जो व्यक्ति भीतर से शांत होता होता है
वह शान्ति बाहर नहीं ढूँढता है
बाहर शान्ति ढूँढने के लिए
मंदिर तीर्थ स्थलो पर नहीं भटकता
अपने भीतर की शान्ति में डूबा रहता है
भीतर की शान्ति में रहते
आत्मतत्व से जुड़ा रहता है
जो व्यक्ति भीतर से जितना अशांत होता है
वह शान्ति हेतु बाहरी साधनो को ढूढता है
शान्ति के बाहरी कृत्रिम साधनो से
उसे क्षणिक शान्ति ही मिल पाती है
चिर स्थाई शान्ति प्राप्त करना
हर किसी के लिए संभव है
भीतर से शांत
हर व्यक्ति नहीं रह सकता
भीतर से शांत वही व्यक्ति रह सकता है
जिसने धर्म को धारण किया हो
मन कर्म वचन से एक हो
वह चाहे कितनी भी प्रतिकूलता में हो
विचलित नहीं होता है
ऐसे व्यक्ति को ध्यान मग्न होने में
समय नहीं लगता क्योकि भीतर से शांत होने से उसका चित्त एकदम से स्थिर हो जाता है
ईश्वरीय शक्तियों का सामीप्य उसे प्राप्त होता है
अनुभूतियों की प्रखरता का स्तर उच्च होने से
उससे नकारात्मक या सकारात्मक दोनों प्रवृत्तियाँ
छुप नहीं सकती