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Friday, December 13, 2013

गरीबी क्या है ?

गरीबी क्या है ?
गरीबी को अलग अलग लोगो ने अलग तरह से
 परिभाषित किया है 
गरीबी के लिए मानक निर्धारित किये गए 
गरीबी के लिए तय किया गया है कि एक गरीब 
व्यक्ति कि प्रतिदिन कि आय क्या होनी चाहिए 
परन्तु क्या यही सत्य है कि गरीबी को मात्र व्यक्ति 
कि आय से जोड़ा जाय यदि ऐसा है 
तो प्राचीन काल में जितने भी ऋषि मुनि वनो में रहते थे 
जिनकी कोई आय नहीं थी वन पर निर्भर थे क्या गरीब थे 
बिलकुल नहीं वे तो अध्यात्मिक सत्ता के प्रतीक थे 
राज सत्ता के लिए मार्ग दर्शक थे 
वास्तव में गरीबी का आधार मात्र आय नहीं हो सकता 
स्थान परिवेश जीवन शैली से 
गरीबी कि परिभाषाये निरंतर बदलती रहती है 
गरीबी के लिए मानसिक स्थितिया भी उत्तरदायी होती है
व्यक्ति में संतुष्टि का स्तर क्या है 
किस व्यक्ति कि आवश्यकता किस प्रकार कि है 
यह सब गरीबी को समझने के लिए अनिवार्य है 
पर इन सब बिन्दुओ पर दृष्टिपात कौन करता है 
गरीबी को तो लोगो ने समाज सेवा का माध्यम बना लिया है 
कुछ लोगो के लिए गरीबी रोजगार का साधन है
 ग्रामीण परिवेश में गरीबी के लिए अलग मानक होंगे तो कस्बो में भिन्न 
महानगरीय जीवन शैली में व्यक्ति कि अधिक आय भी 
उसके अभावो को दूर नहीं कर सकती 
इसलिए गरीबी निर्धारण के लिए 
कोई सीधी और सरल रेखा नहीं हो सकती

आम आदमी

वर्त्तमान  में हुए चुनावो में आम आदमी को 
चर्चा का विषय बना दिया है 
आम आदमी के लिए प्रसन्नता का यह विषय है कि 
उसके नाम पर एक राजनैतिक दल का उदय हो गया है 
आम आदमी के साथ समस्या यह रही है कि 
उससे जुडी समस्याओ से जुड़ कर हर कोई राजनीति में 
आगे बढ़ना  चाहता है अपना कद और हैसियत बढ़ाना चाहता है 
पर आम आदमी वही रह जाता है 
और आम आदमी को पायदान बनाने वाला आगे बढ़ जाता है 
आखिर आम आदमी है क्या ?हम आम आदमी किसे कहेंगे ?
आम आदमी कि पहचान क्या है?
 इस दुविधा को दूर करने के लिए 
आम आदमी के हाथ में झाड़ू थमा दी गई है 
और उसके सिर पर टोपी रख दी गई है 
तो क्या मात्र टोपी पहन लेने से कोई आम आदमी हो जाता है 
अब तो लोगो में आम आदमी बनने के लिए प्रतिस्पर्धा होने लगी है
 जो किसी जमाने में ख़ास आदमी बनने के लिए 
हुआ करती  थी अभी तक यह माना जाता था कि 
आम आदमी याने आम +आदमी  अर्थात जो मीठे आम कि तरह 
मीठा जिसको आराम से खाया जा सके 
जिसे सरलता से सभी जगह पाया जा सके 
परन्तु जब से आम आदमी के नाम से 
राजनैतिक दल का उदय हुआ 
यह धारणा भी बदल गयी ऐसी स्थिति बन चुकी है 
कि न तो उगला जा रहा है न ही निगला जा रहा 
आम आदमी के कारण ख़ास आदमी परेशान ही नहीं हैरान है