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Thursday, November 26, 2015

जीवन के सूत्र

दूसरे व्यक्ति के परिश्रम धन और समय का मूल्य वह व्यक्ति ही समझ सकता है जो स्वयं परिश्रमी और समय का पाबन्द हो दुसरो को ईमानदारी का पाठ पढाने वाला स्वयं ईमानदारी से कार्य करे तो उसका मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है अन्यथा वह मात्र उपदेश ही रह जाता है जीवन में जिसने पुरुषार्थ से कुछ भी नहीं पाया उसके मुख से त्याग की बाते अच्छी नहीं लगती
सभी सुख सुविधाये विद्यमान रहते अभावो रहने का अभ्यास सच्चा वैराग्य है स्वास्थ्य अच्छा रहने के बावजूद अल्प आहार ग्रहण करना भी व्रत के सामान है स्वास्थ्य खराब होने पाचन तन्त्र अनियमित होने जो व्रत करे वह व्रत उपवास न होकर उपचार है जैसे कोई व्यक्ति एक दिन के व्यायाम से पहलवान नहीं बन जाता उसी प्रकार कोई व्यक्ति क्षणिक अध्धयन से विद्वान नहीं बनता निरंतर अभ्यास किसी भी क्षेत्र में पूर्णता प्राप्त करने के लिए अभ्यास करना आवश्यक है

Wednesday, November 25, 2015

शुभ लाभ

लाभ हमेशा शुभ हो यह आवश्यक नहीं है
अनुचित साधनो उपायो से 
अर्जित लाभ अशुभ होता है 
ऐसा लाभ आपने साथ 
अशुभ संकेतो को ले आता है
इसलिए हिन्दू रीती रिवाजो 
तीज त्यौहारो पर शुभ को लाभ से 
अधिक महत्व दिया गया है 
कर्म यदि शुभ हो तो लाभ प्राप्त हो ही जाता है
 अधिक न सही पर जितनी मात्रा में भी हो 
शुभ कर्मो से लाभ प्राप्त होता है 
वह इस प्रकार का निवेश होता है 
जिससे निरंतर लंबे समय तक 
कई प्रकार के लाभ मिलते रहते है 
जबकि लाभ को आगे रख कर 
जो भी कार्य किया जाता है 
उसमे अशुभ कर्म की प्रधानता रहती है
 ऐसे कर्मो से अर्जित धन तमो गुण से युक्त होता है अतः लाभ शुभ के स्थान पर 
शुभ लाभ का अधिक महत्व है 
जो व्यक्ति केवल लाभ की भावना से कार्य करता है उसे समाज में स्वार्थी कहा जाता है
 और जो व्यक्ति शुभ संकल्पों की 
पूर्ति के लिए पुरुषार्थ करता है
 उसे परमार्थी परोपकारी कहा जाता है 
 समाज में लाभ के साथ प्रतिष्ठा भी प्राप्त करता है

Tuesday, November 24, 2015

सुख और दुःख

सुख दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू है
सुख कोई  परोसी हुई थाली नहीं है
 जो सीधे ही किसी को सहज ही प्राप्त हो जाए 
वास्तव में हम रिश्तों से सुख उठाना तो चाहते है 
पर रिश्तों को सीचना नहीं चाहते 
दुसरो को सुख देना नहीं चाहते 
परन्तु स्वयं सुख पाना चाहते है 
सुख और दुःख क्रिया और प्रतिक्रिया है 
यदि  सुख पाना चाहते है तो 
तो दुसरो को सुख देना होगा 
यदि हम किसी प्रकार के दुःख भोग रहे है तो 
अवश्य ही हमारे जाने अनजाने कर्मो से 
कोई व्यक्ति दुखी रहा होगा
व्यक्ति सुखी होने होने के ढेरो उपाय करता है
 साधनो में सुख ढूंढता है 
पर सुख प्राप्ति का सामान्य सूत्र नहीं जानता 
कई लोग तो दुसरो के दुःख में अपना सुख ढूँढते है और दूसरे के सुख में अपना दुःख
 ऐसे व्यक्ति सुखी होने के  लिए
 दुसरो को दुखी करने के लिए 
तरह तरह के उपाय करते है 
दुःख होता नहीं दुःख पैदा करते है 
भूल जाते है कि सुख मिलता नहीं है 
सुख कमाना पड़ता है

Friday, November 13, 2015

राहुल की जिद

राहुल हर बात के लिए जिद करता था छोटी छोटी वस्तुओ की मांग पर वह अड़ जाता था जीवन मरण का प्रश्न बना लेता था आखिर उसकी जिद पूरी करने वाले उसके पिता जो थे  धीरे धीरे राहुल उम्र बढ़ती गई पिता से उसकी अपेक्षाएं भी उसी अनुपात में बढ़ने लगी महंगाई के इस युग राहुल के पिता की सीमित आय राहुल की जिद पूरी करने में समर्थ नहीं थी राहुल का स्वकेंद्रित स्वभाव कभी खुद की असीमित आवश्यकताओ के आगे सोचने का अवसर प्रदान नहीं करता परन्तु निरंतर दायित्वों के भार और ढलती हुई उम्र के कारण राहुल के पिता का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था अचानक राहुल पिता के देहांत की सूचना ने राहुल को हतप्रभ कर दिया  घर में कुआरी बहन की शादी छोटे भाई की पढ़ाई का दायित्व का खर्चा कहा से उठाये राहुल अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति ही नहीं कर पा रहा था अब राहुल की जिद पालने वाला शख्स जो नहीं रहा जिद जिसके बलबूते राहुल हर बात मनवा लेता था अब कुंठा और तृष्णा का कारण बन चुकी थी

Tuesday, November 10, 2015

जीवन एक त्योहार

हमारा भारतवर्ष उत्सवों ,त्योहारों का देश है जो किसी ना किसी तरह हमें प्रभावित अवश्य करते है त्योहार बेरंग उदासीन जीवन में रंग भरता है तो कोई किसी के अधियारे जीवन मे प्रकाश करता है त्योहार हमें प्रसन्न करने का हमारी उदासीनता दूर करने का अवसर है इसके विश्लेषण से पता चलता हे की हमारे पूर्वजों ने  हमारे लिए एेसे समाज की व्यवस्था की जो हमारे  तनावपूर्ण  और उदासीनता भरे जीवन में प्रसन्नता उत्साह  व उमंग लाए त्योहारों के माध्यम से एक बार पुनः आने वाले संकटो  विपदाओ से दो -दो हाथ करने को  और उनसे जीतने को हम मजबूती से डटे रहे एक और बात गौर करने योग्य है त्योहार हमें भीतर से प्रसन्नता देते है कोई भी त्योहार आने से पहले ही हम प्रसन्नता का अनुभव करते है एक नये जोश व उत्साह के साथ उसके स्वागत  और तैयारियों में जुट जाते हे ये बाहरी नही अपितु भीतरी आनन्द का परिणाम है आश्य ये हे कि त्योहार आपके भीतर है प्रसन्नता आपके ही अंदर है इसलिये हम चाहे तो वर्षभर प्रसन्न रह सकते है हर दिन त्योहार मना सकते है जीवन का पर्याय त्योहार बन जाये यही जीवन की सफलता है।

Friday, November 6, 2015

असहिष्णुता

लंबे समय तक राजसत्ता का 
सुख भोगने के आदि हो चुके लोग 
जब सत्ता से बेदखल हो जाते है 
तब वे लोग सत्ता पर 
अपना नैसर्गिक और वंशानुगत अधिकार 
समझने लगते है 
विपक्षियो को सत्ता के किसी पद पर बैठा देखना 
उन्हें बर्दाश्त नहीं होता है 
ऐसे व्यक्ति लोकतांत्रिक तरीके से
 निर्वाचित व्यक्तियो को भी सिंहासन पर
 बैठा नहीं देख सकते ।
तरह तरह से भ्रामक प्रचार और उपाय कर 
वे प्रशासन पर प्रश्न चिन्ह लगाते है 
यह सोच ही सामन्तवादी 
और असहिष्णु सोच कहलाता है 
असहिष्णु और सामन्तवादी सोच वाले 
व्यक्तियो द्वारा अतीत में पोषित 
उपकृत अलंकृत और पुरस्कृत 
व्यक्तियो द्वारा भी उनके विचारो का 
समर्थन कर ऐसे सोच को 
नैतिकता का आवरण पहनाया जाता है 
समाज और देश के हालात का 
असत्य प्रस्तुतिकरण कर 
कृत्रिम समस्याओ को 
अनुचित मंचो पर उठाया जाता है
 इसी भावना को असहिष्णुता कहते है 
लोकतांत्रिक व्यवस्था से पोषित 
इस देश में अभिव्यक्ति का अधिकार 
हर व्यक्ति को है 
पर अभिव्यक्ति सीमाये
 निर्धारित भी जानी आवश्यक है 
कोई अभिव्यक्ति किसी धर्म समाज
 या व्यक्तियो के समूह की भावनाओ को 
इस हद तक अपमानित कर दे
 कि समाज में आक्रोश उतपन्न हो जाए
 तो विचारो या विचारो को किसी कृति के माध्यम से व्यक्त करने वाले व्यक्ति को 
अपनी कृति की विषय वस्तु पर  
पुनर्विचार करना चाहिए ।
जान बूझकर किसी को उत्तेजित करने के आशय से व्यक्त विचारो के पक्ष में 
यह तर्क नहीं दिया जा सकता है 
कि हमे तो संविधान ने 
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है 
और वर्तमान में वैचारिक असहिष्णुता का
 वातावरण निर्मित हो चुका है

श्रीराम का संघर्ष और उसकी शुचिता

श्रीराम के पास चार कलाये 
श्रीकृष्ण के पास सोलह कलाये 
और श्री हनुमान के पास चौसठ कलाये थी
श्रीराम मर्यादा को स्थापित करने आये थे 
मर्यादित होकर सादगी पूर्ण जीवन जीने के लिए 
व्यक्ति को अपनी विशिष्टता दर्शाना
 आवश्यक नहीं होता है 
सीमित संसाधनों के बल पर 
विषम परिस्थितियों में में क्या किया जा सकता है समाज में सामूहिक चेतना जगा कर 
उसे संगठित कर अत्याचार के विरुध्द 
किस प्रकार प्रतिकार किया जा सकता है 
यह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने प्रमाणित किया था इसके लिए श्रीराम ने वन में रहने वाले 
वनवासियों का सहयोग लिए 
अतिशयोक्ति पूर्ण भाषा में उन्हें वानर कहा गया ।वर्तमान में जो लोग नक्सलवादी सोच रखते है 
उन्हें  श्रीराम से सीखना चाहिए 
तथा अपने अभियान उसके उद्देश्य और साधनो की पवित्रता के सम्बन्ध में विचार करना चाहिए 
यदि पवित्र उद्देश्य है 
तो स्थानीय निवासियो स्थानीय संसाधनों को संघर्ष का माध्यम बनाया जा सकता है 
अपने देश की धरती पर विदेशियो से प्राप्त और शस्त्र से किया गया संघर्ष देश द्रोही बनाता है

Wednesday, November 4, 2015

कलयुगी भक्त

ध्यान लगाना हर किसी के बस की बात नहीं भगवान के सामने घन्टों बैठने के बाद भी एक पल ध्यान लग जाये तो व्यक्ति धन्य हो जाये ये सब सतयुगी चौचले है ध्यान ना लगने में भक्त की नहीं भगवान में ही कोई डिफाल्ट होगा अब भगवान भी समय और देशकाल के अनुसार होना चाहिए भई आज के लोग कोई ओल्ड फैशन के तो हे नहीं पहले इस्तेमाल करे फिर विश्वास करे का चलन हे फिर भगवान के बारे मे भी ये सब सोचना जरूरी है कोई तपवप ना होगा यूज एन्ड थ्रो की पॉलिसी है कलयुगी भक्त भक्ति से पहले सौ बार तोलेगा कोई घाटे का सौदा करने का काम नहीं है भक्ति आज कल तो भईया जो भक्त की मनोवांछित मुराद पूरी करेगा भक्त उसी भगवान की जय-जय कार करेगा इष्ट बदलना तो आजकल फैशन हे आदमी बाप बदल लेता हे फिर धर्म और भगवान बदलना कौनसा पाप हो गया?
और हे भी तो डरने की कोनों बात नहीं जेब मे चिल्लर  बहुत हे और दान-पेटीया भी अब भगवान अपने मुँह से तो माँगेगे नहीं कलयुगी भक्त बड़ा ही समझदार है  बिना बोले ही सब समझ जाता है भगवान को गरज हे एेसे भक्तों की भला  कलयुगी भक्त  को किसकी गरज है
ध्यान लगाना है तो मोबाइल के सामने बैठ जाओ बड़ा तगडा भगवान हे भईया हाथ में लेते ही ध्यान लग जाता है घन्टों का पता नहीं चलता कब गुजर गये और ध्यान भी एेसा गहरा की सामने बच्चा डूब जाये  कोई मर जाये घर में आग लग जाये या ट्रक आ जाये तो भी समाधि ना टूटे अरे ये बच्चे घर सब मोह-माया हैं इसी देवता के कारण कितने ही स्वर्गपुरी पहुंच गये भक्त और भगवान का मिलन हो गया भईया कलयुगी भक्त को जम गया मोबाइल भगवान सारे काम हो रहे है मंदिर जाने का टाइम कहां ? दानपेटिका  भी अटैच आता है थोड़ा सा दान दो तो प्रसाद मे अमृत तुल्य नेटडेटा प्राप्त होता है फिर क्या चिंता इस नश्वर संसार की और कर्म योग से श्रेष्ठ भक्ति योग है अब कलयुगी भक्त की च्वाईस हे की वह किसकी भक्ति करे बाल बच्चे माँ बाप पति पत्नी सब मोह-माया है अब जो कलयुगी भक्त जो करे वो कम है ।

Tuesday, November 3, 2015

प्रश्नो के जबाब

कई प्रश्नो के जबाब नहीं होते
कई समस्याएं के हल नहीं होते
बाधाये कई ऐसी जिनको पार करना
हर किसी के लिए संभव नहीं है
सपने हम कई देखते है है
पर हर सपना सच नहीं होता
अपनापन लिए मिलने वाला हर शख्स
अपना नहीं होता
जो अपना सा लगे
वह अपने संग नहीं रहता
जो अपने को सच्ची और अच्छी लगे
वह अपने को मिल जाए या संभव नहीं है
जीवन में  कष्ट पाये बिना
कोई वस्तु सहज ही मिल जाए 

ऐसा  कोई अनुभव नहीं है
अनुभव और ज्ञान दोनों एक साथ हो
यह बिलकुल आवश्यक नहीं है
जीवन में है कितनी सारी विसंगतियों
इन विसंगतियों को झेल सको तो झेलो
या इन विसंगतियों से दुखी रहो
या इन संग रहो इनसे खेलो
अनुत्तरित रहे सारे प्रश्नो के भी कई हिसाब है
जीवन में है कई अनसुलझी पहेलिया
वक्त के पास होते उनके जबाब है

Monday, November 2, 2015

आंसू की बूंदे

अश्रु ममता भाव भरा अश्रु करुणा जल
अश्रु से है प्यार हरा सम्वेदना कल छल

आँसू मीठी प्रीत रही आँसू विरह गीत
आँसू के ही साथ रही गिरधर तेरी प्रीत

आसु निकले राज है आँसू के कई काज
आँखों मोती रूप रहा आँसू है सरताज

राधा तेरी प्रीत से मोहन क्यों अनजान
आँसू भक्ति रीत रही आंसू रस की खान

आंसू जल की बूँद नहीं ,शब्दहीन है गीत
फुट फुट रोये श्याम है मित्रवत है रीत 

Sunday, November 1, 2015

घटिया प्रयास

ये तो स्पष्ट है कि जब वातावरण अनुकूल होता है तब जनसंख्या वृद्धि होती है और जब वातावरण प्रतिकूल होता है तो पलायन और मृत्यु दर में वृद्धि.... इससे स्पष्ट हे कि भारत में तथाकथित अल्पसंख्यको के लिए वातावरण अनुकूलता लिए हुए है क्योंकि उनकी जनसंख्या दर में वृद्धि हुई है ...
वहीं सिरीया लीबिया व अन्य देशों में पलायन व मृत्युदर में वृद्धि हुई है फिर तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा देश के वातावरण को प्रतिकूल बता...
विरोध करना तथ्यों से प्रतिकूल है। व देश के सौहार्दपुर्ण वातावरण व छवि को धुमिल कर क्षणिक प्रसिद्धि पाने का घटिया प्रयास मात्र है।