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Sunday, May 24, 2015

एक था हीरालाल

हीरालाल का पूरा जीवन जन सेवा एवम् राष्ट्रसेवा में बीता शासकीय सेवक रहते भी वह अपने कर्मचारी भाइयो मदद में लगा रहता था पत्नी की मृत्यु और मातृविहीन एक पुत्री और दो पुत्रो की परवरिश ने उसको समझोता परस्त बना दिया था जीवन में उसके
समस्या सुलझाने के तरीके अनोखे थे वह जैसे ही समस्या सुलझाने के लिए आगे बढ़ता समस्याएं और गहराती जाती हीरालाल इन सभी चीजो से बेफिक्र हो
अपनी कथित राष्ट्र सेवा में लगा रहता हीरालाल एक विशेषता थी की वह सदा उस व्यक्ति के साथ खड़ा रहता जो जीवन में किसी न किसी कारण असफल हो गया हो  इसे हीरालाल की सदाशयता कहे या जीवन के प्रति अव्यवहारिक दृष्टिकोण इससे हीरालाल को कोई प्रभाव नहीं पड़ता चरैवेति चरैवेति का मन्त्र का जप करते अपने चुने रस्ते पर चलता रहता आज हीरालाल अपने जीवन के पच्चाहत्तरवे  बसंत को पूर्ण कर चूका है परन्तु परेशानिया और जिम्मेदारिया बढती ही जा रही है आलोचक हीरालाल की इस दशा का उत्तरदायी उसे ही मानते है कि हीरालाल ने उन जिम्मेदारिया भी ओढ़ ली जिसे ओढ़ लेना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है परन्तु हीरालाल अपनी धुन पक्का है उसकी मान्यताये धारणाये को ध्वस्त करना इस उम्र में संभव नहीं है