सीता कहा जन्म लेती है
सीता जिन्हें वैदेही भी कहा जाता है
विदेह राज महाराजा जनक के वहा जन्म लेती है विदेह राज महाराजा जनक सम्पन्न्ता ,सुविधा, राजसी वैभव के मध्य योग है महल न होने पर वन में रह कर
साधनारत होना आसान है
जीवन में असुविधाए एवं अभाव होने पर तप किया जा सकता है
संसारिक दायित्वों से पलायन कर
कंदराओ में मुक्ति के प्रयास किये जा सकते है
किन्तु विदेह अर्थात देह जुड़े सुख दुःख से परे रह कर राजसी वैभव के मध्य मुक्ति का मार्ग खोजना
अत्यंत कठिन है
क्योकि सुविधाए पाते है व्यक्ति पतन की राह की और
अग्रसर हो जाता है सांसारिक दायित्वों के कारण व्यक्ति जीवन का उद्देश्य भुला बैठता है महाराजा.जनक राजा होते हुए भी
पद से जुड़े अहंकारमुक्त ,सम्पन्नता से जुडी सुविधाभोगी प्रवृत्ति से परे योग मार्ग के पथिक थे । ऐसे व्यक्ति को राजयोगी कहा जाता है
अग्रसर हो जाता है सांसारिक दायित्वों के कारण व्यक्ति जीवन का उद्देश्य भुला बैठता है महाराजा.जनक राजा होते हुए भी
पद से जुड़े अहंकारमुक्त ,सम्पन्नता से जुडी सुविधाभोगी प्रवृत्ति से परे योग मार्ग के पथिक थे । ऐसे व्यक्ति को राजयोगी कहा जाता है
ऐसे राजयोगी के यहाँ वैदेही अर्थात सीता का जन्म होता है
सीता राजयोगी सामान व्यक्ति की शुभेच्छा ,शुभ संकल्प होती है जिनके निष्पादन का उत्तरदायित्व श्रीराम रूपी ईश्वर उठाने के लिए सदा तत्पर रहते है
इसलिए वैदेही श्रीराम की जीवन संगिनी बनी कहने का आशय यह है कि व्यक्ति विदेह सामान रहे तो
उसके मन में पलने वाले शुभ संकल्पों की पूर्ति
स्वयम ईश्वर करता है
सीता राजयोगी सामान व्यक्ति की शुभेच्छा ,शुभ संकल्प होती है जिनके निष्पादन का उत्तरदायित्व श्रीराम रूपी ईश्वर उठाने के लिए सदा तत्पर रहते है
इसलिए वैदेही श्रीराम की जीवन संगिनी बनी कहने का आशय यह है कि व्यक्ति विदेह सामान रहे तो
उसके मन में पलने वाले शुभ संकल्पों की पूर्ति
स्वयम ईश्वर करता है