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Friday, January 30, 2015

समय सुविधा और स्वास्थ्य

 जीवन  में समय धन और स्वास्थ्य का
 अपना अपना महत्व है 
सुविधाये पाने के लिए धन की आवश्यकता होती है 
सुविधाओ के उपभोग के लिए समय और स्वास्थ्य चाहिए 
स्वास्थ्य कितना भी अच्छा हो 
समय नहीं हो तो
 व्यक्ति सुविधाओ का उपयोग उपभोग नहीं कर पाता  है 
समय पर्याप्त हो पर स्वास्थ्य नहीं हो तो
 अस्वस्थ  व्यक्ति के लिए सारी  सुविधाये व्यर्थ है 
इसलिए सबसे अधिक भाग्यशाली वह है 
जिसके पास समय धन और स्वास्थ्य तीनो हो
भाग्यशाली व्यक्ति धन से सुविधाये जुटा सकता है 
पर्याप्त समय होने पर उत्तम स्वास्थ्य के कारण 
सुविधाओ का उपयोग कर सकता है
परन्तु विधि की विडम्बना देखिये  
 व्यक्ति के पास जब समय था 
तब धनाभाव के कारण सुविधाये नहीं थी 
जब  सुविधाये  उपलब्ध हुई तब समय नहीं है 
और जब समय और सुविधाये दोनों रहे 
तब सुविधाये के लिए स्वास्थ्य नहीं रहा 
इसलिए समय को थाम को रखो 
स्वास्थ्य को सम्हाल कर रखो
 

Friday, January 9, 2015

स्वर्ग नरक की अवधारणा

सनातन धर्म में स्वर्ग नरक की अवधारणा है 
जिसके पीछे यह तर्क दिया गया है 
की शुभ कर्मो को करने वाले पुण्यात्मा को 
स्वर्ग की प्राप्ति और दुष्कर्मो करने वाली आत्मा को
 नरक की प्राप्ति होती है  
उपरोक्त अवधारणा की समय समय पर 
आलोचकों द्वारा कटु आलोचनाएँ की जाती है
 और वैज्ञानिक तथ्यों से परे  बताया जाता है
 परन्तु व्यवहारिक जगत में देखे तो 
  उपरोक्त अवधारणा के सफल प्रयोग और उदाहरण हमें मिलते है व्यवहारिक जगत में स्वर्ग क्या है स्वर्ग वहा है
 जहा मन चाही  वस्तु पाई जा सके
 केवल संकल्प से साधन की प्राप्ति हो जाए 
सुख के शान्ति भी प्राप्त हो समृध्दि को निरंतरता मिलती रहे 
नरक कहा है? नरक वहा है
 जहा अभाव हो कठिनाइयाँ हो असुरक्षा आतंक भय व्याप्त हो 
थोड़ी देर के लिए कोई दुष्टात्मा व्यक्ति 
ऐसे स्थान पर पहुंच जाए जो स्वर्ग तुल्य हो 
तो निश्चय ही वहा का वातारण कलुषित हो जाएगा 
स्वर्ग  नरक बनाने में कोई देरी नहीं लगेगी
 वह अपने दुष्कर्मो से उन वस्तुओ से भी वचित हो जाएगा
 जो सहज और सरलता से उसे उपलब्ध हो सकती थी
  इसलिए ऐसे व्यक्ति के कर्म ही नरक के  जनक होते है 
इसलिए शुभ कर्मो को धारण करने वाली पुण्यात्मा को 
स्वर्ग प्राप्ति का विधान है

Wednesday, January 7, 2015

वचन के पालन द्वारा सेवा

माता पिता और गुरु जनो  की सेवा का 
बहुत अधिक महत्व है 
सेवा व्यक्ति को मन कर्म वचन से करनी चाहिए 
परन्तु बहुत कम  लोग माता पिता और गुरु जनो की सेवा
 वचन के पालन द्वारा कर पाते है 
मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने तो अपने माता पिता की सेवा 
वचन के पालन द्वारा ही की थी 
भीष्म पितामह द्वारा उनके पिता शांतनु की ईच्छा  की 
पूर्ति हेतु की गई प्रतिज्ञा 
वचन के पालन द्वारा सेवा ही तो थी 
जो पुत्र और पुत्रिया अपने माता पिता से 
भौतिक दूरियों के कारण 
सेवा सुख लेने से वंचित रह जाते है
 वे यदि माता पिता की भावनाओ के अनुरूप 
आचरण और कार्य करे
 उनके संकल्पो की पूर्ति करे
 तो यह कार्य भी वचन द्वारा सेवा ही मानी जाती है 
वचन द्वारा सेवा का महत्व इसलिए भी अधिक है
 क्योकि   उसके  माध्यम से उन  पितृ  जनो की भी
 इच्छाओ की पूर्ति की जा सकती है
 जो वर्तमान में जीवित नहीं है
 इस प्रकार हम वचन द्वारा की गई सेवा से
 अपनों पितृ जनो का भी आशीष प्राप्त कर सकते है