बहु तेरे इंसान भाग्य और भगवान् को दोष देते है
हर असफलता के लिए स्वयं का मूल्यांकन न कर
परिस्थितियों को उत्तरदायी ठहराते है
सफलता मिलने अहंकार से युक्त हो जाते है
तथा सफलता का श्रेय स्वयम के पुरुषार्थ को देते है
इसी प्रकार की प्रवृत्ति वर्तमान में युवा पीढ़ी में भी पाई जाती है
की वे अपनी स्थितियों के लिए अपने माता पिता को कोसते है
ऐसी परिस्थितियों में ऐसे व्यक्तियों के शीश से
भगवान् और भौतिक माता -पिता आशीष हट जाता है
और वे जहा जाते है दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ता है
इसलिए सफलता प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग यह है
की भगवान् भाग्य और माता पिता को दोष देना छोड़ कर
उनका आशीष साधना और सेवा कर प्राप्त कर
इसमें कर्म के प्रति अहंकार का भाव समाप्त होगा
आशीर्वाद से ऊर्जा प्राप्त होगी ऊर्जा से पुरुषार्थ और पुरुषार्थ से
जीवन में सर्वांगीण विकास के द्वार खुलते जायेगे