंदौर से बॉम्बे की और जाने वाले राज मार्ग पर धार जिले की खलघाट से जब हम बड़वानी की और अग्रसर होते है तो जो नर्मदा नदी पर पूल पड़ता है ।वहा तनिक देर खड़े रह कर देखे तो हमे नदी के भीतर द्वीप नुमा यह आकृति दिखाई देती है जो ठीक भारत के नक्शे की तरह दिखती है । बारिश में कितनी ही बाढ़ आ जाये । बाढ़ में कितनी रेत बह जाये , तटो की मृदा का कितना भी क्षरण हो जाए । अन्य भोगौलिक स्थितियों में कितना भी परिवर्तन हो जाये । यह सरंचना यथावत है 

Thursday, October 21, 2021

लोक विद्या आंदोलन


विगत दिनों काशी तीर्थाटन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । तीर्थाटन के दौरान अस्सी घाट पर एक सत्संग संडली हमे ढोल मंजीरों के साथ कीर्तन करते हुए मिली । उत्सुकता वश हम उसका लाभ लेने सत्संग हेतु बैठ गए। कुछ देर भजन सुनने के बाद जब व्याख्यान सुना तो पता चला कि यह सत्संग मंडली दूसरी मंडलियों से भिन्न थी । इसका उद्देश्य धार्मिक नही परमार्थिक सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ था । लोक विद्या और उनसे जुड़ी कार्य कुशलता को महत्व मिले इस दिशा में यह एक आंदोलन है ऐसा चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ ।लोक विद्या के इस आंदोलन से मैं प्रभावित हुए बिना नही राह सका।
        लोक विद्या अर्थात समाज के विभिन्न हिस्सों में व्याप्त वे स्वाभाविक कार्य कुशलताये जिनके लिए किसी भी संस्थागत प्रशिक्षण की आवश्यता नही रहती ।वे स्वतः व्यक्ति में या तो स्वयं विकसित होती है या परम्परा से प्राप्त होती जाती है ।किसी विश्वविद्यालय द्वारा उनकी इस कार्य कुशलता के लिए कोई प्रमाण पत्र जारी किया जाता ।
        लोक विद्या हमारे परिवेश चारो और बिखरी हुई है ।लोक विद्या के बिना छोटा हो या बड़ा हो  कोई भी  सृजनात्मक कार्य सम्पादित नही किया जा सकता । कितना भी प्रशिक्षित अभियंता हो वह कुशल मिस्त्री के बिना भवन पुल शिल्प निर्माण नही कर सकता । बाढ़ आपदाओं में नाविकों और कुशल तैराकों की आवश्यकता होती है जिनकी सहायता के बिना लोगो को राहत नही दी जा सकती ।वस्त्रो की सिलाई .आभूषणों के निर्माण , देशी जड़ी बूटियों से उपचार इत्यादि अनेक आयाम है लोक विद्या के जिनकी और किसी का ध्यान तक नही जाता ।ऐसे लोगो की प्रोत्साहित और पुरस्कृत करने की दिशा में यह आन्दोलन मुझे भीतर तक छू गया । 
https://www.facebook.com/lokvidya/videos/2969266693391494/

Thursday, May 13, 2021

कोरोना वैक्सीनैशन

          जब से कोरोना के विरुध्द वैक्सीनेशन का अभियान चला है । लोगो मे वैक्सीन लगवाने की हौड़ लग गई है । जिन लोगो को वैक्सीन के  दोनों डोज लग गये है ।उनका ही नही उनके पूरे परिवार का आत्म विश्वास चरम पर पर है । उन्हें अपने सम्पूर्ण होने का अहसास होने लगा है ।परिवार वालो का यह कहना है कि उनके परिवार में एक ऐसा व्यक्ति है जिंसको दोनों वैक्सीन लग चुके है ।यह अहसास ठीक उसी प्रकार का प्रतीत होता है ।मानो पुराने जमाने मे किसी भारतीय परिवार का कोई सदस्य विलायत में बैरिस्टर की पढ़ाई करके आया हो ।इस प्रकार  उसके पूरे परिवार को वैक्सीन न लगते हुए भी सभी सदस्यों को वैक्सीन लगने का प्रभाव महसूस किया जा सकता है 
               वैक्सीन लगवाने की हौड़ में अब तो दो प्रकार की वैक्सीनो का तुलनात्मक विश्लेषण करने वाले लोगो की भी कोई कमी नही है । जिंसको जो वैक्सीन लगी है ,वह उसी वैक्सीन का ब्रांड एम्बेसडर बन गया है । उसमे यह सामर्थ्य है कि वह दूसरी वैक्सीन के सारे दोष बता कर उसके दुष्परिणामों पर प्रकाश डाल सके । 
           जब पूरा विश्व वैक्सीनेशन के दौर से उबर चुका था । मात्र भारत जैसे देश मे शिशुओं के टीकाकरण के उपक्रम शासकीय स्तर पर किये जा रहे थे । तब  कोरोना जैसी  महामारी  टपक पड़ी और उसने छोटे बच्चों के साथ बड़ो को भी वैक्सीनैशन की कतार में लाकर खड़ा कर दिया । शुरुआती दौर में कुछ लोग कोरोना की वैक्सीन लगवाने में संकोच कर रहे थे । जब उन्हें कोई  वैक्सीन लगवाने के लिए कहता था तो वे स्वयम को बहुत अपमानित महसूस करते थे ,परन्तु बाद में जैसे कोरोना से लाशो के ढेर होना शुरू हुए ,हॉस्पिटल से शव लेने के लिए लंबी लंबी लाईने लगने लगी। श्मसान घाटो में टोकन सिस्टम से शवो के अंतिम संस्कार होने लगे ।जब उनकी आंख खुली की वैक्सीन लगवा लिया जाये , तब तक काफी दे हो चुकी थी। जब वे वैक्सीन लगवाने को पहुंचे तो कोविड टीका करण केंद्र पर पंक्ति में कोरोना संक्रमित लोग भी मिले ।  
          अब उन लोगो के बारे में विचार करे जिन लोगो ने अधूरे मन से ही सही पहला वैक्सीन लगवा लिया था। दूसरा लगवाने का मौका आया था वैक्सीन समाप्त हो चुके थे । मात्र एक वैक्सीन का डोज लेने पर उनको ऐसा लगने लगा कि वे अमृत का अधूरा प्याला ही ग्रहण कर सके । काश पूरा प्याला पी पाते इस तरह वे राहु केतु की तरह शेष प्याले नुमा वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के लिए बेतहाशा भटक रहे है । भगवान करे उनकी यह तलाश सीघ्र पूरी हो । ऐसे में यह खबर की एक वैक्सीन कंपनी का मालिक तरह तरह धमकियों से तंग आकर देश छोड़ चुका है वैक्सीनैशन अभियान के लिए खतरनाक मौड़ ले चुका है 
       हमारे एक परिचित ने तो वैक्सीनैशन अभियान की कछुआ चाल को देख कर वैक्सीन लगवाने से बेहतर स्वयम की इम्युनिटी बूस्ट करने की रणनीति बना ली है ।उनका यह मानना है कि वैक्सीन की शरीर में काम करने की भी एक अवधि है । अवधि व्यतीत होने के बाद वैक्सीन जनक प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जावेगी इसलिए वैक्सीन लगवाने से बेहतर है इम्युनिटी बूस्ट करने के स्थाई उपायों के बारे में सोचा जाये । इसी सिलसिले में उन्होंने नाक में नींबू , तेल डालने सहित इतने विकल्पों का अविष्कार किया है कि उनके पास तद विषयक सामग्री पर्याप्त रूप से उपलब्ध है ।निकट भविष्य में वे इस विषय पर एक पुस्तक प्रकाशित करवाने के बारे में भी सोच रहे है ,परन्तु उनको कोई प्रकाशक नही मिल रहा है 
     

Tuesday, May 11, 2021

यज्ञ की महत्ता

यज्ञ वातावरण की नकारात्मकता दूर कर उसे विषाणु और जीवाणुओं से मुक्त कर दैविक शक्तियों का आव्हान करता है । जिससे महामारी सहित समस्त अनिष्टों का निवारण होता है । जब से हमारे जीवन से यह वैदिक और दैविक परम्परा समाप्त हुई । 

हमे आपदाओं और महामारियों ने घेर लिया। पहले दैनिक हवन होता था। फिर पाक्षिक हुआ , फिर हवन मासिक ,फिर साल में दो बार नवरात्रियो के समय आजकल तो कोई हवन ही नही करता। जिसके भयावह परिणाम हमारे सामने है।
      उल्लेखनीय है कि विषाणु और जीवाणु सूक्ष्मजीवी होने से दिखाई नही देते । इसका मतलब यह नही है कि वे होते ही नही । उसी प्रकार से दैविक शक्तियां वातावरण में होती तो है  परन्तु दिखाई नही देती । यज्ञ और मंत्रोच्चारण के अभाव में वे निष्क्रिय रहती है । जैसे ही हम वैदिक मंत्रों उच्चारण के साथ यज्ञ करते है वे  चैतन्य और सक्रिय होकर हमारे आस पास एक अदृश्य सुरक्षा चक्र बनाती है । जो हमे उत्तम स्वास्थ्य और समृध्दि प्रदान करती है । 
      कई लोग हवन या यज्ञ से करने से इसलिए बचते रहते है कि यह एक वृहद अनुष्ठान है ।इसमें काफी व्यय होता है । लोगो की यह धारणा गलत है । नियमित या साप्ताहिक हवन में अधिक व्यय नही आता है । किसी को आमांत्रित कर भोजन कराने की आवश्यकता भी नही है । हवन या यज्ञ नितान्त आध्यात्मिक पारिवारिक कार्यक्रम है । इसके माध्यम से विष्णु शिव ब्रह्मा ही नही इंद्र वरुण अग्नि सहित समस्त देवता आमांत्रित होते है और आहुतियों के माध्यम से हविष्य प्राप्त करते है 

Saturday, May 8, 2021

इम्युनिटी

         इम्युनिटी क्या है ?इम्युनिटी कैसे बढ़ती है?इम्युनिटी कहा से आती है ? इत्यादि प्रश्नों के कई जबाब  है ।चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इम्युनिटी  व्यक्ति का उत्तम स्वास्थ्य है जो रोगों से शरीर को लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। 
            इम्यूनिटी सकारात्मक सोच से प्राप्त होती है । इम्युनिटी प्राप्त होती है उचित खान पान और अच्छी आदतों से । इम्युनिटी रहती है आस्तिकता के भाव मे जहाँ से किसी व्यक्ति को आत्मविश्वास मिलता है । इम्युनिटी एक आश्वस्ति का भाव है जो किसी व्यक्ति को आत्मीय लोगो से प्राप्त होता है ।इम्युनिटी रचनात्मक कौशल और समय के सदुपयोग  से मिलती है । इम्युनिटी मिलती है हमे नियमित जीवन और व्यायाम से अच्छे साहित्य के अध्ययन से । इम्युनिटी मिलती है सत्पुरुषों के सत्संग से । इम्युनिटी का स्त्रोत हमारे भीतर है जो हमे कुदरत से प्रेम करना सिखाता है  
                जिन लोगो में आस्तिकता का भाव नही है ,वे आत्मबल से विहीन होते है । जिन लोग का उचित खान पान नही है ,उन्हें पोषण प्राप्त नही होता । स्वाभाविक रूप से उनका स्वास्थ्य कमजोर रहता है । जो लोग नियमित व्यायाम नही करते वे उन्हें अनेक प्रकार की व्याधियों और शारीरिक पीड़ाओं से गुजरना पड़ता है । 
           जिन लोगो को परिवार और आत्मीय जन से आश्वस्ति का भाव प्राप्त नही होता है वे भीतर से स्वयम को असहाय और अकेले अनुभव करते है । जो लोग सत साहित्य और सत्पुरुषों का सानिध्य प्राप्त नही करते उनके भीतर आत्महीनता की ग्रन्थि निरन्तर सक्रिय रहती है। वे किसी के बारे में अच्छा सोच ही नही सकते । जो व्यक्ति किसी रचनात्मक गतिविधि में लिप्त होकर समय का सदुपयोग नही करता वो तरह तरह की आशांकाओ से ग्रस्त रहता है, निरन्तर नकारात्मक विचार उसे घेरे रहते है । जो व्यक्ति कुदरत के प्रति स्नेह और सरंक्षण का भाव नही रखता वो ईश्वर प्रदत्त  प्राकृतिक वरदानों से वंचित रह जाता है उस व्यक्ति को न तो झरने की कल छल सुनाई देती है और नही वह पंछियो की चहचहाहट का आनंद ले पाता है । उस व्यक्ति को बारिश की शीतलता भी बुरी लगती है वन्य प्राणियों से वह जुड़ाव महसूस ही नही कर पाता है ।भला ऐसे व्यक्ति को इम्युनिटी कहा से प्राप्त होगी 
      इम्युनिटी जीवन की इच्छा शक्ति है । बहुत से लोग ऐसे होते है। जो गम्भीर रूप से रुग्ण होने पर भी मृत्यु को प्राप्त नही होते ।अपनी इच्छा शक्ति के बल पर जीवन मृत्यु के बीच संघर्षरत रहते है और अंत मे वे म्रत्यु को मात देते है । इम्युनिटी तब समाप्त हो जाती है जब व्यक्ति तरह तरह की आशंकाओ और भय से ग्रस्त हो जाता है ।वह परिस्थितियों से पूर्णतः निराश हो जाता है । उसे जीवन के प्रति कोई आसक्ति शेष नही रह जाती है । कई लोग तो चिकित्सालयों के नकारात्मक परिवेश से घबराकर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता खो देते है । 
          प्रायः यह देखने मे आता है । युध्द में आहत सैनिक सैकड़ो घाव सहने के बावजूद जीवित बच जाते है । इसलिये अच्छी इम्युनिटी के लिये  जीवन को योध्दा की तरह जीना आवश्यक है । जिनके जीवन का कोई उद्देश्य नही होता उन लोगो मे भी जीवन की इच्छा शक्ति का अभाव होता है । इसलिए अच्छी इम्युनिटी के लिये व्यक्ति का जीवन उद्देश्य पूर्ण होना आवश्यक है 
       

Friday, April 30, 2021

ऑक्सिजन पुरुष

               जब से कोरोना रोग आया है, तब से ऑक्सिजन पुरुष अपना ऑक्सिजन का लेवल बढ़ाने में लगे हुए है । जब उन्होंने ये सुना है कि कोरोना में संक्रमित होने पर ऑक्सिजन का स्तर रक्त में कम हो जाता है वे ऑक्सिजन बढ़ाने का कोई मौका छोड़ना नही चाहते । चाहे सुबह उठकर भृमण का कार्यक्रम हो या भस्त्रिका अनुलोम विलोम प्राणायाम उन्होंने कोई उपाय नही छोड़ा है । 
                  ऑक्सिजन बढ़ाने के लिये उन्होंने तरह के एंटी ऑक्सीडेंट , मल्टी विटामिन की दवाईयां अलग से रखी हुई है ।  दिन में दो बार बाकायदा वे ऑक्सीडोमीटर से अपना ऑक्सिजन का लेवल चेक करते रहते है । उनका प्रयास यह रहता है कि किसी भी परिस्थिति में उनका ऑक्सीजन लेवल 97 से कम न रहे । पर्याप्त ऑक्सिजन का लेवल पाए जाने पर उनके चेहरे पर  संतुष्टि ही नही प्रसन्नता भी दिखाई देती है ।उनके होठो पर  एक हल्की सी मुस्कान भी तैरती रहती है । उन्हें मात्र स्वयम के ऑक्सिजन लेवल की ही चिंता नही अपितु परिवार के सभी सदस्यों को भी वे ऑक्सिजन लेवल बढ़ाने के लिए भी प्रेरित करते रहते है । 
                    उन्होंने पूरी लिस्ट बना रखी है कि कौनसा पौधा कितनी कार्बन डाई ऑक्सईड सौंखता है और कितनी ऑक्सिजन देता है । कौनसे पौधे 12 घंटे ऑक्सिजन देते है और कौनसे पौधे 24 घण्टे ऑक्सिजन देते है ।उनके ऑक्सिजन सूंघने की क्षमता अत्यंत अद्भुत है । वे किसी भी पेड़ के निकट जाकर बता देते है अभी वह कितनी ऑक्सिजन दे रहा है और भविष्य में कितनी दे सकता है 
               ऑक्सिजन लेवल को उन्होंने सीधे  प्रतिरोधक क्षमता से जोड़ रखा है ।उनका दावा है कि जब तक ऑक्सिजन का लेवल अच्छा है ।कोरोना उनका बाल भो बांका नही कर सकता है । उनकी दृढ़ मान्यता है कि आदमी कोरोना से नही मरता ऑक्सिजन का स्तर कम होने से मर जाता है ।उन्होंने ऑक्सिजन लेवल संधारित करने के आपातकालीन उपाय भी कर रखे है ।मोहल्ले के लोग आश्वस्त है कि उनके रहते किसी व्यक्ति ओक्सिजन का लेवल कम नही हो सकता ।
             उनकी ऑक्सिजन के प्रति जागरूकता देखकर लोग उन्हें ऑक्सिजन पुरुष के रूप पहचानने और जानने लगे । उनके दर्शन मात्र से ऑक्सिजन प्राप्त करने का पुण्य प्राप्त होता है । जरा सा किसी का ऑक्सिजन लेवल कम हुआ कि नही की  वह ऑक्सिजन पुरुष के दर्शन का अभिलाषी हो जाता है। मचल उठता है कि उसे किसी भी हालत में ऑक्सिजन पुरुष के दर्शन करना है। कितना भी गंभीर रोगी हो उनके दर्शन के उपरांत स्वयम को स्वस्थ अनुभव करने लगता है । उनकी ऑक्सिजन के प्रति इस आसक्ति के कारण उन्हें ऑक्सिजन अवार्ड देने की जोरो से मांग उठने लगी है । 

कोरोना काल की मान्यताये और मिथक

कोरोना काल ने कई मिथकों को तोड़ा है । कई को जोड़ा है । कई मान्यताये ध्वस्त हुई । कितने ही सिद्धान्त खंडित हुए । कितने ही मंडित हुए  है। कोरोना काल के पूर्व उस व्यक्ति को सर्वाधिक सफल माना जाता था । जो लोगो से मिलता जुलता हो , व्यवहार कुशल हो । अंतर्मुखी न हो । समूह में रहने का अभ्यस्त है , जिसके कई मित्र हो ।  परन्तु कोरोना ने उक्त सभी धारणाओं को ध्वस्त किया है । कोरोना ने हमे यह बताया है कि जीवन मे सफलता के साथ साथ स्वस्थ रह कर जीवन जीना भी जरूरी है । मात्र व्यवहार कुशलता काम नही आती है व्यक्ति को एकांत में रहने का भी अभ्यास भी होना आवश्यक है ।  कोरोना से बचाव का मूल मंत्र सोशल  डिस्टेंसिग बन चुका है । आत्मीयता दर्शाने के तरीकों में कई प्रकार के बदलाव आये है 
           व्यक्ति कितना ही धनी हो उसका कोई महत्व नही है व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक रूप से फिट रहना जरूरी है । कोरोना ने रोग प्रतिरोधक क्षमता को नवीन आयाम दिये है । वर्तमान में इस महामारी ने कई बलवान और शक्तिशाली लोगो को भी नही छोड़ा है वही गरीब और अमीरी के भेद को भी समाप्त किया है । जहाँ किसी जमाने मे कुछ लोग हॉस्पिटल जाना पसन्द  नही करते थे, परन्तु आजकल हर व्यक्ति  हॉस्पिटल में  और  बेड वेंटिलेटर की तलाश कर रहा है । 
           वैज्ञानिकों का यह मत है कि एक वृक्ष कम से कम 200 पौंड ऑक्सिजन  दिन भर में देता है । जिसके परिसर में जितने अधिक वृक्ष है वह उतना ही प्राणवान है यह मान्यता बलवती हुई है कि बलवान और धनवान होने की अपेक्षा व्यक्ति को प्राणवान होना जरूरी है  । किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में एक दिन में वृध्दि नही हो सकती है । यह दीर्घकालिक और सतत प्रक्रिया है जो नियमित जीवन आहार विहार और समुचित व्यायाम से ही सम्भव है ।
                   जिन लोगो को किसी जमाने मे यह कहते हुए सुना जा सकता था कि पेड़ो की छाया के कारण उन्हें सूरज की धूप नही मिलती , पेड़ के पत्ते गिरने से घर आँगन में कचरा बहुत होता है । पेड़ की डालियो पर पक्षियों के बैठने से उनकी बीट गिरती है जिससे उन्हें दुर्गंध अनुभव होता है । फलदार वृक्षो से आकर्षित होकर आए दिन बंदर आते रहते है । उन्हें कोरोना से संक्रमित होने के फलस्वरूप शरीर मे  ऑक्सिजन के अल्प स्तर की समस्या से जूझते हुए देखा जा सकता है ।  अब उन्हें याद आती है वे पेड़ की घनी डालिया । शीतल छाया , उड़ते हुए खगदल और उनके घोसले । यह कोरोना काल  का सकारात्मक पक्ष ही है । ऐसे लोग किसी भी कीमत पर ऑक्सिजन के सिलेण्डर क्रय करने को तैयार बैठे है । 
         वे लोग जो किसी व्यक्ति की यह कह कर मजाक उड़ाते थे कि वह व्यक्ति अंर्तमुखी प्रवृत्ति का है । अव्यवहारिक है । स्वयं में डूबा रहता है । अत्यधिक धार्मिक है , किताबी कीड़ा है , दार्शनिक है , स्वयम को बहुत बड़ा कलाकार या साहित्यकार समझता है, अप्रासंगिक विषयों पर विचार करता रहता है । समाज से कटा रहता है । आज उस उस व्यक्ति की उन सब बुराईयो में उन्हें अच्छाईयां दिखाई देती है और सोचते है कि काश वे ऐसा बन पाते तो वे वे कोरोना काल मे समुचित शारीरिक और मानसिक प्रतिरोधक क्षमता के साथ महामारी से मुकाबला कर पाते 
                 कोरोनाकाल के पूर्व एक यह भी मान्यता थी कि  हम तो बूढ़े हो चुके । हमने हमारी जिंदगी जी ली है अब नये युवा लोगो को देखना कि वे क्या कर सकते है । कोरोना ने इस धारणा को ध्वस्त कर सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों को अपनी आंतरिक और बाहरी  क्षमताओं का परिचय देना का मौका दिया है  जैसे जैसे कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है । व्यक्ति कम आयु हो या या अधिक का अपने स्वास्थ्य की चिंता प्रत्येक व्यक्ति को होने लगी है आयु वर्ग वाले लोगो ने यह कहना शुरू कर दिया है कि हमने तो हमारा जीवन जी लिया तुम अपनी चिन्ता करो । ऐसी स्थिति में युवा लोगो ने भी यह जबाब देने लगे कि 

Monday, April 26, 2021

कोरोना काल के सबक

जिनके विचारो में सकारात्मकता  की प्राणवायु होती है उन्हें कुदरत से सहज ही प्राणवायु अर्थात ऑक्सिजन सुलभ हो जाती है । जिन लोगो को इस दौर में ऑक्सिजन प्राणवायु के सिलेण्डर की आवश्यकता महसूस हुई हो । वे संकल्प ले कि वे प्राणवायु देने वाले वृक्षो का रोपण ही न करे अपितु उन्हें सिंचित कर बड़ा भी करे।
          जिन लोगो के रिश्तेदारों कोरोना काल मे अंतिम संस्कार हेतु लकड़ीयो की कमी से जूझना पड़ा हो उनको यह संकल्प लेना चाहिये कि वे  अपने जीवन काल मे पर्याप्त लकड़ीया देने वाले वृक्षो को बोकर उन्हें छाया देने वाले  विशाल वृक्षो रूप में परिवर्धित करे ।कुदरत को जो हमने दिया है वही उसने हमें लौटाया है कुदरत से हमने पेड़ छीने कुदरत ने हमे ऑक्सिजन के लिए तरसाया है 
        जब ऑक्सिजन के लिए करोड़ो के प्लांट लगाए जा रहे है तब हमें शून्य बजट में ऑक्सिजन देने वाले नीम बरगद और पीपल याद आ रहे है ।ऑक्सिजन की ताजगी पहले विचारो में आती है बाद में दिलो दिमाग मे होकर फेंफड़ो तक चली जाती है ।
             रोगों की प्रतिरोधक क्षमता तन की ही नही मन की भी होती है । मन से रोगी व्यक्ति स्वतः ही तन की प्रतिरोधक क्षमता खो देता है कोरोना रोग के कहर ने हमे एक सबक सिखलाया है रहो एकांत और शान्त माहौल में रखो स्वस्थ काया है 
     

Tuesday, April 20, 2021

कन्या भोज की प्रासंगिकता

             आज रामनवमी पर्व होकर चैत्र नवरात्रि का का अंतिम दिवस है । सामान्य रूप से आज के दिन लोग यज्ञ करके कन्या भोज आयोजित करते है । किंतु विगत वर्ष की भाँति इस वर्ष भी कोरोना महामारी के कारण कन्या भोज का कार्यक्रम नही करवा पा रहे है । कन्या भोजन की परंपरा सनातन  में उस समय से चली आ रही है जब भारतीय समाज मे कन्याओ का परिवार और समाज मे विशेष स्थान होता था । 
                विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या?आज हमारे परिवार और समाज मे हम कन्याओ को विशेष स्थान और स्नेह संरक्षण दे पा रहे है । इसका जबाब यह होगा कि ऐसा नही हो रहा है तो फिर कन्या भोज के नाम पर इस धार्मिक ढकोसले की आवश्यकता  क्या है ?जाने अनजाने कन्याओ के माता पिता भी अपनी बेटियों का शोषण करते रहते है । कितनी ही कन्याये समुचित पोषण के अभाव में तरह तरह की शारीरिक कमजोरियों से ग्रस्त रहती है । परीक्षा परिणामो में इसके बावजूद लड़कियों का प्रदर्शन लड़को की अपेक्षा अधिक उत्साहवर्धक रहता है । 
          कई माता पिता इस बात को लेकर अत्यधिक संतुष्ट रहते है कि उनकी लडकिया अच्छी शिक्षा प्राप्त कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा प्रशासनिक एवम बैंकिग और शैक्षिणक जगत में उच्च पदों पर पदस्थ है । वैसी ही संतुष्टि अपने लड़को के बारे में प्रगट नही कर पाते है । कभी कभी तो माता पिता अपने लड़को के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण उनके बारे में वास्तविक तथ्यों को प्रगट करने में भी संकोच करते है ।
         इस दौर में परिवेश में ऐसे परिवार भी देखने को मिलते है । जो पूरी तरह अपनी लड़कियों की आजीविका पर ही निर्भर है । यह एक अत्यंत  अपमान जनक परिस्थिति होती है फिर अपनी लड़कियों पर आश्रित माता पिता और परिवार यह कहते हुए मिल जायेंगे कि उन्हें अपनी लड़की पर गर्व है इस प्रकार वे अप्रत्यक्ष रूप से अपनी लोलुप प्रवृत्ति को छुपा  लेते है । वर्तमान में यह पतन का दौर भी शुरू हो गया है कुछ लड़कियों के माता पिता विवाह कराने के उपरान्त उनकी लड़की  और उसके पति के बीच विवाद के बीज बोकर अपनी आर्थिक हितों की पूर्ति में लगे हुये है । इतनी नकारात्मक परिस्थितियों में भला देवी नव दुर्गा कन्या भोजन के माध्यम से आपकी पूजा कैसे ग्रहण कर सकेगी ।
           जब तक हमारी कथनी और करनी में अंतर समाप्त नही हो जाता।तब तक हमारी धार्मिक उपासना व्रत पूजा सब व्यर्थ है । व्यर्थ है वे सारे अनुष्ठान जो हमारे द्वारा देवी को प्रसन्न करने के लिए  किये जाते है । हम चाहे अपने कुकर्मो और गलत मंतव्यों पर कितने ही पर्दे डाल दे वह देवी सत्ता से छुप नही सकते । हमे वास्तविक अर्थो में देवियो के प्रतिरूप कन्याओ का संरक्षण पोषण और उन्नयन कर अपनी सच्ची श्रध्दा दिखलानी होगी । तभी देवी हमारे नवरात्रि के कन्याभोज को ग्रहण करेगी ।

Monday, April 19, 2021

बेघर -उपन्यास

 "बेघर" शीर्षक से प्रकाशित उपन्यास वयोवृद्ध एवम वरिष्ठ लेखिका श्रीमती ममता कालिया का पहला उपन्यास जो सन 1972 की अवधि के दौरान रचा गया था। समय से कही आगे और विवाह पूर्व कौमार्य भंग को लेकर भ्रांतियों पर आधारित है । उपन्यास पंजाबी पृष्ठभूमि के एक ऐसे नवयुवक के जीवन पर आधारित है । जो आजीविका के लिए मुंबई रेफ्रिजरेटर बनाने वाली कंपनी में काम करने के लिए आ जाता है और पेईंग गेस्ट के रूप में समुद्र तट के निकट पारसी अधेड़ पारसी महिला के यहां रहने लगता है 
              लोकल ट्रेन में सफर करते हुए संजीवनी नामक गुजराती  लड़की के व्यक्तित्व से बेहद आकृष्ट हो जाता है ।  संजीवनी जो बैंक में  नोकरी करती है उसकी माँ मूक है ,भाई और भाभी अपने आर्थिक अहंकार के कारण उसकी माँ की उपेक्षा करने लगते है । संजीवनी अपने माता पिता की चिंता करने करने और उनके समस्त दायित्वों के निवर्हन करने वाली आदर्श लड़की है । लेखिका ने जिस प्रकार से संजीवनी के चरित्र को गढ़ा है वह अत्यंत अदभुत है । 
         शनै: शनै:संजीवनी और पंजाबी नवयुवक परमजीत के बीच आत्मीयता से ओत प्रोत प्रेम से परिपूर्ण प्रगाढ़ संबंध पनपने लगते है । एक दिन दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो जाते है । शारीरिक संबंध स्थापित हो जाने के दौरान परमजीत को पता चलता है कि संजीवनी का कौमार्य पूर्व से सुरक्षित नही है और यही से परमजीत के भीतर बैठा एक ऐसा पुरुष जाग्रत हो जाता है जो लड़की के सम्पूर्ण चरित्र को कौमार्य से जुड़ी परम्परागत धारण से नापने के आदि होते है ।  संजीवनी के सारे गुण एक तरफ रख परमजीत विवाह हेतु  ऐसी लड़की की तलाश में जुट जाता है जो तकनीकी रूप अक्षत कौमार्य से युक्त हो ।  परमजीत उसके समाज की ऐसी ही लड़की रमा से बेमेल विवाह कर लेता है    
            रमा से विवाह करने के उपरांत से हरजीत के जीवन मे मुसीबते  प्रारम्भ होती है , इससे परमजीत के जीवन की उर्वरकता समाप्त हो जाती है । वैचारिक विरोध और जीवन  के दोनों के भिन्न दृष्टिकोण के कारण परमजीत जीवन जीवन नही रहता है , नारकीय यंत्रणा बन जाता है । परिणाम स्वरूप परमजीत अपना सारा ध्यान अपने कार्यस्थल पर ही लगाता है । परमजीत का हृदय सच्चे प्रेम से रिक्त ही रह जाता है और अंत मे हृदयाघात के कारण उसकी असामयिक मृत्यु हो जाती है ।लेखिका ने उपन्यास में जिस प्रकार से विषय को उठाया है वह विवाह पूर्व भारतीय समाज मे विवाह योग्य लड़कियों के कौमार्य के सम्बन्ध पुरुषों की भ्रांतियों का निवारण करने में समर्थ है ।रमा और संजीवनी दोनों विपरीत स्वभाव वाली महिलाओं के व्यक्तिव का एक पुरुष के जीवन पर क्या? प्रभाव पड़ सकता है, यह उपन्यास में अधिकार पूर्वक समुचित पर से विश्लेषण किया गया है 
           यद्यपि उपन्यास का कालखंड पचास साल पूर्व का है । परंतु उसकी विषय वस्तु आज भी इन अर्थो में प्रासंगिक है कि मात्र क्षुद्र धारणाओं के आधार पर कितने ही लड़के लड़किया बेमेल विवाह कर अपने सम्पूर्ण जीवन को नष्ट कर रहे है । उपन्यास का शीर्षक"बेघर" दो अर्थो स्पष्ट होता है ।प्रथम तो महा नगरीय जीवन शैली में स्थानाभाव के कारण व्यक्ति पेईंग गेस्ट संस्कृति में रहने हेतु विवश है ।द्वितीयतः वह व्यक्ति भी बेघर है जिसके पास रहने हेतु घर तो है परन्तु बेमेल विवाह के कारण रोज रोज के पारिवारिक विवादों के चलते उसका घर मे रहना असंभव है।

Friday, April 16, 2021

आपदा प्रबंधन की प्रासंगिकता

                जैसे जैसे मानव समाज को आकस्मिक आपदाएं घेरने लगी है,आपदा प्रबंधन का महत्व उतना ही बढ़ता जा रहा है ।सामान्य परिस्थितियो में तो समस्या के समाधान दिखाई देते है परन्तु विषम परिस्थितियों में कितना ही प्रतिभाशाली व्यक्ति हो उसकी बुध्दि भी कुंद हो जाती है ।व्यक्ति का सामान्य विवेक भी जाग्रत नही रह पाता है ।समस्या के समाधान के लिये साधारण उपाय भी नही कर पाता है । 
     आपदा प्रबंधन कोई दुर्घटना हो या कोई प्राकृतिक आपदा या अकस्मात आई ऐसी परिस्थिति जिससे निबटने के लिये कोई पूर्व में कोई कार्य योजना निश्चित नही की गई है से सम्बंधित है । किसी व्यक्ति की आपदा प्रबंधन की क्षमता  अत्यंत धैर्य ,स्थित प्रज्ञता ,त्वरित निर्णय लेने की क्षमता  इत्यादि गुणों पर निर्भर करती है। इसमें प्राथमिकता निर्धारण का क्रम अत्यंत महत्वपूर्ण होता है । एक से अधिक वैकल्पिक समाधान के मार्ग मनो मस्तिष्क में होना भी आवश्यक है । कार्य योजना ऐसी हो जो व्यवहारिक धरातल उतारी जा सके। योजना में लचीलापन ऐसा हो जो परिस्थितिया परिवर्तित होने पर योजना में वांछित बदलाव किया जा सके
      आपदा प्रबंधन में यह  अधिक महत्वपूर्ण होता है कि उपलब्ध संसाधनों के आधार पर समस्या के तात्कालिक समाधान । ऐसे उपाय जो बिना किसी विशेष प्रयास के आसानी से हम सहज रूप से उपलब्ध वस्तुओ से क्रियान्वित कर पायें। ताकि समस्या के स्थाई समाधान के लिये हमें थोड़ा सा समय मिल सके। ।
       इतिहास साक्षी है युध्द ,अकाल, महामारी, भूकम्प , सुनामी जैसी आपदाओं में ऐसा समाज और राष्ट्र ही विजय पा सका है । जिसने संभावित  आपदाओ हेतु स्वयं को तैयार कर लिया है ।आपदा प्रबंधन में सर्वप्रथम तो यह प्रयास होना चाहिये कि बिल्कुल क्षति ही नही हो फिर क्षति होने से रोकी न जा सके तो क्षति  आनुपातिक रूप कम से कम हो।
            आपदा प्रबंधन में सबसे महत्वपूर्ण  मनोवैज्ञानिक पक्ष होता है ।यह देखने मे आया है कि आपदा के समय मनोवैज्ञानिक पक्ष की सदा उपेक्षा की जाती है ।जो गम्भीर विषय है । सामान्य रूप देखा जाता है  आपदा से ग्रस्त जन समूह मानसिक रूप से इतना अधिक विचलित हो जाता है कि क्षति का मात्रा बढ़ जाती है ।हड़बड़ी में व्यवस्था में गड़बड़ी होने लगती है ।योजनाकार की समस्त योजनाये ध्वस्त होने लगती है ।ऐसी स्थिति में समाज , परिवार या राष्ट्र हो के मुखिया की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है ।मुखिया का यह दायित्व होता है कि वह जन मानस उठने वाली तरह  तरह की  आशंकाओं को दूर करे भय का निवारण करे।
        समाज का  मनोवैज्ञानिक पक्ष मजबूत करने के लिए साहित्य ,कला, संगीत अध्यात्म का योगदान अत्यंत महत्व पूर्ण होता है ।साहित्य, कला , संगीत जहाँ हमे बौद्धिक खुराक प्रदान करते है ।वही  हमारी रचनात्मकता में वृध्दि कर मानसिक ऊर्जा के उन्नयन का कार्य करते है ।यही प्रवृत्ति हमे आपदा के समय हमें गहरे अवसाद से उबारने में सहायक होती है । व्यक्ति की आध्यात्मिकता इस बात पर निर्भर नही करती कि वो कितना धार्मिक है , यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति की जीवन शैली कैसी है आंतरिक ध्यान ,प्राणायाम, योग ,व्यायाम का उस व्यक्ति के जीवन मे कितना महत्व है । आध्यात्मिक चेतना से उपजा आस्तिक भाव व्यक्ति को विपरीत समय मे सम्बल प्रदान करता है । समस्त सम्भावनाये समाप्त हो जाने पर भी व्यक्ति को निरन्तर आशावान बनाये रखता है ।

Thursday, April 15, 2021

सौंदर्य लहरी -एक भाव यात्रा


            आद्य शंकराचार्य द्वारा अल्प आयु में अनेक दिव्य स्त्रोतों की रचना की गई ,उन्हीं में से देवी के सौंदर्य की स्तुति हेतु रचित "सौंदर्य लहरी "स्त्रोत है । सौंदर्य लहरी को नवीन दृष्टि से देखा और परखा है ,ललित निबंधकार श्री गोविन्द गुंजन ने सौंदर्य लहरी एक भाव यात्रा के माध्यम से । 
         लेखक ने इस कृति में भाषा और प्रतिभाषा को परिभाषित किया है । अनुभूतिया जो शब्द से परे हो प्रतिभाषा कहलाती है ।आत्मीय संबंधों में अनुभूतिया प्रतिभाषा के माध्यम से संचारित होती है ।ईश्वरीय अनुभूतियो को ग्रहण करने में प्रतिभाषा महत्वपूर्ण होती है ।  सौंदर्य लहरी में छुपी प्रतिभाषा को लेखक ने पद्यानुवाद और गद्यानुवाद के माध्यम से स्पष्ट किया है ।
       देवी के सौंदर्य को लेखक ने अपनी लेखनी से  भाषागत सौंदर्य से सजाया संवारा है । इस मायने में लेखक का ललित निबंधकार के साथ काव्य प्रतिभा भी कृति सृजन में बहुत काम आई है ।भाषा का लालित्य स्वरूप और कविता सरिता का प्रवाह जगह जगह देखने को मिला है।
                आद्य शकराचार्य के जीवन परिचय को एक अध्याय के माध्यम से इस कृति में समर्पित किया गया है  । पुस्तक को  भाव यात्रा शीर्षक दिया जाना इसलिये सार्थक हो जाता है क्योकि भौतिकता से दूर देवी के विशुध्द सौंदर्य को वही व्यक्ति जान समझ सकता है जो भावो से जुड़कर आत्मा के सरोवर में अवगाहन करने की सामर्थ्य रखता है।
      पुस्तक में सौंदर्य लहरी के साथ आनंद लहरी को भी स्थान दिया गया गया है सौंदर्य लहरी पर इस पुस्तक के माध्यम से लिखी गई टीका इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में हमारे ग्रन्धों पर आधिकारिक रूप से टीका लिखने का प्रचलन लगभग समाप्त हो चुका है । 
      सौंदर्य लहरी की टीका करते हुए लेखक ने यह प्रकट किया है कि  सूर्य और चंद्रमा देवी नैत्र है ।सूर्य जहां दिन को उज्ज्वलता प्रदान करता है वही चन्द्रमा रात्रि को शीतलता । देवी जी का तीसरा नेत्र भी जो क्षितिज में संध्या और उषा के रूप में जगत को ज्ञान प्रदान करता है ।लेखक ने पुस्तक में सौंदर्य लहरी की सौंदर्य पूर्ण व्याख्या करते हुए जीवन में छुपे दैवीय सौंदर्य को उदघाटित किया है 

 

Tuesday, April 13, 2021

कोरोना पुराण

कोरोना एक बीमारी नही एक सोच है । सोच जो आदमी को निकम्मा बना देती है । कुछ लोगो को कोरोना भयावह लगता है तो कुछ लोगो को कोरोना काल न काम करने का उपाय ।कोरोना आया है चला जायेगा परन्तु सोच ऐसी है जो रहती आई है रह जायेगी। कोरोना की आड़ में कई घपले है । कोरोना कब कहा आएगा, कब जाएगा ,यह उसकी इच्छा पर नही है । नीति निर्धारकों की इच्छा पर  निर्भर है । आकड़ो के लिहाज से कितने संक्रमित हुए ,कितने संक्रमण से मुक्त हुए हुए ।कितने मरे यह या तो चिकित्सक जाने या पैथालॉजी प्रयोगशालाएं  जाने ।बेचारा आम नागरिक तो लक्षणों के भरोसे ही यह उपधारणा कर सकता है कि वह कोरोना से संक्रमित है या नही । कोई बोलता है तेज बुखार के साथ सूखी खांसी  तो कोई बोलता है कि स्वाद चखने और सुगंध सूंघने की ग्रंथियों की क्षमता में कमी , कोई बोलता है कि शरीर मे असाधारण दर्द ,कोई बोलता साँस लेने में कठिनाई सबके अपने अपने विचार है । इन सब उलझनों से मुक्त होने के लिए विशेषज्ञ लोगो ने एक नया विचार दिया है "बिना लक्षणों वाला कोरोना "मानो कोरोना एक बीमारी न हुई एक बला हो गई जो कभी भी किसी भी रूप कही भी प्रकट हो जाने को तैयार हो।
       कहते है बिना लक्षण वाला कोरोना को पहचानना मुश्किल ही नही नामुमकिन है ।डॉन  को तो सोलह मुल्कों की पुलिस तलाश कर रही थी परन्तु कोरोना को सम्पूर्ण विश्व की पुलिस भी तलाश नही कर पा रही है । उसके स्वरूप और प्रकृति को जानने के लिए कितने ही जीव वैज्ञानिक दिन रात एक कर लगे हुए है । तरह तरह के वैक्सीन नुमा हथियार एक छोटे से सूक्ष्मजीवी के लिए तैयार भी कर लिए है । हर देश अपने वैक्सीन को श्रेष्ठ और दूसरे के वैक्सीन को कमतर बताने में कोई कसर नही छोड़ रहा है । अपनी अपनी मान्यताये है, पर हमारे देश ने विश्व बंधुत्व और शांति  पूर्ण सह अस्तित्व की भावना को अंगीकार करते हुए अपने देश के वैक्सीन को निर्यात करने तथा अन्य देशों द्वारा निर्मित वैक्सीन को आत्मसात करने का  फैसला कर लिया है । 
   अब तो कोरोना के नये नये स्टैन आ जाने से बुध्दिजीवीयो और छिद्रान्वेषी लोगो को बोलने का मौका दे दिया है । लोग यह कहने से भी नही चुक रहे है कि क्या फायदा  वैक्सीन  लगवाने से ?जो वैक्सीन उपलब्ध है वे पुराने कोरोना प्रतिरूप से सामना करने के लिए निर्मित है।कोरोना के नए प्रतिरूप के लिए नही ।इसके लिए जब तक कोई वैक्सीन नहीं आएगा तब तक वे वैक्सीनशन नही करवायेगे। इस तरह के तर्क देकर वे कितने ही बार वैक्सीन लगवाने से बच चुके है । यदि शरीर मे ऑक्सिजन का स्तर जांच के दौरान कम पाया जाये वे इसे अपनी योगशक्ति प्राणायाम की उपलब्धि बताते हुए सनातन भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों पर अपनी श्रध्दा व्यक्त करने लगते है । उनके इसी भ्रांति ने कितने लोगों को मौत के समीप पहुंचा दिया है और स्वयं की श्वसन क्षमता को अत्यधिक कम कर चुके है । उन्हें पता ही नही उनके फेफड़े कितनी मात्रा में क्षतिग्रस्त हो चुके है। उन्हें कोई किसी प्रकार की जांच करवाने के लिये कहना भी अपराध है ।
       कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़ों को देखते हुए तथाकथित आधुनिक मनीषियों ने नए जीवन सूत्र दिए है ।उनका चिन्तन कोरोना समाधान के नवीन आयाम स्पर्श कर रहा है । उनका सोच यह यह है जितने लोगो कोरोना के संक्रमण से नही मर रहे है उससे कही ज्यादा कोरोना के भय और अकेलेपन के अवसाद से मर रहे है । इस सोच से आकृष्ट होकर शासन ने ऐसे कोविड सेंटर बनाये है , जो कोरोना संक्रमितों के अकेलेपन को दूर कर रहे है । आजकल कोविड सेंटरो में सांस्कृतिक और साहित्यिक आयोजन की खबरे भी सुनने में आने लगी है । विधान सभा , लोकसभा चुनाव में जुटाने वाली भीड़ इसी प्रयास के उपक्रम है । कोरोना में चुनावी सभाओ में एकत्र भीड़ की आलोचना उन्हें लोकतंत्र विरोधी भावना प्रतीत होती है । 
        लोग व्यर्थ ही कोरोना को कोसने में लगे हुए है ।कोरोना ने कई लाइलाज बीमारियों का इलाज किया है ।जो आंदोलन दिल्ली पुलिस लाखो प्रयासों के बाद नही तोड़ पाई । ऐसे शाहीन बाग धरना कार्यक्रम और किसान आन्दोलन की कोरोना ने ही तो कमर तोड़ी है । देश की अर्थ व्यवस्था में कोरोना का अद्भुत योगदान है । चाहे कर्मचारियों की वेतन वृध्दि हो या वेतन आयोग की सिफारिशो का क्रियान्वयन उन पर तब तक स्थगन रहेगा ।जब तक कोरोना रहेगा । प्रदूषण मुक्ति की योजनाओ को भी कोरोना से भारी बल मिला है ।नदियों की स्वच्छता , वायु की गुणवत्ता में काफी अनुकूल प्रभाव कोरोना देव के कारण ही तो पड़ा है । जरूरत से ज्यादा आस्तिक प्रकृति के लोगो की ओर  से तो यह घोषणा भी की जाने लगी है कि कोरोना महामारी नही ईश्वरीय अवतार है ।जो समाज मे संतुलन और अनुशासन स्थापित करने आये है

Monday, March 29, 2021

तरुण भटनागर का एक बेहतरीन कहानी संग्रह

भाषा , भाव और शिल्प की ताजगी के साथ आईसेक्ट पब्लिकेशन से प्रकाशित लेखक, कहानीकार , उपन्यासकार श्री तरुण भटनागर की दस कहानिया जंगल, जमीन, दारिद्र्य और यथार्थ पर आधारित है । प्रत्येक कहानी का विशिष्ट कथ्य है ।

                इस कहानी संग्रह में में जहाँ तिब्बती शरणार्थियों की पीड़ा को "भूगोल के दरवाजे "के माध्यम से व्यक्त किया गया है । वही "कातिल की बीवी "दरिद्रता और अभावो और सँकरी गलियों में रहने वाले दो परिवारों के आपसी जुड़ाव और मन मुटाव को बयाँ करता है । जहां एक और विशाल भू भागो पर रह कर भी कुछ लोग अतृप्त है । वही भिन्न धर्मो के दो निर्धन परिवार किस प्रकार से एक एक इंच जमीन के लिए संघर्षरत है ।दोनों परिवार के पुरुषों में चाहे कितना भी द्वेष हो महिलाओ में आत्मीय जुड़ाव की यह कथा है 
     "जंगल मे चोरी "आदिवासी अंचल चल रहे विकास की कथा है ।जिसमे सीमेंट के गोदाम ठेकेदार और मूल निवासियों को वस्त्र प्रदान किये जाने का रोचक उल्लेख है । एक दिन शासन की और से वस्त्र वितरणकर्ता किराने वाला दुकान बंद कर लम्बे समय के लिए चला जाता है तो आदिवासी ठंड को दूर करने के लिए सीमेंट की खाली पड़ी बोरियो की चोरी करते है ।उनके लिए सीमेंट का कोई मूल्य नही होता ।यह एक करारा व्यंग्य  भी है 
         "बीते समय शहर "की कहानी अतीत के पन्नो को पलटने की कहानी है । प्रेमिका के बहाने ट्रैन में यात्रारत युवक एक ऐसे शहर और उससे जुड़ी स्मृतियों को याद करता है । जहां उसने शैक्षणिक काल मे समय गुजारा था। शहर के पास  खड़े पहाड़ को बुजुर्ग की उपमा देकर लेखक जब कहता है ।बुजुर्ग हमारे लिये उपयोगी हो या न हो उनकी उपस्थिति मात्र आश्वस्त करती है कि हमारे कंधे पर किसी का हाथ है । बीते शहर की कहानी का सम्मोहन अदभुत है । लेखक ने कहानी  को बहुत ही सूक्ष्मता से  उंकेरा है  यात्रा को विविध आयाम और स्वरूप प्रदान किये है यह कहना अतिश्योक्ति नही  होगी कि लेखक की सम्पूर्ण से प्रतिभा इस कहानी के माध्यम से हम परिचित हो जाते है 
                   और अंत मे  "दवा सांझेदारी और आदमी" नामक शीर्षक कहानी के माध्यम से लेखक ने दवा विक्रेता और ग्राहक के बीच हुए संवाद को बेहतरीन तरीके से विषय को अभिव्यक्त किया  है व्यवसायिक मजबूरिया और पेट की भूख के सामने इंसान कितना विवश हो जाता है । आदर्शो की बात करना आसान है जीना कितना मुश्किल है  

Saturday, March 27, 2021

गुनाहों का देवता -समीक्षा

गुनाहों का देवता  सुप्रसिध्द लेखक डॉ. धर्मवीर भारती का बहुत लोकप्रिय उपन्यास है । विगत दिनों यह उपन्यास मुझे ऑडियो बुक के रूप में डॉ. कुमार विश्वास की आवाज में स्टोरी टेल ऐप पर सुनने का अवसर मिला।  निस्वार्थ प्रेम पर आधारित यह उपन्यास दिल को बहुत सकून देता है । बुध्दि को खुराक और हृदय की अतल गहराईयों को स्पर्श करता है । 
      यह उपन्यास इलाहाबाद में निवासरत चंदर नामक युवक की दास्तान है । चंदर कपूर एक प्रतिभावान छात्र होता है  जिसको डॉ.शुक्ला नामक प्रोफेसर अपने पास रख कर पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते है । डॉ शुक्ला की लड़की सुधा जो चंदर को निश्छल और निस्वार्थ प्रेम करती है । चंदर सुधा के पवित्र प्रेम की गहराईयों को जानता है। शारीरिक वासनाओ से परे आत्मीयता से ओत प्रोत प्रेम को महत्व देता है और वैसा ही चरित्र सुधा को गढ़ने हेतु उत्प्रेरित करता है । चंदर प्रेम की मर्यादा समझता है और प्रेयसी सुधा को समझाता है।
                चंदर एक अन्य महिला पम्मी के संपर्क में भी रहता है जो वासना के संसार को छोड़कर चंदर के पवित्रतम प्रेम पर मुग्ध हो जाती है। सुधा की चचेरी बहन विनीता जो सुधा के पास आकर रहने लग जाती है । जो सुधा और चंदर के प्रेम से बेहद प्रभावित हो जाती है । कालांतर में सुधा का विवाह कैलाश नामक व्यक्ति से विवाह हो जाता है । सुधा की दृष्टि में चंदर प्रेम का देवता रहता है ।सुधा का उसके ससुराल में स्वास्थ्य गिरता जाता है और एक दिन उसका देहान्त हो जाता है 
       उपन्यास को पढ़ते और सुनते जीवन के कई दार्शनिक पहलू सामने आते है ।बिम्बो के माध्यम से धर्मवीर भारती जी ने जो भाव भरी अनुभूतियों का चित्रण किया है वह अदभुत है । जगह जगह लगता है कोई कविता पढ़ रहे है । सम्पूर्ण उपन्यास आत्मीयता का अहसास देता है। बार बार पढ़ने का मन करता है 
              

Wednesday, March 24, 2021

तथाकथित धार्मिक लोग

धार्मिक होना अलग बात है और मार्मिक होना अलग बात है । सच्चा धार्मिक व्यक्ति करुणा दया सहानुभूति संवेदना से भरा होता है। कार्य के प्रति समर्पण और ईमानदारी उसकी पहचान होती है ।धार्मिक व्यक्ति स्वयं कठोर परिश्रमी होता है ।वह दूसरों के पसीने और मेहनत का मूल्य पहचानता है । अहंकारी नही स्वाभिमानी और स्वालंबी होता है ।दुसरो की कड़वी बाते न तो सुनना पसंद करता हैऔर नही किसी को कटु वचन बोलता है ।
                   कुछ लोग दिन रात पूजा पाठ धार्मिक अनुष्ठान प्रवचन कहते सुनते रहते है ।परंतु निरन्तर नकारात्मक विचारों का प्रवाह उनके मस्तिष्क में चलता रहता है ।ईश्वर से भी मांगते है स्वयम के लिए ।दुसरो के  अनिष्ट करने के तरह तरह के उपाय उनके दिलों दिमाग मे उठते रहते है । दान देते है यश की इच्छा के लिये लोक कल्याण की भावना न तो उनमें होती है और नही किसी का कल्याण कर सकते है ।निरन्तर निंदा स्तुति करना ही उनके जीवन का मूल मंत्र होता है ।साधना से ज्यादा साधनों को महत्व देते है । ढकोसला पाखण्ड उनकी नस नस में भरा होता है ।लोगो को भृमित करने के वे इतने अभ्यस्त होते है कि उन्हें पहचान पाना आसान नही होता
     धर्म के प्रति आम जनता का विश्वास तथाकथित ऐसे धार्मिक लोगो के कारण ही उठ जाता है । ऐसे धार्मिक लोगो के कारण धर्म काफी क्षति उठाता है । ईश्वर के प्रति श्रध्दा कम हो जाती है । सज्जनता के प्रति लोगो के मन मे आदर घट जाता है । लोग देवस्थानों और संतो के पास जाना बंद कर देते है । व्यक्ति का विश्वास अच्छाई और सच्चाई से टूट जाता है ।  एक सच्चा व्यक्ति ईश्वर से रुठ जाता है
     तथाकथित धार्मिक लोगो में हीनता की भावना इतनी गहराई तक भरी रहती है । कि वे अपने से उच्च स्तर के साधक को फूटी आंख देखना नही चाहते। वे जैसे ही ऐसे साधक को देखते उनमे एक प्रकार का शत्रु भाव पैदा हो जाता है । उनको ऐसा लगता है जैसे उनके अस्तित्व को किसी ने चुनोती दे दी है ।  येन केन प्रकारेण  उनका यह प्रयास रहता  है कि ऐसा साधक उनकी नजरो से ओझल हो जाए। ऐसे तथाकथित धार्मिक लोगो से भगवान बचाये

Monday, March 22, 2021

सौंदर्य और सौरभ

गुलाब और जीवनबाहरी सौंदर्य के साथ व्यक्ति में आंतरिक सौन्दर्य भी हो तो वह गुलाब की तरह महकता है । विचारो की सुगन्ध जब चारो और फैलती है तो व्यक्तित्व विशालता पाता है । जैसे कोई बरगद और वट वृक्ष तले राही विश्राम पाता है । कोई थका हुआ खगदल डालियो से खेलता , तिंनको को चुनता  घोसला बनाता आश्रय पाता है । व्यक्तित्व की सुरभि पाकर जो भी किसी के पास आता है । निकट आकर बैठता है बैठा रह जाता है । यह जरूरी नही कि जो बाहर से सुन्दर हो वह भीतर से उतना ही सुरभित हो । भीतर का सौंदर्य तो तब सामने आता है जब कोई व्यक्ति मुस्कराता है । मधुर बोलो से कोई स्वर गुनगुनाता है । चित्रकला संगीत नृत्य और कविता,लेखन सृजन के माध्यम से आनंद

परिवेश में बिखराता है| आंतरिक सौदर्य का महत्व हमे तब समझ मे आता है जब कोई इंसान लगातार हमारे संपर्क में रहता है और अचानक हमे छोड़ कर सदा के लिए बिछुड़ जाता  है । इस दुनिया को छोड़ कर चला जाता है। तब रह जाती है उसकी वैचारिकता चरित्र और कृतित्व की खुशबू  जिसकी स्मृति मात्र हमे सुरभित कर देती है 
     सुंदरता वस्तु या व्यक्ति में नही होती ।देखने वाले की दृष्टि में होती है । जिसे हम चाहते है भले ही वह औसत चेहरे का हो हमे विश्व का सम्पूर्ण सौंदर्य उसमे दिखाई देता है । जिसे हम न चाहे वह चाहे कितना भी खूबसूरत हो हमे बिल्कुल सुहाता नही  निरन्तर आंखों में खटकता रहता है।
दुर्लभ और खुरदरा पाषाण का पिण्ड भी अमूल्य हो जाता है और चिकना संगमरमर के पत्थर भी शिल्पकार की राह तकता रह जाता है । हमारा देखने का दृष्टिकोण हमारे वैचारिकता को नवीन आयाम देता है । हमारी कल्पनात्मकता सृजनात्मकता का स्त्रोत होती है । इसलिए हमें वैचारिक दृष्टि सदा समृध्द रहना चाहिये । हम जिन लोगो के बीच मे रहे भले ही आर्थिक रूप से अधिक सम्पन्न न हो ज्ञान और अनुभव और प्रतिभा की दृष्टि से वे हमसे अधिक श्रेष्ठ हो