वैसे तो अधिकतर लोग झूठ बोलने के
अभ्यस्त होते है
झूठ बोलने के तरह तरह के बहाने ढूंढते है
परन्तु इस झूठ आंधी में
कुछ सत्यवादी लोग भी विध्यमान है
ऐसे कुछ सत्यवादी लोगो में भी
ऐसे लोगो की संख्या ज्यादा है
जो जिनका सत्य अर्ध सत्य होता है
अर्ध सत्य वह कला जिसकी उत्पत्ति
महाभारत काल में युध्द के दौरान
सत्यवादी महाराज युध्दिष्ठर ने की थी
जब से महाराज युध्दिष्ठर ने
इस विधा का सृजन किया
तब से तथाकथित सत्यवादी
अर्ध्द सत्य ही बोलने में लगा हुआ है
अर्ध्द सत्य बोलने का लाभ यह होता है
सुनने वाले के विवेक पर छोड़ दिया जाता है कि
वह वक्तव्य का क्या आशय लगाए
सही आशय श्रोता समझ जाए तो अर्ध्द सत्य वक्ता
को सत्य बोलने का पुण्य प्राप्त होता है
पर ऐसा होता बहुत कम है
जब द्रोणाचार्य जैसे विद्वान और योध्दा पुरुष
अर्ध्द सत्य की तह तक नहीं पहुँच पाये तो
सामान्य जीव की क्या हैसियत
मूल रूप से जो व्यक्ति झूठ बोलने के दोष से बचना
चाहता है वह अर्ध्द सत्य का आश्रय लेता है
कभी कभी अर्ध्द सत्य इतना खतरनाक होता है
सुनने वाला व्यक्ति संशय ग्रस्त होकर मरते दम तक
वास्तविक तथ्य नहीं पहुंच पाता है
और यदि संयोगवश वह वास्तविक तथ्य तक पहुँच भी
जाए तो तब तक इतना विलम्ब हो जाता है
कि ही ज्ञात तथ्य अनुपयोगी हो जाता है
और अर्ध्द सत्यवक्ता का हेतुक पूरा हो जाता है
दिनों दिन अर्ध्द सत्य की सफलता से अभिभूत हो
आजकल लोगो ने झूठ बोलने के बजाय
अर्ध्द सत्य का आश्रय लेना प्रारम्भ कर दिया है
और हर व्यक्ति सत्यवादी युध्दिष्ठर का
अनुसरण करने की और अग्रसर है