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Sunday, May 24, 2015

एक था हीरालाल

हीरालाल का पूरा जीवन जन सेवा एवम् राष्ट्रसेवा में बीता शासकीय सेवक रहते भी वह अपने कर्मचारी भाइयो मदद में लगा रहता था पत्नी की मृत्यु और मातृविहीन एक पुत्री और दो पुत्रो की परवरिश ने उसको समझोता परस्त बना दिया था जीवन में उसके
समस्या सुलझाने के तरीके अनोखे थे वह जैसे ही समस्या सुलझाने के लिए आगे बढ़ता समस्याएं और गहराती जाती हीरालाल इन सभी चीजो से बेफिक्र हो
अपनी कथित राष्ट्र सेवा में लगा रहता हीरालाल एक विशेषता थी की वह सदा उस व्यक्ति के साथ खड़ा रहता जो जीवन में किसी न किसी कारण असफल हो गया हो  इसे हीरालाल की सदाशयता कहे या जीवन के प्रति अव्यवहारिक दृष्टिकोण इससे हीरालाल को कोई प्रभाव नहीं पड़ता चरैवेति चरैवेति का मन्त्र का जप करते अपने चुने रस्ते पर चलता रहता आज हीरालाल अपने जीवन के पच्चाहत्तरवे  बसंत को पूर्ण कर चूका है परन्तु परेशानिया और जिम्मेदारिया बढती ही जा रही है आलोचक हीरालाल की इस दशा का उत्तरदायी उसे ही मानते है कि हीरालाल ने उन जिम्मेदारिया भी ओढ़ ली जिसे ओढ़ लेना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है परन्तु हीरालाल अपनी धुन पक्का है उसकी मान्यताये धारणाये को ध्वस्त करना इस उम्र में संभव नहीं है

Saturday, May 23, 2015

सपना का त्याग

सपना मध्यमवर्गीय परिवार की लाडली लड़की थी कुशाग्र बुध्दि की बालिका परिवार के प्रति अपने दायित्व को भली भाँती समझती थी माता पिता और तीन छोटी बड़ी बहनो सहित एक भाई का सुखी और संतोषी परिवार के बीच सपना स्वयम को पा अपना जीवन धन्य समझती थी शिक्षा पूरी होने के बाद सपना एक शासकीय कार्यालय में लिपिक का पद पा चुकी तो परिवार में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई  सपना जैसी सुयोग्य कन्या पाकर कौन माता पिता ऐसे है स्वयं को भाग्यशाली नहीं समझते धीरे धीरे सपना पर बहनो की शादी का दायित्व भाई के पढ़ाई की जिम्मदारी भी आ गई  पंद्रह साल कैसे बीत गये पता ही नहीं चला सभी बहनो की शादिया हो चुकी थी भाई भी ग्रेजुएट हो चुका था पर कुछ बचा था तो वह सपना का अविवाहित दायित्वों से भरा जीवन और बूढ़े माता पिता

रतिराम का प्रायश्चित्त

रतिराम एक अच्छी नोकरी  पा चूका था I
सुन्दर पत्नी दो नन्हे प्यारे बच्चे सरकारी मकान
और नई नवेली मोटर सायकिल खुशहाल जीवन
रतिराम के तीन भाई और थे रतिराम खर्च करने में बहुत उदार था 
परिवार का सबसे बड़ा भाई होने के नाते छोटे भाईयो  को आर्थिक रूप से स्वालम्बन बनाना वह अपना दायित्व समझता था | पिता अत्यंत निर्धन गाव के सीधे साधे व्यक्ति
मंदिर से घर घर से चाय की दूकान उनकी दिनचर्या बन चुकी थी |आखिर रतिराम जैसा कमाऊ पूत जो पाया था |
धीरे धीरे रतिराम का सारा ध्यान अपनी पत्नी बच्चों से हट सारा ध्यान अपने भाईयो की और चला गया |
आज बीस साल हो गए रतिराम बहुत खुश था |अपने सभी भाइयो को आत्म निर्भर देख कर भाइयो की पत्नी और बच्चों को खुशहाल देख कर पर अगर कुछ नहीं उसके पास तो वे उसके छोटे छोटे बच्चे जो हो गए थे बड़े बिना पिता के सरंक्षण के खो चूका था रतिराम अपनी पत्नी का स्नेह और बच्चों का सानिध्य ||बची थी रतिराम के पास प्रायश्चित्त कि वह भावना कि काश वह भी अपने बच्चों की और दे पाता तो उसने भी पाये होते कमाऊ पूत

Wednesday, May 20, 2015

उत्तम वस्तु और दृष्टिकोण

कई बार हम अपने दिमाग में किसी वस्तु के बारे में क्रय किये जाने का संकल्प करके बाजार जाते है दुकान में प्रवेश करने के बाद विक्रेता हमारी मन पसंद वस्तु बताते हुए कहता है कि बाबूजी आप भले ही अपनी मन पसंद वस्तु खरीद लेना परन्तु एक नई वस्तु भी मै बताना चाहुगा पसंद आये तो विचार कर लेना जैसे ही विक्रेता हमें वह वस्तु बताता है देखते ही हम वह वस्तु भूल जाते है जिस वस्तु को खरीदने की मानसिकता बना कर आये थे  यह एक तरफ तो दूकानदार की विक्रय करने की कुशलता का द्योतक है वही दूसरी और हमारी सीमित सोच और वास्तविक तथ्य में भिन्नता दर्शित करता है जरुरी नहीं की उत्तम वस्तु वह हो जो जिसको हम पसंद करते है हो सकता है की सर्वोत्तम वह हो जिसके बारे में हम जानते नहीं है

Saturday, May 16, 2015

व्यक्तित्व निर्माण की पाठशाला

इस दुनिया में दो प्रकार के स्वभाव वाले व्यक्ति होते है एक प्रकार के वे लोग है जिनको ये पता नहीं होता कि वे क्या बोल रहे है उन्हें क्या बोलना चाहिए ऐसे व्यक्तियो की बात का कोई मूल्य नहीं होता समाज में कोई स्थान नहीं होता भले ही वे स्वयं को कितना ही महत्वपूर्ण व्यक्ति समझ ले बड़ी बड़ी डींगे हांकना अनावश्यक निंदा स्तुति ऐसे व्यक्तियो का स्वभाव होता है  दूसरे प्रकार के वे व्यक्ति होते है जिनके शब्दों का मूल्य होता है अनावश्यक न तो किसी की प्रशंसा करते है न ही किसी की निंदा ऐसे व्यक्ति क्षमता और प्रतिभा से परिपूर्ण होते है उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता  ऐसे व्यक्तियो को स्वयं के बारे में कोई भ्रान्ति नहीं होती अपितु समाज में उनकी बात को ध्यान से सूना जाता है और उसको महत्व दिया जाता है  हमें स्वयं का मूल्यांकन कर सोचना चाहिए कि हमारा स्वभाव क्या है यही मानदंड हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते है व्यक्तित्व निर्माण की यही पाठशाला है

Tuesday, May 12, 2015

व्यक्ति और व्यक्तित्व

व्यक्ति अपनी छोटी छोटी आदतो पर ध्यान नहीं देता है
जबकि एक ही प्रकार की आदत लंबे समय तक बने रहने पर वह व्यक्तित्व की अंग हो जाती है कई प्रकार की बुरी आदते बुरे व्यक्तित्व का निर्माण कर देता है संसार में जितने भी महान व्यक्तित्व हुए है वे छोटी छोटी बहुत सी  अच्छी आदतो के कारण हुए है
व्यक्तित्व निर्माण एक दीर्घ और सतत् प्रक्रिया है
छोटे छोटे प्रलोभनों के कारण हम अपना कितना बड़ा दीर्घकालिक नुकसान कर बैठते है यह हमारे बौने व्यक्तित्व का ही परिणाम  है मानसिक दरिद्रता और विकलांगता  व्यक्ति के संकीर्ण सोच और सीमित क्षमता का परिचायक है ऐसी संकुचित मनोवृत्ति का व्यक्ति निकृष्ट व्यक्तित्व का प्रतीक होता है

Monday, May 11, 2015

गरीबी ??

आज के युग में सबसे अधिक कोई शब्द प्रचलित हैं तो शायद वह शब्द गरीब होना चाहिये ,
आज - कल लोगों को इससे बहुत लगाव है खासकर के राजनैतिक दलों  का तो अस्तित्व ही इस एक शब्द पर खडा है कुछ एक दलों ने तो इसी के सहारे सत्ता काे बरकरार रखा गरीब और गरीबी है तो सत्ता है यह मंत्र उन्हे कण्ढस्थ है तो गरीबी तो हटनी ही थी ?
खैर इसके लिये केवल राजनैतिक दलों को पुरा दोष देना भी उचित नही
क्योकि व्यक्ति गरीब पैदा अवश्य हो सकता है पर गरीबी में जीना और मरना यह उसके हाथों में हैं
यदि यहा आप गरीबी का आशय आर्थिक दरिद्रता से ही समझ रहे है तो में आपको स्पष्ट कर दूं की यह बहुत संकुचित अर्थ है और इसका अर्थ तो बहुत व्यापक हे
जैसे
मानसिक दरिद्रता
शारिरक दरिद्रता
और सबका परिचित आर्थिक दरिद्रता
आर्थिक गरीबी पाप नहीं है परन्तु मानसिक गरीबी होना बहुत बडा अपराध है यही वह गरीबी है जो व्यक्ति को आजीवन राजनैतिक दलों की निर्भरता और आर्थिक तंगी का मोहताज बनाये रखती है वरना किस की हिम्मत है कि वह मानसिक्ता सम्पन्न व्यक्ति को मुर्ख बना अपनी सत्ता की रोटिया सेंक सके ?
हमारे देश में तो आर्थिक दरिद्रता का कभी उपहास नहीं बनाया गया एसे कई व्यक्ति हुये जो आर्थिक रूप से भलें ही गरीब रहे हो पर उनकी मानसिक सम्पन्नता ने उन्हे लोकपूजक बना दिया आप स्वयं उन नामों को भलीभातीं जानते है
दुसरी शारिरिक गरीबी में यहा यह स्पष्ट कर दूं की में विकलागंता को शारिरिक गरीबी की श्रेणी में नही रखता क्योकि विकलांगता व्यक्ति की गति कम कर सकती हे पर उसे रोक नही सकती एसे भी कई उदाहरण मिल जायेगे जहॉ शारिरिक चुनौति के बावजुद लोगों ने असम्भव कार्य कर दिखाये है
अत: शारिरिक गरीबी वह है जो व्यक्ति को ईश्वर प्रद्त इस अनमोल सम्पदा के प्रति उदासीन रवैया रखने के परिणाम स्वरूप द्रष्टिगत होता है खैर विषय बहुत लम्बा है और समय कम ..............