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Wednesday, December 30, 2015

जिज्ञासा एवम् मूल्यांकन

सीखना एक सतत प्रक्रिया है कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता है कि वह परिपूर्ण हो चूका है अब सीखने की कोई उसे कोई आवश्यकता नहीं है सीखता वही है जिसमे जिज्ञासा अर्थात जानने सीखने की लगतार प्रवृत्ति होती है जो व्यक्ति यह मान लेता है कि वह परिपूर्ण हो चुका है वह समग्र रूप से कुशलता प्राप्त हो चुका है उसमे उत्थान की सम्भावनाये समाप्त हो जाती है व्यक्ति कितना भी कुशल हो जाए उसके कार्य में दोष निकाला जा सकता है जो लोग दूसरे लोगो का मूल्यांकन करते है और भिन्न भिन्न प्रकार की कमिया निकालते है वही कार्य उनसे करवाये जाने पर वे भी उतनी ही त्रुटियों करते पाये जायेगे क्योकि कार्य का मूल्यांकन आदर्श परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते किया जाता है यथार्थ के धरातल वास्तविक समस्याएं कल्पना से परे पाई जाती है उनका हल तत्कालिक व्यवहारिक परिस्थितियों को देख कर तत्क्षण निर्णय लेकर ही किया जा सकता है इसलिए जब भी किसी व्यक्ति के कार्य का मूल्यांकन करो स्वयं को उस व्यक्ति के स्थान पर रखते हुए करो कि आप उस व्यक्ति के स्थान पर होते तो क्या करते ऐसी स्थिति जो भी मूल्यांकन करेंगे वह वास्तविक और सटीक मूल्यांकन होगा

Monday, December 28, 2015

मौसम

सर्द हवाओ ने मचा दी हल चल
गहरी संवेदनाओ को खरौचा है |
मौसम को गाली दे दे कर
किस कमबख्त ने उसको कोसा है ?
मौसम अनुभूतियों का सुखद स्पर्श है
 प्रकृति माँ का लाड है दुलार है
 मौसम की खूबसूरत उंगलियो से
विधाता लुटाते प्यार है
गहरी सर्द रातो में होती गहरी शान्ति है
नदिया सरोवर समुद्र तट पर होता
शब्दहीन संवाद मिट जाती समस्त भ्रान्ति है
इसलिए हम मौसम नहीं लड़े
हँसते खेलतें मौसम की मस्ती में
हो जाए खड़े
मौसम हमे भीतर से तर
बाहर से बेहतर बना देगा
मौसम का पावन अनुभव
आध्यात्मिक सुगंध की तरह सदा
हमारी आत्मा के संग रहेगा

Monday, December 21, 2015

संवेदना की कथा

कथा में हो रहे धार्मिक और मार्मिक उपदेशो से 
श्रोताऔ के भाव आखो में अश्रु के माध्यम से निकल रहे थे 
कथा वाचक संत की संवेदनाये 
प्रवचनों के द्वारा मुखरित हो रही थी 
कथा होने के उपरान्त एक बूढी महिला ने 
जीर्ण शीर्ण वस्त्रो से रखी अपनी पोटली में से
 महाराज को भाव स्वरूप ५०० रूपये की राशि भेट की 
जो उन्होंने चुपचाप ग्रहण कर ली 
थोड़ी ही देर पश्चात एक प्रवासी भारतीय द्वारा 
भूत काल में दिए गए दान की प्रशस्ति मंच पर
 उद घोषित हो रही थी  
अपनी कीर्ति सुन कर प्रवासी भारतीय सज्जन 
फुले नहीं समा रहे थे 
उनके अहंकार की तुष्टि और पुष्टि हो रही थी 
बूढी वृध्दा लकड़ी को टेक टेक अपने पोते को कथा से लिए घर की ओर
भाव विभोर हो चली जा रही थी 
कथा वाचक संत की संवेदना  मात्र 
प्रवासी भारतीय  व्यक्ति की महादानी प्रवृत्ति को 
नमन कर रही थी  
बस मेरे मन में एक चुभता सवाल था कि
  क्या संत की उपदेशो में दर्शित संवेदना 
 कृत्रिमता  का आवरण लिए थी ? 
वृध्दा के भाव मौन होकर भी भगवत सत्ता की 
अनुभूति से मन  को अभिभूत अभी भी करा रहा है

Thursday, December 17, 2015

धर्म का मर्म

धर्म मात्र पूजा पध्दति नहीं है
 धर्म आचरण का विषय है 
जो लोग धर्म को मात्र पूजा पध्दति ही मानते है
वे धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देते है 
जब हम महापुरुषों का अनुशरण करने में 
असमर्थ पाते है 
तब हम महापुरुषों को देवता बना देते है 
उन्हें पूजने लग जाते है पूजते हुए 
हम महापुरुषों के द्वारा रचित विचारो 
बताये मार्ग को भूल जाते है 
सच्चा धार्मिक व्यक्ति महापुरुषों के
 विचारो और चरित्र अपनाता है
धर्म को पाखण्ड बना कर 
समाज को खंड खंड करने से 
हम धर्म  के मर्म को ही चोट पहुचाते है

Thursday, November 26, 2015

जीवन के सूत्र

दूसरे व्यक्ति के परिश्रम धन और समय का मूल्य वह व्यक्ति ही समझ सकता है जो स्वयं परिश्रमी और समय का पाबन्द हो दुसरो को ईमानदारी का पाठ पढाने वाला स्वयं ईमानदारी से कार्य करे तो उसका मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है अन्यथा वह मात्र उपदेश ही रह जाता है जीवन में जिसने पुरुषार्थ से कुछ भी नहीं पाया उसके मुख से त्याग की बाते अच्छी नहीं लगती
सभी सुख सुविधाये विद्यमान रहते अभावो रहने का अभ्यास सच्चा वैराग्य है स्वास्थ्य अच्छा रहने के बावजूद अल्प आहार ग्रहण करना भी व्रत के सामान है स्वास्थ्य खराब होने पाचन तन्त्र अनियमित होने जो व्रत करे वह व्रत उपवास न होकर उपचार है जैसे कोई व्यक्ति एक दिन के व्यायाम से पहलवान नहीं बन जाता उसी प्रकार कोई व्यक्ति क्षणिक अध्धयन से विद्वान नहीं बनता निरंतर अभ्यास किसी भी क्षेत्र में पूर्णता प्राप्त करने के लिए अभ्यास करना आवश्यक है

Wednesday, November 25, 2015

शुभ लाभ

लाभ हमेशा शुभ हो यह आवश्यक नहीं है
अनुचित साधनो उपायो से 
अर्जित लाभ अशुभ होता है 
ऐसा लाभ आपने साथ 
अशुभ संकेतो को ले आता है
इसलिए हिन्दू रीती रिवाजो 
तीज त्यौहारो पर शुभ को लाभ से 
अधिक महत्व दिया गया है 
कर्म यदि शुभ हो तो लाभ प्राप्त हो ही जाता है
 अधिक न सही पर जितनी मात्रा में भी हो 
शुभ कर्मो से लाभ प्राप्त होता है 
वह इस प्रकार का निवेश होता है 
जिससे निरंतर लंबे समय तक 
कई प्रकार के लाभ मिलते रहते है 
जबकि लाभ को आगे रख कर 
जो भी कार्य किया जाता है 
उसमे अशुभ कर्म की प्रधानता रहती है
 ऐसे कर्मो से अर्जित धन तमो गुण से युक्त होता है अतः लाभ शुभ के स्थान पर 
शुभ लाभ का अधिक महत्व है 
जो व्यक्ति केवल लाभ की भावना से कार्य करता है उसे समाज में स्वार्थी कहा जाता है
 और जो व्यक्ति शुभ संकल्पों की 
पूर्ति के लिए पुरुषार्थ करता है
 उसे परमार्थी परोपकारी कहा जाता है 
 समाज में लाभ के साथ प्रतिष्ठा भी प्राप्त करता है

Tuesday, November 24, 2015

सुख और दुःख

सुख दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू है
सुख कोई  परोसी हुई थाली नहीं है
 जो सीधे ही किसी को सहज ही प्राप्त हो जाए 
वास्तव में हम रिश्तों से सुख उठाना तो चाहते है 
पर रिश्तों को सीचना नहीं चाहते 
दुसरो को सुख देना नहीं चाहते 
परन्तु स्वयं सुख पाना चाहते है 
सुख और दुःख क्रिया और प्रतिक्रिया है 
यदि  सुख पाना चाहते है तो 
तो दुसरो को सुख देना होगा 
यदि हम किसी प्रकार के दुःख भोग रहे है तो 
अवश्य ही हमारे जाने अनजाने कर्मो से 
कोई व्यक्ति दुखी रहा होगा
व्यक्ति सुखी होने होने के ढेरो उपाय करता है
 साधनो में सुख ढूंढता है 
पर सुख प्राप्ति का सामान्य सूत्र नहीं जानता 
कई लोग तो दुसरो के दुःख में अपना सुख ढूँढते है और दूसरे के सुख में अपना दुःख
 ऐसे व्यक्ति सुखी होने के  लिए
 दुसरो को दुखी करने के लिए 
तरह तरह के उपाय करते है 
दुःख होता नहीं दुःख पैदा करते है 
भूल जाते है कि सुख मिलता नहीं है 
सुख कमाना पड़ता है

Friday, November 13, 2015

राहुल की जिद

राहुल हर बात के लिए जिद करता था छोटी छोटी वस्तुओ की मांग पर वह अड़ जाता था जीवन मरण का प्रश्न बना लेता था आखिर उसकी जिद पूरी करने वाले उसके पिता जो थे  धीरे धीरे राहुल उम्र बढ़ती गई पिता से उसकी अपेक्षाएं भी उसी अनुपात में बढ़ने लगी महंगाई के इस युग राहुल के पिता की सीमित आय राहुल की जिद पूरी करने में समर्थ नहीं थी राहुल का स्वकेंद्रित स्वभाव कभी खुद की असीमित आवश्यकताओ के आगे सोचने का अवसर प्रदान नहीं करता परन्तु निरंतर दायित्वों के भार और ढलती हुई उम्र के कारण राहुल के पिता का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था अचानक राहुल पिता के देहांत की सूचना ने राहुल को हतप्रभ कर दिया  घर में कुआरी बहन की शादी छोटे भाई की पढ़ाई का दायित्व का खर्चा कहा से उठाये राहुल अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति ही नहीं कर पा रहा था अब राहुल की जिद पालने वाला शख्स जो नहीं रहा जिद जिसके बलबूते राहुल हर बात मनवा लेता था अब कुंठा और तृष्णा का कारण बन चुकी थी

Tuesday, November 10, 2015

जीवन एक त्योहार

हमारा भारतवर्ष उत्सवों ,त्योहारों का देश है जो किसी ना किसी तरह हमें प्रभावित अवश्य करते है त्योहार बेरंग उदासीन जीवन में रंग भरता है तो कोई किसी के अधियारे जीवन मे प्रकाश करता है त्योहार हमें प्रसन्न करने का हमारी उदासीनता दूर करने का अवसर है इसके विश्लेषण से पता चलता हे की हमारे पूर्वजों ने  हमारे लिए एेसे समाज की व्यवस्था की जो हमारे  तनावपूर्ण  और उदासीनता भरे जीवन में प्रसन्नता उत्साह  व उमंग लाए त्योहारों के माध्यम से एक बार पुनः आने वाले संकटो  विपदाओ से दो -दो हाथ करने को  और उनसे जीतने को हम मजबूती से डटे रहे एक और बात गौर करने योग्य है त्योहार हमें भीतर से प्रसन्नता देते है कोई भी त्योहार आने से पहले ही हम प्रसन्नता का अनुभव करते है एक नये जोश व उत्साह के साथ उसके स्वागत  और तैयारियों में जुट जाते हे ये बाहरी नही अपितु भीतरी आनन्द का परिणाम है आश्य ये हे कि त्योहार आपके भीतर है प्रसन्नता आपके ही अंदर है इसलिये हम चाहे तो वर्षभर प्रसन्न रह सकते है हर दिन त्योहार मना सकते है जीवन का पर्याय त्योहार बन जाये यही जीवन की सफलता है।

Friday, November 6, 2015

असहिष्णुता

लंबे समय तक राजसत्ता का 
सुख भोगने के आदि हो चुके लोग 
जब सत्ता से बेदखल हो जाते है 
तब वे लोग सत्ता पर 
अपना नैसर्गिक और वंशानुगत अधिकार 
समझने लगते है 
विपक्षियो को सत्ता के किसी पद पर बैठा देखना 
उन्हें बर्दाश्त नहीं होता है 
ऐसे व्यक्ति लोकतांत्रिक तरीके से
 निर्वाचित व्यक्तियो को भी सिंहासन पर
 बैठा नहीं देख सकते ।
तरह तरह से भ्रामक प्रचार और उपाय कर 
वे प्रशासन पर प्रश्न चिन्ह लगाते है 
यह सोच ही सामन्तवादी 
और असहिष्णु सोच कहलाता है 
असहिष्णु और सामन्तवादी सोच वाले 
व्यक्तियो द्वारा अतीत में पोषित 
उपकृत अलंकृत और पुरस्कृत 
व्यक्तियो द्वारा भी उनके विचारो का 
समर्थन कर ऐसे सोच को 
नैतिकता का आवरण पहनाया जाता है 
समाज और देश के हालात का 
असत्य प्रस्तुतिकरण कर 
कृत्रिम समस्याओ को 
अनुचित मंचो पर उठाया जाता है
 इसी भावना को असहिष्णुता कहते है 
लोकतांत्रिक व्यवस्था से पोषित 
इस देश में अभिव्यक्ति का अधिकार 
हर व्यक्ति को है 
पर अभिव्यक्ति सीमाये
 निर्धारित भी जानी आवश्यक है 
कोई अभिव्यक्ति किसी धर्म समाज
 या व्यक्तियो के समूह की भावनाओ को 
इस हद तक अपमानित कर दे
 कि समाज में आक्रोश उतपन्न हो जाए
 तो विचारो या विचारो को किसी कृति के माध्यम से व्यक्त करने वाले व्यक्ति को 
अपनी कृति की विषय वस्तु पर  
पुनर्विचार करना चाहिए ।
जान बूझकर किसी को उत्तेजित करने के आशय से व्यक्त विचारो के पक्ष में 
यह तर्क नहीं दिया जा सकता है 
कि हमे तो संविधान ने 
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है 
और वर्तमान में वैचारिक असहिष्णुता का
 वातावरण निर्मित हो चुका है

श्रीराम का संघर्ष और उसकी शुचिता

श्रीराम के पास चार कलाये 
श्रीकृष्ण के पास सोलह कलाये 
और श्री हनुमान के पास चौसठ कलाये थी
श्रीराम मर्यादा को स्थापित करने आये थे 
मर्यादित होकर सादगी पूर्ण जीवन जीने के लिए 
व्यक्ति को अपनी विशिष्टता दर्शाना
 आवश्यक नहीं होता है 
सीमित संसाधनों के बल पर 
विषम परिस्थितियों में में क्या किया जा सकता है समाज में सामूहिक चेतना जगा कर 
उसे संगठित कर अत्याचार के विरुध्द 
किस प्रकार प्रतिकार किया जा सकता है 
यह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने प्रमाणित किया था इसके लिए श्रीराम ने वन में रहने वाले 
वनवासियों का सहयोग लिए 
अतिशयोक्ति पूर्ण भाषा में उन्हें वानर कहा गया ।वर्तमान में जो लोग नक्सलवादी सोच रखते है 
उन्हें  श्रीराम से सीखना चाहिए 
तथा अपने अभियान उसके उद्देश्य और साधनो की पवित्रता के सम्बन्ध में विचार करना चाहिए 
यदि पवित्र उद्देश्य है 
तो स्थानीय निवासियो स्थानीय संसाधनों को संघर्ष का माध्यम बनाया जा सकता है 
अपने देश की धरती पर विदेशियो से प्राप्त और शस्त्र से किया गया संघर्ष देश द्रोही बनाता है

Wednesday, November 4, 2015

कलयुगी भक्त

ध्यान लगाना हर किसी के बस की बात नहीं भगवान के सामने घन्टों बैठने के बाद भी एक पल ध्यान लग जाये तो व्यक्ति धन्य हो जाये ये सब सतयुगी चौचले है ध्यान ना लगने में भक्त की नहीं भगवान में ही कोई डिफाल्ट होगा अब भगवान भी समय और देशकाल के अनुसार होना चाहिए भई आज के लोग कोई ओल्ड फैशन के तो हे नहीं पहले इस्तेमाल करे फिर विश्वास करे का चलन हे फिर भगवान के बारे मे भी ये सब सोचना जरूरी है कोई तपवप ना होगा यूज एन्ड थ्रो की पॉलिसी है कलयुगी भक्त भक्ति से पहले सौ बार तोलेगा कोई घाटे का सौदा करने का काम नहीं है भक्ति आज कल तो भईया जो भक्त की मनोवांछित मुराद पूरी करेगा भक्त उसी भगवान की जय-जय कार करेगा इष्ट बदलना तो आजकल फैशन हे आदमी बाप बदल लेता हे फिर धर्म और भगवान बदलना कौनसा पाप हो गया?
और हे भी तो डरने की कोनों बात नहीं जेब मे चिल्लर  बहुत हे और दान-पेटीया भी अब भगवान अपने मुँह से तो माँगेगे नहीं कलयुगी भक्त बड़ा ही समझदार है  बिना बोले ही सब समझ जाता है भगवान को गरज हे एेसे भक्तों की भला  कलयुगी भक्त  को किसकी गरज है
ध्यान लगाना है तो मोबाइल के सामने बैठ जाओ बड़ा तगडा भगवान हे भईया हाथ में लेते ही ध्यान लग जाता है घन्टों का पता नहीं चलता कब गुजर गये और ध्यान भी एेसा गहरा की सामने बच्चा डूब जाये  कोई मर जाये घर में आग लग जाये या ट्रक आ जाये तो भी समाधि ना टूटे अरे ये बच्चे घर सब मोह-माया हैं इसी देवता के कारण कितने ही स्वर्गपुरी पहुंच गये भक्त और भगवान का मिलन हो गया भईया कलयुगी भक्त को जम गया मोबाइल भगवान सारे काम हो रहे है मंदिर जाने का टाइम कहां ? दानपेटिका  भी अटैच आता है थोड़ा सा दान दो तो प्रसाद मे अमृत तुल्य नेटडेटा प्राप्त होता है फिर क्या चिंता इस नश्वर संसार की और कर्म योग से श्रेष्ठ भक्ति योग है अब कलयुगी भक्त की च्वाईस हे की वह किसकी भक्ति करे बाल बच्चे माँ बाप पति पत्नी सब मोह-माया है अब जो कलयुगी भक्त जो करे वो कम है ।

Tuesday, November 3, 2015

प्रश्नो के जबाब

कई प्रश्नो के जबाब नहीं होते
कई समस्याएं के हल नहीं होते
बाधाये कई ऐसी जिनको पार करना
हर किसी के लिए संभव नहीं है
सपने हम कई देखते है है
पर हर सपना सच नहीं होता
अपनापन लिए मिलने वाला हर शख्स
अपना नहीं होता
जो अपना सा लगे
वह अपने संग नहीं रहता
जो अपने को सच्ची और अच्छी लगे
वह अपने को मिल जाए या संभव नहीं है
जीवन में  कष्ट पाये बिना
कोई वस्तु सहज ही मिल जाए 

ऐसा  कोई अनुभव नहीं है
अनुभव और ज्ञान दोनों एक साथ हो
यह बिलकुल आवश्यक नहीं है
जीवन में है कितनी सारी विसंगतियों
इन विसंगतियों को झेल सको तो झेलो
या इन विसंगतियों से दुखी रहो
या इन संग रहो इनसे खेलो
अनुत्तरित रहे सारे प्रश्नो के भी कई हिसाब है
जीवन में है कई अनसुलझी पहेलिया
वक्त के पास होते उनके जबाब है

Monday, November 2, 2015

आंसू की बूंदे

अश्रु ममता भाव भरा अश्रु करुणा जल
अश्रु से है प्यार हरा सम्वेदना कल छल

आँसू मीठी प्रीत रही आँसू विरह गीत
आँसू के ही साथ रही गिरधर तेरी प्रीत

आसु निकले राज है आँसू के कई काज
आँखों मोती रूप रहा आँसू है सरताज

राधा तेरी प्रीत से मोहन क्यों अनजान
आँसू भक्ति रीत रही आंसू रस की खान

आंसू जल की बूँद नहीं ,शब्दहीन है गीत
फुट फुट रोये श्याम है मित्रवत है रीत 

Sunday, November 1, 2015

घटिया प्रयास

ये तो स्पष्ट है कि जब वातावरण अनुकूल होता है तब जनसंख्या वृद्धि होती है और जब वातावरण प्रतिकूल होता है तो पलायन और मृत्यु दर में वृद्धि.... इससे स्पष्ट हे कि भारत में तथाकथित अल्पसंख्यको के लिए वातावरण अनुकूलता लिए हुए है क्योंकि उनकी जनसंख्या दर में वृद्धि हुई है ...
वहीं सिरीया लीबिया व अन्य देशों में पलायन व मृत्युदर में वृद्धि हुई है फिर तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा देश के वातावरण को प्रतिकूल बता...
विरोध करना तथ्यों से प्रतिकूल है। व देश के सौहार्दपुर्ण वातावरण व छवि को धुमिल कर क्षणिक प्रसिद्धि पाने का घटिया प्रयास मात्र है।

Saturday, October 31, 2015

भारत - ऋषि निर्मित राष्ट्र

इस देश में रहने वाले लोगों की एक संस्कृति है। इस संस्कृति के ही कारण यह एक राष्ट्र है। इस राष्ट्र- इस संस्कृति का निर्माण किसने किया ? अन्य देशों मे वहाँ के राजा या सैनिकों के द्वारा राष्ट्रों का निर्माण हुआ है।
परंतु इस राष्ट्र का निर्माण ऋषियों ने किया है। वेद के एक मंत्र से यह स्पष्ट होता है।

भद्रमिच्छन्त : ऋषय: स्वविर्द : तपोदीक्षामुपसेदुरग्रे।
ततो राष्ट्रं बलमोजस्वजातं तस्मैं देवा: उपसन्नु मन्तु।

ऋषि अर्थात जिन्होंने सत्य का साक्षात्कार किया है। ऋषि अर्थात अपने स्वार्थ का चिन्तन ना करते हुए संसार के हित में सोचने वाले। उपरोक्त श्लोक में भी यही बात आयी है। "भद्रमिच्छन्त : ऋषय" विश्व के कल्याण की कामना रखने वाले ऋषियों ने तप किया।
उनके तप से इस राष्ट्र को बल मिला, तेज मिला। इसी कारण देवता भी आकर इस राष्ट्र को नमस्कार करते हैं।

इस देवनिर्मित देश में, ऋषि निर्मित राष्ट्र में, हमारा जीवन गतिमान है। प्रायः लोग 'ऋषि का अर्थ संन्यासी समझते हैं। परंतु ऋषि का अर्थ संन्यासी नहीं है। सभी ऋषि गृहस्थ थे। एक ही ऋषि संन्यासी थे- 'शुक्र' महर्षि। शुक्र महर्षि के अतिरिक्त  प्रायः सभी ऋषि गृहस्थ थे।
हम इन्हीं ऋषियों की सन्तान है। इस कारण अपने देश मे गौत्र का प्रचलन हैं। हमारे गौत्र ऋषियों के नाम पर है। हम सभी के गौत्र ऋषियों के नाम पर होने का अर्थ यही है कि हम उन ऋषियों की संताने हैं। ऋषियों का चिंतन लोक हित के लिए होता है। सामान्य व्यक्ति सिर्फ स्वयं के बारे में सोचता है। लोक हित में ही प्रत्येक व्यक्ति का हित है एेसा ऋषियों का दर्शन है।

Friday, October 30, 2015

स्वर्ग नर्क और मोक्ष

स्वर्ग नर्क और मोक्ष की अवधारणा
 केवल हिन्दू धर्म में है 
पुनर्जन्म हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण अंग है
पुनर्जम क्या है?
 पुनर्जन्म अपनी गलतियों सुधारने का अवसर है
 इसे बिना समझे
 हम पुनर्जन्म के सिध्दांत पर विश्वास करते है
 स्वर्ग क्या है स्वर्ग रोग मुक्त होकर सज्जनो के मध्य सुविधा के साथ शान्तिपूर्ण जीना है
कई लोगो के लिए यह धरती स्वर्ग है 
इसलिए उन्हें स्वर्ग की कामना करने का 
कोई ओचित्य नहीं है 
सबसे महत्वपूर्ण सिध्दांत मोक्ष का है 
जिसे पाने के लिए ऋषि मुनि ग्यानी तपस्वी 
साधना में लींन रहते है 
जो पुनर्जन्म और आवागमन से मुक्ति का मार्ग है 
जो परमात्म तत्व में विलीन हो जाना है 
सुख दुःख से परे हो जाना है
काम क्रोध मद लोभ मोह से मुक्त होकर
 सांसारिक जीवन में भी समस्त कॉमनाओ विषय वासनाओ से मुक्त हो सकते है 
और मोक्ष की अवस्था का अनुभव कर सकते है
 जहा तक नर्क का प्रश्न है
 हम अपनी मूर्खताओं  के फलस्वरूप 
पतन के मार्ग ओर चले जाते है 
तरह तरह के सुख से वंचित हो जाते है 
दुर्जनो संग पाकर 
अपने स्वाभाविक गुण खोकर 
व्यसनों में लिप्त होकर 
अपना स्वास्थ्य खराब कर लेते है 
नारकीय चिकित्सकीय प्रणालियों के सहारे 
जी पाते है इसी अवस्था को नर्क कहते है

फिर भी करवा चौथ

मन व्यापे विश्वास नहीं फिर भी करवा चौथ
तृप्ति में भी प्यास रही कैसा है ये बोध 

व्रत से शक्ति बनी रहे व्रत भक्ति का रूप
भक्त बसे परमात्मा भक्ति भाव स्वरूप 

सूरज संध्या संग रहा चंदा संग है रात
सजना सजनी संग रहे मंजिल होगी साथ

यहाँ देखता दंग रहा अपनों का व्यवहार
नित बदले रूप रंग है जैसे सात प्रकार

Monday, October 26, 2015

शरद पूर्णिमा की सार्थकता

शारदेय नवरात्रि के पश्चात आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है इस दिन खुले आसमान के नीचे खीर बना कर उसे चंद्र किरणों में रखा जाता है रात को चंद्र किरणों के माध्यम से वर्षित सुधा बूंदों को क्षीर पात्र में एकत्र होने के बाद उसे ग्रहण किया जाता है परन्तु इसका तार्किक अर्थ क्या है ?इसका समझना आवश्यक है शारदेय नवरात्रि में शक्ति साधना की उष्णता को शांत किया जाना आवश्यक है खीर जो दूध चावल मेवे से बनती है उसका ओषधीय महत्व होता है वह शक्ति जिसमे उष्णता हो कभी भी किसी का कल्याण नहीं करती है उसके रचनात्मक दिशा देने के लिए उसे आप्त और सौम्य पुरुषो का सान्निध्य चाहिए ।उष्णता से युक्त शक्ति को एकदम से शीतल किये जाने से तप से प्राप्त साधना पर प्रतिकूल पड़ सकता है शक्ति क्षय होने की संभावना विद्यमान रहती है इसलिए चद्रमा रूप आप्त एवम् शीतल और सौम्यता के देव प्रतीक की किरणों से निकली सुषमा जब शरद ऋतू में मौसम में घुल कर क्षीर में प्रविष्ट होती है तो वह खीर अमृत का रूप धारण कर लेती है हमारे तन और मन की उष्णता को शांत कर नवरात्र साधना से संचित शक्ति की उष्णता समाप्त कर उसे समुचित दिशा प्रदान कर देती है

अभाव का प्रभाव

अभाव दो प्रकार के होते है 
एक तो वास्तविक अभाव 
दूसरा कृत्रिम अभाव है 
कृत्रिम अभाव वे होते है 
जिनके रहते हमारा जीवन यापन हो सकता है 
परन्तु हमें हमारी सुविधा भोगी प्रवृत्ति 
कृत्रिम साधनो के अधीन कर देती है
 जो लोग संन्यास की ओर 
अग्रसर होने की ईच्छा रखते हो 
उन्हें कृत्रिम साधनो से जुड़े
 अभावो में रहने का अभ्यास करना चाहिए ।
आश्चर्य तब होता है 
जब संन्यास मार्ग से जुड़े कुछ व्यक्ति
 कृत्रिम साधनो के बिना
 अपना नियमित जीवन व्यतीत करने में 
असमर्थ हो जाते है ।
कृत्रिम साधनो के बिना 
जीवन यापन करने के लिए
 व्यक्ति में वास्तविक वैराग्य की 
भावना होनी आवश्यक है 
वास्तविक वैराग्य 
संतोष और अपरिग्रह के व्रत के पालन 
किये जाने से ही संभव है 
व्यक्ति कितने ही बड़े व्रत कर ले 
दिखने में सामान्य व्रत नहीं कर सकता है

Sunday, October 25, 2015

परजीवी

परजीवी वह प्राणी है जो अपने जीवन के लिए दूसरो से पोषण प्राप्त करता है पराश्रयी होकर वह स्वयं के अस्तित्व के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है
शिथिलता आलस्य इसके प्रमुख लक्षण होते है स्वभिमान शून्य होने के साथ साथ निर्लज्जता इसके आभूषण है दुसरो   का कमाया खाना इसका नैतिक दायित्व होता है सामान्य रूप से परजीवी आशय हम वनस्पति में अमरबेल और जन्तुओ में जोंक से समझते है परन्तु मानव समाज में व्याप्त परजीवी की और किसी का ध्यान तक नहीं जाता ।परजीवी व्यक्ति की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि उन्हें छोटी छोटी बातो का बहुत बुरा लगता है पर कुछ ही समय बाद वे पुनः सामान्य अवस्था में आ जाते है दिल पर किसी बात को नहीं लगाते ।सरकारी स्तर पर भी ऐसे परजीवियों के पोषण संवर्धन की योजनाये विद्यमान है
जिसमे परजीवी हितग्राहियो का शासकीय स्तर पर यथोचित ध्यान रखा जा रहा है अलग अलग श्रेणियों में अलग पुरूस्कार तक घोषित किये जा रहे है परजीवियों की अनगिनत नस्ले अब निखर आई है
उनकी कोई नस्ल विलुप्त होने की संभावना भी नहीं है
परजीवियों के रूप में जीवित रहने के लिए लंबे अभ्यास की आवश्यकता होती है सीमित खर्च में पारिस्थितियो से तालमेल जो बिठाना पड़ता है परजीविता एक विज्ञान के रूप विकसित होता जा रहा है इसमें जितना शोध किया जाय उतना कम है अब तो परजीविता के हायब्रिड संस्करण भी दिखाई देने लगे है
बस उन्हें हम देख सके पहचान सके ।

Friday, October 23, 2015

अहंकार का आहार

अहंकार भक्ति का शत्रु है
इसके बावजूद व्यक्ति तरह तरह के
 अहंकार में ग्रस्त तो होता ही है साथ ही वह साधना और भक्ति के क्षेत्र में भी चमत्कार 
और वैभव रूपी अहंकार का प्रदर्शन करता है ।
 स्वयं को माँ का परम भक्त निरूपित कर जान सामान्य अपनी धाक ज़माना
 इसी अहम् भवना का द्योतक है ।
भक्ति के नाम पर चकाचौध रोशनियों से युक्त 
बड़ी बड़ी झांकिया जूलूस निकाल कर 
अपने सामाजिक और आर्थिक प्रभाव का प्रदर्शन अहंकार का विस्तार ही तो है 
 अहंकार भावना से युक्त भक्ति एवम् साधक 
भले ही सिध्दियां प्रदान कर दे 
परन्तु ईष्ट की कृपा का पात्र नही  बनाती है 
 ईष्ट की कृपा तो ईश्वर शरणा गति से ही 
प्राप्त की जा सकती है 
अहंकार युक्त शक्ति साधना करते समय
 व्यक्ति यह भूल जाता है की
 माँ जगदम्बा अहंकार का ही आहार करती है ।

Thursday, October 22, 2015

दशहरे पर राम की खोज

विजयादशमी जिसे दशहरा भी कहा जाता है
दशहरा इसलिए 
क्योकि इस दिन बुराईयो के प्रतीक  
रावण का दहन किया जाता है
 दहन वह विनिष्टिकरण की प्रक्रिया है
 जिससे कोई वस्तु वापस दूसरे रूप में 
प्रगट नहीं हो पाती है
 रावण का दहन इसलिए किया जाता है
 ताकि बुराइया समूल नष्ट हो जाए 
पुन अंकुरित होकर परिवर्तित रूप में 
प्रगट न हो पाये ।
विजयादशमी पर दशहरा इसलिए मनाया जाता है क्योकि जब हम बुराइयो का नाश करते है 
तब हम दशो दिशाओ से सुरक्षित हो जाते है
 दशहरे पर श्रीराम के रूप धर कर 
रावण के पुतले का दहन किया जाता है
 ऐसा इसलिए कि बुराइयो को दूर रखने की सामर्थ्य उसी व्यक्ति में होती  है
जो व्यक्ति शुचिता  और सत्य का स्वरूप होता है 
जो व्यक्ति स्वयं कई प्रकार की बुराईयो से
 घिरा होता है 
उस व्यक्ति से बुराईयो को समाप्त करने की
 न तो अपेक्षा की जाती है
 नहीं उसे ऐसा अधिकार दिया जाता है 
यदि ऐसा किया जाता है 
तो बड़ी बुराई को ख़त्म करने के लिये 
छोटी बुराई को प्रोत्साहित करने जैसा ही होगा ।
ऐसी स्थिति में कालान्तर में 
छोटी बुराई के बड़ी बुराई में बदलने की 
पूर्ण संभावना विद्यमान रहती है 
वर्तमान में इसी कारण से बुराईया 
समाप्त नहीं हो पा रही है ।
हमें बुराईयो समाप्त करने के लिए अपने बीच में 
छुपे राम को 
अपने भीतर के राम को ढूंढना होगा

बुध्दि युक्ति विवेक और चेतना

बुध्दि से युक्ति 
बुध्दि से विवेक
 बुध्दि से चेतना जाग्रत होती है 
जब किसी व्यक्ति का बुरा समय आता है तो 
उसकी बुद्धि भ्रष्ट होती है
 बुद्धिमान व्यक्ति दूरदर्शी होता है
बुद्धि मान वह नहीं है जो षड्यंत्रकारी हो 
बुद्दिमान और धूर्त्त व्यक्ति में अंतर होता है 
बुध्दि ही वह तत्व है 
जो आत्मा को शुध्द करती है 
तत्काल निर्णय लेने की क्षमता 
जिस व्यक्ति में होती है
 उसे प्रत्युत्पन्नमति कहा जाता है 
यह बिना ईश्वरीय कृपा से संभव नहीं है 
बुद्धि जनित चेतना से हमें शक्ति प्राप्त होती है 
बुध्दि जनित युक्तियां 
हमें समस्याओ से मुक्त होने का मार्ग बताती है
 बुद्धि जनित विवेक हमें 
आत्म ज्ञान तत्वज्ञान और ज्ञान विज्ञान को 
ग्रहण करने की सामर्थ्य प्रदान करता है 
इसलिए सर्वश्रेष्ठ ईश्वरीय कृपा का पात्र 
वह व्यक्ति है जो बुध्दिमान हो

Saturday, October 17, 2015

प्रेम और व्यवहार कुशलता

जहा प्रेम होता है 
वहा आत्मीयता होती जहा आत्मीयता होती है
 वहां आत्मीयता पूर्ण सम्बोधन होते है 
परन्तु आत्मीयता हो न हो 
फिर  भी व्यवहार में मधुरता सदा आवश्यक है
 इसी मधुर  व्यवहार को 
व्यवहार कुशलता कहा जाता है 
व्यवहार कुशलता जीवन प्रबंधन के लिए 
सदा आवश्यक है 
आत्मीय जन से प्रेम प्रगट करने के लिए 
तो सभी लोग सद व्यवहार दर्शाते है
 व्यवहार कुशल वे लोग होते है 
जो अपने विरोधियो से भी 
मधुर वाणी से संवाद स्थापित कर लेते है
 ऐसे व्यक्तियो को व्यवहार कुशल कहा जाता है 
कटु कर्कश शब्दों में कहा गया सत्य 
सत्य को सही स्थान पर प्रतिष्ठित नहीं कर सकता है सत्य को प्रतिष्ठा दिलवाने के लिए आवश्यक है कि सत्य को सौम्य स्वरूप में उजागर किया जाय
तब आलोचक यह नहीं कह पायेगे 
कि वह व्यक्ति सत्य बोलता है 
पर कड़वा बोलता है
 इसलिए वेदों में भी कहा गया है कि 
सत्यम ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्