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Saturday, March 12, 2016

गति एवम् उपासना

गतिशीलता जीवन का पर्याय है
गति में प्राण में है
जो गतिमान नहीं है वह निश्चेत है
नदी गतिशील है तो निर्मल है
गतिशील नदी में जल परिशोधन की क्षमता है
स्थिर होने पर नदी का जल प्रदूषित है
इसी प्रकार से बहती वायु में ताजगी है
मंद या स्थिर वायु में बैचेनी है घबराहट है
विचार शून्यता व्यक्ति को चिंता प्रदान करती है
नवीन विचारो का सृजन जीवन को
नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करते है
विज्ञान ने गति के कई नियम
और सिध्दांत प्रतिपादित किये
गति के स्त्रोत का अनुसंधान करने हेतु  तत्वों को
अणु परमाणु इलेक्ट्रान प्रोटान न्युट्रान में
विभाजित किया
परन्तु इलेक्ट्रान प्रोटान को ऋण आवेशित
और धन आवेशित ऊर्जा
कहा से निरन्तर प्राप्त हो रही है
इस पहेली को सुलझा नहीं पाये
प्राचीन ऋषि महर्षियो ने गति के
ऊर्जा के स्त्रोत को अध्यात्म में खोजा
साधना के बल पर उन्हें प्राप्त करने की
प्रक्रियाएं बताई ।उन्ही प्रक्रियाओ में से
शक्ति की उपासना महत्वपूर्ण है
नवरात्रि में इसलिए जीवन में
ऊर्जा भरने के लिए
गति की उपासना की जाती है
क्रिया के तीनो रूपों के स्त्रोत एवम्
प्रेरक शक्तियो से चैतन्यता प्राप्त की जाती है

लोकतंत्र से राजतंत्र तक

सत्ता  के शीर्ष से
 अव्यवस्था दिखाई नहीं देती है
सत्ता के आस पास जो आभा मंडल होता है
वह शासक को वास्तविकता देखने ही नहीं देता है
सत्ता पर बैठते ही व्यक्ति पर 
अहंकार सवार हो जाता है
बहुत से सत्ताधीशो को देखा है 
जो किसी जमाने में जिन मुद्दो के लिए संघर्ष रत थे
सत्ता के शीर्ष पर बैठते ही 
उनकी प्राथमिकताएं बदल गई
सत्ता शोषण का प्रतीक तब बन जाती है
 जब शासक निज सुखो को 
अधिक महत्व देने लगता है
प्राचीनकाल में अच्छे शासक वेश बदल कर जनता के बीच उनके सुख दुःख देखने चले जाते थे
वर्तमान में सुरक्षा  चक्र के नाम पर 
शासक जनता से दूर हो चुके है
निर्वाचित होते ही जनता की 
समस्याओ से पूरी तरह कट जाते है
क्षुद्र और निहित स्वार्थ साधना में लिप्त हो जाते है
उच्च शब्दावलियों में लम्बे व्याख्यान 
भ्रांतिपूर्ण नारेबाजी में उलझकर कोई भी 
लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित नेता 
खुशामदी किस्म के व्यक्तियों के 
पाखंडपूर्ण महिमामंडन से गौरवान्वित हो
 आत्ममुग्ध हो जाता है 
और यही से उसके पतन की शुरुआत होती है