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Saturday, December 3, 2016

बुरा जो देखन मैं चला

कबीर दास जी के  दोहे की
 यह पंक्ति बहुत से संत दोहराते है कि
 "बुरा जो देखन जो चला मुझसे बुरा न कोय "
ऐसा कह कर व्यक्ति को
 आत्म आलोचना करने हेतु प्रेरित करते है 
परन्तु व्यवहारिक जगत में
 वास्तव में ऐसा नहीं होता 
कुछ लोग जो मूलतः अपने स्वभाव से बुरे होते है
 वे अकारण ही अच्छे लोगो को हानि पहुचाते रहते है
 हम कभी कभी यह सोचने का 
तलाशने का बहुत प्रयास करते है
कि  जाने अनजाने हमसे ऐसी कौनसी त्रुटि हो गई 
जो सामने वाला व्यक्ति हमारा अहित चाहता है 
कारण तलाशने पर भी पता नहीं चलता 
यदि यह दोहा वर्तमान परिस्थितियो में 
सार्थक होता तो हम अच्छे और बुरे लोगो में 
कोई भेद ही नहीं कर सकते 
हम कोई भी क्षति होने पर 
बुराई की पहचान न कर 
मात्र आत्म विश्लेषण कर लेते ऐसा कर हम बुरे व्यक्तियों को बुरे कर्मो से विमुख न कर 
उन्हें और अधिक स्वच्छंद और उच्छृंखल ही बनाते रहेगे और स्वयम संत्रास झेलते रहेंगे
कबीर दास का यह दोहा 
वर्तमान परिस्थितियों के लिए 
अधिक प्रासंगिक नहीं रहा है 
कबीर दास जी ने इस दोहे की जब रचना की थी
 तब कि परिस्थितियां भिन्न थी 
लोग अकारण भले व्यक्तियों को संत्रास नहीं देते थे परन्तु वर्तमान में ऐसे लोगो की बहुतायत है
 जो अकारण दूसरे व्यक्तियों को क्षुद्र स्वार्थो की पूर्ति हेतु संत्रस्त करते रहते है
 तब भले व्यक्तियों के लिए यह कहना कि 
"बुरा जो देखन मैं चला मुझसे बुरा न कोय"
 उचित प्रतीत नहीं होता है