कही ज्यादा है ।
अकर्मण्य व्यक्ति अकारण
थकान का अनुभव करता है
वह कितना भी विश्राम कर ले
बात केवल समझने की है हो सकता है जिसे हम पागल समझते है वो अपनी धून में मगन कोई ज्ञानी हो और जिसे हम ज्ञानी माने बैठे है वो कोई धुर्त हो जिसने रटंत विद्या सिद्ध कर रखी हो और विद्वता का छद्म आडंबर ओढ रखा हो
यह अंतर बड़ा ही सूक्ष्म होता है
अंतर केवल दृष्टिकोण का है....
यह भी संभव हे की जिसे हम आज सुख मान रहे हे वो निकट भविष्य में असंतोष देने वाली क्षणिक मृगतृष्णा हो और जिसे हम आज दुखः समझ रहे हे वो दुःख के रूप में वो गुरू हो जो हमारे भविष्य को सँवारने के लिए हमारा वर्तमान में तांडन कर रहा है जैसे कोई कुम्हार घड़ा बनाने के लिए चक्के पर उसे घुमाता हे उसे पीटता है और अंत में वही घड़ा अपने में शीतल जल धारण कर लोगों को जीवन देकर पूजनीय बन जाता है
इस अंतर को समझना हम पर निर्भर करता है और यह भी की हम उस अंतर को समझना चाहते भी हे या नहीं
ये एक फाईन लाइन होती हे जो सत् - असत् में भेद करती है हमारा दृष्टिकोण जितना समग्र होगा हमारे लिए उस अंतर को देख पाना उतना ही सरल होगा
भौतिक का एक सार्वभौमिक नियम है जो पूरे ब्रह्मांड पर एक समान लागू होता है वह नियम है Gravity यानी गुरुत्वाआकर्षण का नियम और यह नियम कहता है कि Space अर्थात् अंतरिक्ष में जिस का भार (सघनता) जितना अधिक होगा उसका गुरुत्वाकर्षण बल उतना ही अधिक होगा और गुरुत्वाकर्षण बल का अपने से लघु को अपनी और आकर्षित करना ही इसकी विशेषता है
लघु इस आकर्षण में फस कर बंध कर या यह कहना भी गलत नहीं होगा के स्वयं अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए बाध्य हो कर लघु का अपने से महान की सुरक्षा
में बंधकर उसकी सुरक्षित कक्षा में उसकी परिक्रमा करता रहता है वह भलीभाँति जानता है कि वह इस सुरक्षा के बिना इस विशाल अंतरिक्ष
में लक्ष्य विहीन भटकता पिन्ड मात्र बन कर रह जायेगा अभी उस का कोई परिचय तो है
उदाहरण के लिए जैसे हमारा सौर मंडल -
हमारे सौर मंडल का केन्द्र हमारा महान सूर्य है जो हमे उष्मा , प्रकाश, ऊर्जा और जीवन देता है उसकी महानता के आगे हम अर्थात् पृथ्वी और सौर परिवार के अन्य सभी सदस्य लघु है हम इसकी कृपा पर आश्रित है हम इसके कर्तग्य है , इस बात का ज्ञान किसी भी वैज्ञानिक परिकल्पना और विशाल वैज्ञानिक ब्रह्मांडिय टेलिस्कोप के आविष्कार से भी पहले से पहले हमारे ज्ञानी मुनि पुर्वजो को था जिन्होंने सूर्य को भगवान के रूप में पूजा व सूर्य को जल चढ़ाने की परम्परा हमें विरासत में दी ताकि हम अपने जीवनदाता काे धन्यवाद ज्ञापित कर सके
शेष भाग ......
राकेश अपने माता पिता का इकलौता बेटा था
माता पिता का आज्ञापालक पर पढ़ने में कमजोर
संस्कारित पर एकांत प्रिय अपने काम से काम करने वाला खेलो चित्र कला में थोड़ी थोड़ी रूचि पर पूर्णता किसी में भी नहीं छोटी छोटी बात का बुरा लगना उसका स्वभाव था चरित्र का दृढ स्वाभिमानी अभावो में रहने का अभ्यस्त संतोषी परन्तु जीवन में प्राथमिकताएं अभी उसने तय नहीं की थी ठीक उसके विपरीत विपिन जो उसका सहपाठी था उद्दंड शरारती अपनी मनमानी करने वाला परन्तु अच्छा वक्ता धुन का पक्का जो सोच लिया उस कार्य को पूरा कर लेना उसका स्वभाव था चरित्र ऐसा कि वातावरण में सीघ्र समन्वय स्थापित कर प्राथमिकता के आधार पर महत्वपूर्ण कार्य कर लेता था
विपिन की इसी आदत के कारण उसके पास मित्रो की लंबी फौज थी प्रश्न यह है कि क्या राकेश जैसे अच्छे लडके की कोई कीमत नहीं है क्या अच्छाई व्यक्ति के विकास के लिए उपयोगी नहीं है ऐसा नही है राकेश की अच्छाई का मूल्य हो सकता है परन्तु वह समय के अनुरूप वह स्वयं को ढालने सक्षम हो कार्य में पूर्णता हासिल करना उसकी प्रव्रत्ति हो जीवन में उसने प्राथमिकताये तय की हो तभी अच्छाई और अच्छे व्यक्ति का मूल्य रह पायेगा