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Monday, January 11, 2016

अर्ध्द सत्यवक्ता

वैसे तो अधिकतर लोग झूठ बोलने के 
अभ्यस्त होते है 
झूठ बोलने के तरह तरह के बहाने ढूंढते है 
परन्तु इस झूठ आंधी में 
कुछ सत्यवादी लोग भी विध्यमान है
ऐसे कुछ सत्यवादी लोगो में भी 
ऐसे लोगो की संख्या ज्यादा  है 
जो जिनका सत्य अर्ध सत्य होता है 
अर्ध सत्य वह कला जिसकी उत्पत्ति 
महाभारत काल में युध्द के दौरान 
सत्यवादी महाराज युध्दिष्ठर ने की थी 
जब से महाराज युध्दिष्ठर ने
 इस विधा का सृजन किया 
तब से तथाकथित सत्यवादी 
अर्ध्द सत्य ही बोलने में लगा हुआ है 
अर्ध्द सत्य बोलने का लाभ यह होता है 
सुनने वाले के विवेक पर छोड़ दिया जाता है कि 
वह वक्तव्य का क्या आशय लगाए 
सही आशय श्रोता समझ जाए तो अर्ध्द सत्य वक्ता 
को सत्य बोलने का पुण्य प्राप्त होता है 
पर ऐसा होता बहुत कम है 
जब द्रोणाचार्य जैसे विद्वान और योध्दा पुरुष 
अर्ध्द सत्य की तह तक नहीं पहुँच पाये तो
 सामान्य जीव की क्या हैसियत 
मूल रूप से जो व्यक्ति झूठ बोलने के दोष से बचना 
चाहता है वह अर्ध्द सत्य का आश्रय लेता है 
कभी कभी अर्ध्द सत्य इतना खतरनाक होता है 
सुनने वाला व्यक्ति संशय ग्रस्त होकर मरते दम तक 
वास्तविक तथ्य नहीं पहुंच पाता है 
और यदि संयोगवश वह वास्तविक तथ्य तक पहुँच भी 
जाए तो तब तक इतना विलम्ब हो जाता है 
कि ही ज्ञात तथ्य अनुपयोगी हो जाता है 
और अर्ध्द सत्यवक्ता का हेतुक पूरा हो जाता है 
दिनों दिन अर्ध्द सत्य की सफलता से अभिभूत हो 
आजकल लोगो ने झूठ बोलने के बजाय 
अर्ध्द सत्य का आश्रय लेना प्रारम्भ कर दिया है 
और हर व्यक्ति सत्यवादी युध्दिष्ठर का 
अनुसरण करने की और अग्रसर है