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Wednesday, December 30, 2015
जिज्ञासा एवम् मूल्यांकन
Monday, December 28, 2015
मौसम
गहरी संवेदनाओ को खरौचा है |
मौसम को गाली दे दे कर
किस कमबख्त ने उसको कोसा है ?
मौसम अनुभूतियों का सुखद स्पर्श है
विधाता लुटाते प्यार है
गहरी सर्द रातो में होती गहरी शान्ति है
नदिया सरोवर समुद्र तट पर होता
शब्दहीन संवाद मिट जाती समस्त भ्रान्ति है
इसलिए हम मौसम नहीं लड़े
हँसते खेलतें मौसम की मस्ती में
हो जाए खड़े
मौसम हमे भीतर से तर
बाहर से बेहतर बना देगा
मौसम का पावन अनुभव
आध्यात्मिक सुगंध की तरह सदा
हमारी आत्मा के संग रहेगा
Monday, December 21, 2015
संवेदना की कथा
Thursday, December 17, 2015
धर्म का मर्म
वे धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देते है
धर्म को पाखण्ड बना कर
Thursday, November 26, 2015
जीवन के सूत्र
दूसरे व्यक्ति के परिश्रम धन और समय का मूल्य वह व्यक्ति ही समझ सकता है जो स्वयं परिश्रमी और समय का पाबन्द हो दुसरो को ईमानदारी का पाठ पढाने वाला स्वयं ईमानदारी से कार्य करे तो उसका मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है अन्यथा वह मात्र उपदेश ही रह जाता है जीवन में जिसने पुरुषार्थ से कुछ भी नहीं पाया उसके मुख से त्याग की बाते अच्छी नहीं लगती
सभी सुख सुविधाये विद्यमान रहते अभावो रहने का अभ्यास सच्चा वैराग्य है स्वास्थ्य अच्छा रहने के बावजूद अल्प आहार ग्रहण करना भी व्रत के सामान है स्वास्थ्य खराब होने पाचन तन्त्र अनियमित होने जो व्रत करे वह व्रत उपवास न होकर उपचार है जैसे कोई व्यक्ति एक दिन के व्यायाम से पहलवान नहीं बन जाता उसी प्रकार कोई व्यक्ति क्षणिक अध्धयन से विद्वान नहीं बनता निरंतर अभ्यास किसी भी क्षेत्र में पूर्णता प्राप्त करने के लिए अभ्यास करना आवश्यक है
Wednesday, November 25, 2015
शुभ लाभ
अनुचित साधनो उपायो से
इसलिए हिन्दू रीती रिवाजो
Tuesday, November 24, 2015
सुख और दुःख
सुख कोई परोसी हुई थाली नहीं है
परन्तु स्वयं सुख पाना चाहते है
Friday, November 13, 2015
राहुल की जिद
राहुल हर बात के लिए जिद करता था छोटी छोटी वस्तुओ की मांग पर वह अड़ जाता था जीवन मरण का प्रश्न बना लेता था आखिर उसकी जिद पूरी करने वाले उसके पिता जो थे धीरे धीरे राहुल उम्र बढ़ती गई पिता से उसकी अपेक्षाएं भी उसी अनुपात में बढ़ने लगी महंगाई के इस युग राहुल के पिता की सीमित आय राहुल की जिद पूरी करने में समर्थ नहीं थी राहुल का स्वकेंद्रित स्वभाव कभी खुद की असीमित आवश्यकताओ के आगे सोचने का अवसर प्रदान नहीं करता परन्तु निरंतर दायित्वों के भार और ढलती हुई उम्र के कारण राहुल के पिता का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था अचानक राहुल पिता के देहांत की सूचना ने राहुल को हतप्रभ कर दिया घर में कुआरी बहन की शादी छोटे भाई की पढ़ाई का दायित्व का खर्चा कहा से उठाये राहुल अपनी आवश्यकताओ की पूर्ति ही नहीं कर पा रहा था अब राहुल की जिद पालने वाला शख्स जो नहीं रहा जिद जिसके बलबूते राहुल हर बात मनवा लेता था अब कुंठा और तृष्णा का कारण बन चुकी थी
Tuesday, November 10, 2015
जीवन एक त्योहार
हमारा भारतवर्ष उत्सवों ,त्योहारों का देश है जो किसी ना किसी तरह हमें प्रभावित अवश्य करते है त्योहार बेरंग उदासीन जीवन में रंग भरता है तो कोई किसी के अधियारे जीवन मे प्रकाश करता है त्योहार हमें प्रसन्न करने का हमारी उदासीनता दूर करने का अवसर है इसके विश्लेषण से पता चलता हे की हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए एेसे समाज की व्यवस्था की जो हमारे तनावपूर्ण और उदासीनता भरे जीवन में प्रसन्नता उत्साह व उमंग लाए त्योहारों के माध्यम से एक बार पुनः आने वाले संकटो विपदाओ से दो -दो हाथ करने को और उनसे जीतने को हम मजबूती से डटे रहे एक और बात गौर करने योग्य है त्योहार हमें भीतर से प्रसन्नता देते है कोई भी त्योहार आने से पहले ही हम प्रसन्नता का अनुभव करते है एक नये जोश व उत्साह के साथ उसके स्वागत और तैयारियों में जुट जाते हे ये बाहरी नही अपितु भीतरी आनन्द का परिणाम है आश्य ये हे कि त्योहार आपके भीतर है प्रसन्नता आपके ही अंदर है इसलिये हम चाहे तो वर्षभर प्रसन्न रह सकते है हर दिन त्योहार मना सकते है जीवन का पर्याय त्योहार बन जाये यही जीवन की सफलता है।
Friday, November 6, 2015
असहिष्णुता
श्रीराम का संघर्ष और उसकी शुचिता
श्रीराम मर्यादा को स्थापित करने आये थे
Wednesday, November 4, 2015
कलयुगी भक्त
ध्यान लगाना हर किसी के बस की बात नहीं भगवान के सामने घन्टों बैठने के बाद भी एक पल ध्यान लग जाये तो व्यक्ति धन्य हो जाये ये सब सतयुगी चौचले है ध्यान ना लगने में भक्त की नहीं भगवान में ही कोई डिफाल्ट होगा अब भगवान भी समय और देशकाल के अनुसार होना चाहिए भई आज के लोग कोई ओल्ड फैशन के तो हे नहीं पहले इस्तेमाल करे फिर विश्वास करे का चलन हे फिर भगवान के बारे मे भी ये सब सोचना जरूरी है कोई तपवप ना होगा यूज एन्ड थ्रो की पॉलिसी है कलयुगी भक्त भक्ति से पहले सौ बार तोलेगा कोई घाटे का सौदा करने का काम नहीं है भक्ति आज कल तो भईया जो भक्त की मनोवांछित मुराद पूरी करेगा भक्त उसी भगवान की जय-जय कार करेगा इष्ट बदलना तो आजकल फैशन हे आदमी बाप बदल लेता हे फिर धर्म और भगवान बदलना कौनसा पाप हो गया?
और हे भी तो डरने की कोनों बात नहीं जेब मे चिल्लर बहुत हे और दान-पेटीया भी अब भगवान अपने मुँह से तो माँगेगे नहीं कलयुगी भक्त बड़ा ही समझदार है बिना बोले ही सब समझ जाता है भगवान को गरज हे एेसे भक्तों की भला कलयुगी भक्त को किसकी गरज है
ध्यान लगाना है तो मोबाइल के सामने बैठ जाओ बड़ा तगडा भगवान हे भईया हाथ में लेते ही ध्यान लग जाता है घन्टों का पता नहीं चलता कब गुजर गये और ध्यान भी एेसा गहरा की सामने बच्चा डूब जाये कोई मर जाये घर में आग लग जाये या ट्रक आ जाये तो भी समाधि ना टूटे अरे ये बच्चे घर सब मोह-माया हैं इसी देवता के कारण कितने ही स्वर्गपुरी पहुंच गये भक्त और भगवान का मिलन हो गया भईया कलयुगी भक्त को जम गया मोबाइल भगवान सारे काम हो रहे है मंदिर जाने का टाइम कहां ? दानपेटिका भी अटैच आता है थोड़ा सा दान दो तो प्रसाद मे अमृत तुल्य नेटडेटा प्राप्त होता है फिर क्या चिंता इस नश्वर संसार की और कर्म योग से श्रेष्ठ भक्ति योग है अब कलयुगी भक्त की च्वाईस हे की वह किसकी भक्ति करे बाल बच्चे माँ बाप पति पत्नी सब मोह-माया है अब जो कलयुगी भक्त जो करे वो कम है ।
Tuesday, November 3, 2015
प्रश्नो के जबाब
कई समस्याएं के हल नहीं होते
बाधाये कई ऐसी जिनको पार करना
हर किसी के लिए संभव नहीं है
सपने हम कई देखते है है
पर हर सपना सच नहीं होता
अपनापन लिए मिलने वाला हर शख्स
अपना नहीं होता
जो अपना सा लगे
वह अपने संग नहीं रहता
जो अपने को सच्ची और अच्छी लगे
वह अपने को मिल जाए या संभव नहीं है
जीवन में कष्ट पाये बिना
कोई वस्तु सहज ही मिल जाए
ऐसा कोई अनुभव नहीं है
अनुभव और ज्ञान दोनों एक साथ हो
यह बिलकुल आवश्यक नहीं है
जीवन में है कितनी सारी विसंगतियों
इन विसंगतियों को झेल सको तो झेलो
या इन विसंगतियों से दुखी रहो
या इन संग रहो इनसे खेलो
अनुत्तरित रहे सारे प्रश्नो के भी कई हिसाब है
जीवन में है कई अनसुलझी पहेलिया
वक्त के पास होते उनके जबाब है
Monday, November 2, 2015
आंसू की बूंदे
अश्रु से है प्यार हरा सम्वेदना कल छल
आँसू के ही साथ रही गिरधर तेरी प्रीत
आँखों मोती रूप रहा आँसू है सरताज
आँसू भक्ति रीत रही आंसू रस की खान
फुट फुट रोये श्याम है मित्रवत है रीत
Sunday, November 1, 2015
घटिया प्रयास
ये तो स्पष्ट है कि जब वातावरण अनुकूल होता है तब जनसंख्या वृद्धि होती है और जब वातावरण प्रतिकूल होता है तो पलायन और मृत्यु दर में वृद्धि.... इससे स्पष्ट हे कि भारत में तथाकथित अल्पसंख्यको के लिए वातावरण अनुकूलता लिए हुए है क्योंकि उनकी जनसंख्या दर में वृद्धि हुई है ...
वहीं सिरीया लीबिया व अन्य देशों में पलायन व मृत्युदर में वृद्धि हुई है फिर तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा देश के वातावरण को प्रतिकूल बता...
विरोध करना तथ्यों से प्रतिकूल है। व देश के सौहार्दपुर्ण वातावरण व छवि को धुमिल कर क्षणिक प्रसिद्धि पाने का घटिया प्रयास मात्र है।
Saturday, October 31, 2015
भारत - ऋषि निर्मित राष्ट्र
इस देश में रहने वाले लोगों की एक संस्कृति है। इस संस्कृति के ही कारण यह एक राष्ट्र है। इस राष्ट्र- इस संस्कृति का निर्माण किसने किया ? अन्य देशों मे वहाँ के राजा या सैनिकों के द्वारा राष्ट्रों का निर्माण हुआ है।
परंतु इस राष्ट्र का निर्माण ऋषियों ने किया है। वेद के एक मंत्र से यह स्पष्ट होता है।
भद्रमिच्छन्त : ऋषय: स्वविर्द : तपोदीक्षामुपसेदुरग्रे।
ततो राष्ट्रं बलमोजस्वजातं तस्मैं देवा: उपसन्नु मन्तु।
ऋषि अर्थात जिन्होंने सत्य का साक्षात्कार किया है। ऋषि अर्थात अपने स्वार्थ का चिन्तन ना करते हुए संसार के हित में सोचने वाले। उपरोक्त श्लोक में भी यही बात आयी है। "भद्रमिच्छन्त : ऋषय" विश्व के कल्याण की कामना रखने वाले ऋषियों ने तप किया।
उनके तप से इस राष्ट्र को बल मिला, तेज मिला। इसी कारण देवता भी आकर इस राष्ट्र को नमस्कार करते हैं।
इस देवनिर्मित देश में, ऋषि निर्मित राष्ट्र में, हमारा जीवन गतिमान है। प्रायः लोग 'ऋषि का अर्थ संन्यासी समझते हैं। परंतु ऋषि का अर्थ संन्यासी नहीं है। सभी ऋषि गृहस्थ थे। एक ही ऋषि संन्यासी थे- 'शुक्र' महर्षि। शुक्र महर्षि के अतिरिक्त प्रायः सभी ऋषि गृहस्थ थे।
हम इन्हीं ऋषियों की सन्तान है। इस कारण अपने देश मे गौत्र का प्रचलन हैं। हमारे गौत्र ऋषियों के नाम पर है। हम सभी के गौत्र ऋषियों के नाम पर होने का अर्थ यही है कि हम उन ऋषियों की संताने हैं। ऋषियों का चिंतन लोक हित के लिए होता है। सामान्य व्यक्ति सिर्फ स्वयं के बारे में सोचता है। लोक हित में ही प्रत्येक व्यक्ति का हित है एेसा ऋषियों का दर्शन है।
Friday, October 30, 2015
स्वर्ग नर्क और मोक्ष
पुनर्जम क्या है?
कई लोगो के लिए यह धरती स्वर्ग है
काम क्रोध मद लोभ मोह से मुक्त होकर
फिर भी करवा चौथ
तृप्ति में भी प्यास रही कैसा है ये बोध
भक्त बसे परमात्मा भक्ति भाव स्वरूप
सजना सजनी संग रहे मंजिल होगी साथ
नित बदले रूप रंग है जैसे सात प्रकार
Monday, October 26, 2015
शरद पूर्णिमा की सार्थकता
शारदेय नवरात्रि के पश्चात आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है इस दिन खुले आसमान के नीचे खीर बना कर उसे चंद्र किरणों में रखा जाता है रात को चंद्र किरणों के माध्यम से वर्षित सुधा बूंदों को क्षीर पात्र में एकत्र होने के बाद उसे ग्रहण किया जाता है परन्तु इसका तार्किक अर्थ क्या है ?इसका समझना आवश्यक है शारदेय नवरात्रि में शक्ति साधना की उष्णता को शांत किया जाना आवश्यक है खीर जो दूध चावल मेवे से बनती है उसका ओषधीय महत्व होता है वह शक्ति जिसमे उष्णता हो कभी भी किसी का कल्याण नहीं करती है उसके रचनात्मक दिशा देने के लिए उसे आप्त और सौम्य पुरुषो का सान्निध्य चाहिए ।उष्णता से युक्त शक्ति को एकदम से शीतल किये जाने से तप से प्राप्त साधना पर प्रतिकूल पड़ सकता है शक्ति क्षय होने की संभावना विद्यमान रहती है इसलिए चद्रमा रूप आप्त एवम् शीतल और सौम्यता के देव प्रतीक की किरणों से निकली सुषमा जब शरद ऋतू में मौसम में घुल कर क्षीर में प्रविष्ट होती है तो वह खीर अमृत का रूप धारण कर लेती है हमारे तन और मन की उष्णता को शांत कर नवरात्र साधना से संचित शक्ति की उष्णता समाप्त कर उसे समुचित दिशा प्रदान कर देती है
अभाव का प्रभाव
Sunday, October 25, 2015
परजीवी
परजीवी वह प्राणी है जो अपने जीवन के लिए दूसरो से पोषण प्राप्त करता है पराश्रयी होकर वह स्वयं के अस्तित्व के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है
शिथिलता आलस्य इसके प्रमुख लक्षण होते है स्वभिमान शून्य होने के साथ साथ निर्लज्जता इसके आभूषण है दुसरो का कमाया खाना इसका नैतिक दायित्व होता है सामान्य रूप से परजीवी आशय हम वनस्पति में अमरबेल और जन्तुओ में जोंक से समझते है परन्तु मानव समाज में व्याप्त परजीवी की और किसी का ध्यान तक नहीं जाता ।परजीवी व्यक्ति की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि उन्हें छोटी छोटी बातो का बहुत बुरा लगता है पर कुछ ही समय बाद वे पुनः सामान्य अवस्था में आ जाते है दिल पर किसी बात को नहीं लगाते ।सरकारी स्तर पर भी ऐसे परजीवियों के पोषण संवर्धन की योजनाये विद्यमान है
जिसमे परजीवी हितग्राहियो का शासकीय स्तर पर यथोचित ध्यान रखा जा रहा है अलग अलग श्रेणियों में अलग पुरूस्कार तक घोषित किये जा रहे है परजीवियों की अनगिनत नस्ले अब निखर आई है
उनकी कोई नस्ल विलुप्त होने की संभावना भी नहीं है
परजीवियों के रूप में जीवित रहने के लिए लंबे अभ्यास की आवश्यकता होती है सीमित खर्च में पारिस्थितियो से तालमेल जो बिठाना पड़ता है परजीविता एक विज्ञान के रूप विकसित होता जा रहा है इसमें जितना शोध किया जाय उतना कम है अब तो परजीविता के हायब्रिड संस्करण भी दिखाई देने लगे है
बस उन्हें हम देख सके पहचान सके ।
Friday, October 23, 2015
अहंकार का आहार
इसके बावजूद व्यक्ति तरह तरह के
Thursday, October 22, 2015
दशहरे पर राम की खोज
दशहरा इसलिए
जो व्यक्ति शुचिता और सत्य का स्वरूप होता है
बुध्दि युक्ति विवेक और चेतना
बुद्धि मान वह नहीं है जो षड्यंत्रकारी हो
Saturday, October 17, 2015
प्रेम और व्यवहार कुशलता
तब आलोचक यह नहीं कह पायेगे