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Wednesday, May 2, 2012

नारी एवम नदी

नारी और नदी को एक दूसरे का पर्याय माना जाता है 
नदी की नियति  नारी की नियति से भिन्न नहीं होती नदी अपने प्रवाह एवं प्रकृति के अनुसार अपना मार्ग 
एवं अपनी दिशा तय करती  है 
उसी प्रकार  नारी अपने आचरण एवं चरित्र के अनुसार 
समाज में अपना सम्मान एवम स्थान तय करती है 
जहा पुण्य  सलिला ;नदि गंगा भगवान् विष्णु के चरणों से

प्रगट होंकर भगवान  शिव जी के मस्तक पर विराजमान

होकर सृष्टि  को सिंचती है 
उसीप्रकार से माँ नर्मदा शिव जी के स्वेद से उत्पन्न होकर 
अपने प्रवाहित होने की सार्थकता  प्रतिपादित करती  तो दोनों नदिया पूज्यनीय बन जाती है 
उसी तरह श्रेष्ठ नारिया संस्कारित परिवारों में संस्कार चरित्र ,ज्ञान के द्वारा सम्पूर्ण समाज के मध्य सम्मान माता के सम्मान पाती है 
और अपनी सृजनात्मकता से अपने जीवन को सार्थक बनाती है 
यदि कोई स्त्री भगवान् विष्णु एवं  शिव जैसे संस्कारवान  वातावरण से युक्त परिवेश में अपने जीवन को गतिमान नहीं करती है 
तो उसकी नियति ठीक उस नदी की तरह होती है 
जो बरसात में बाढ़ और गर्मी में सूख जाती है  अर्थात उस स्त्री के स्वभाव में निरंतरता नहीं  रहती  
जिस प्रकार से ऐसी नदिया उनके किनारों पर बीहड़ बनाती है

उसी  प्रकार  से  उन स्त्रियों का
जीवन प्रतिकूलताओ से भरा हुआ रहता है 
वे अपने साथ मगरमच्छ  जैसी समस्याओं को साथ लेकर चलती है
 तथा ऐसी स्त्रियों के जीवन में ईर्ष्या एवम घृणा उसी 
प्रकारसे रहते है जिस प्रकार से बीहड़ से युक्त नदी के
 बीहड़ो में  जहरीले सर्प अजगर व डाकू रहते है