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Thursday, November 1, 2012

व्यक्ति का मूल्य


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व्यक्ति का मूल्य  उसके संस्कारो विचारो 
आचार  व्यवहार से होता है
आखिर  ऐसा  क्यो होता है ?
कि समान उपाधी धारको मे से एक व्यक्ति शीर्ष पर
दूसरा धरातल पर खडा होता है
यह परिस्थिति व्यक्ति के गुणो एवम संस्कारो पर 
आधारित  मूल्य के कारण निर्मित होती है
केवल  ज्ञान के आधार पर व्यक्ति का आकलन  
नही किया जा सकता है
व्यक्तित्व के आकलन के लिये व्यक्ति की क्षमता
,कार्य कुशलता ,विश्वसनियता ,कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता
तथा मानवीय आदर्शो के प्रति आस्था को  परखना होता है
इसी प्रक्रिया को साक्षात्कार की संज्ञा  दी जाती है
कोई संस्था हो या ओद्योगिक  समूह हो
वह कार्य कुशलता के साथ व्यक्ति मे श्रेष्ठ गुणो की अपेक्षा करता है
दुर्गुणो से भरा ज्ञानी व्यक्ति कही भी हो
वह किसी व्यक्ति की विश्वसनियता अर्जित नही कर सकता
वह जहां जाता है
स्वयम के साथ संबंधित संस्था की छवि भी खराब करता है
प्रश्न यह है कि हम अपने व्यक्तित्व मे श्रेष्ठ गुणो को 
कैसे समाहित करे
श्रेष्ठ गुण व्यक्ति मे एका-एक प्रकट नही हो जाते
समग्र श्रेष्ठ गुणो को व्यक्तित्व का अंग बनाने के लिये दीर्घ कालिन प्रयास करने होते है
सत जनो का साथ श्रेष्ठ गुणो के विकास मे उर्वरता प्रदान करता है
हमारे व्यक्तित्व के विकास मे हमारे परिवेश का 
बहुत योगदान होता है
स्वाभाविक रूप से हमारे व्यक्तित्व का विकास
श्रेष्ठ जनो का साथ पाकर होता जाता है
श्रेष्ठ विद्यालय ,महाविद्यालय ,शैक्षणिक संस्थानो मे अध्ययन एक मार्ग हो सकता है
परन्तु अच्छे बुरे लोग सभी जगह हो सकते है
हमे निरन्तर गुणी जनो का साथ चाहिये तो
हमे गुणहीन तथा दुर्गुणो से घिरे व्यक्तियो से दूर रहने 
के यत्न करने होगे
दुर्गुणो से घिरे व्यक्तियो का दीर्घकालिन साथ
हमारे व्यक्तित्व की चमक को फीका कर देगा
सत्संग का अर्थ मात्र संत प्रवचन सुनना नही होता
सत्संग सतत चलने वाली प्रक्रिया है
जिसे हमे अपनी दिनचर्या मे अपनानी होती है

जरासन्ध अर्थात जरा+सन्ध

http://krishnasmercy.files.wordpress.com/2010/09/bhima_jarasandha.jpg?w=204&h=268


जरासन्ध का सन्धि विच्छेद किये जाने पर
जरा+सन्ध होता है जरा अर्थात व्रद्धावस्था
सन्ध अर्थात सन्धि
जरासन्ध का शाब्दिक अर्थ व्रद्धावस्था की आयु
तथा युवावस्था की आयु का सन्धि काल
कोई भी युवा व्यक्ति बुढापे की अचानक अग्रसर नही होता
बुढापा शनै: शनै: व्यक्ति को अपना शिकार बनाता है
जरासन्ध और भगवान क्रष्ण के बीच कई बार युद्ध हुये थे
कहते है जरासन्ध ने मथुरा पर सोलह बार आक्रमण किये थे
जो भगवान क्रष्ण ने विफल कर दिये थे
बुढापा भी जीवन को प्रकारो क्षीण करता है
कभी तो व्यक्ति के जोडो मे दर्द होता है
तो कभी आँखों से कम दिखाई देना शुरू होता है
कभी त्वचा पर झुर्रिया पडना प्रारंभ होती है
तो कभी ह्रदयाघात से प्राण संकट मे पड जाते है
या उच्च रक्तचाप निम्न रक्तचाप तन मन मे बैचेनी बडा देता है
जरासन्ध की विशाल सेना से मथुरा को बचाने के लिये
भगवान क्रष्ण ने अपने राज्य को समुद्र के मध्य
द्वारका के नाम से राज्य स्थापित किया था
समुद्र के बीच द्वारका स्थापित किये जाने का तात्पर्य
यह है कि ऐसा स्वास्थ्य जो यम नियम के आसन प्राणायाम
के चहु रक्षा दिवारो से रक्षित हो ऐसे स्वास्थ्य मे साँसे फेफडो मे
और रूधिर धमनियो मे ,चेतना तंत्रिका-तंत्र मे उसी प्रकार से
संचरण करती है जिस प्रकार श्री क्रष्ण की द्वारका मे जन -जन
सुख शांती और सम्रद्धि से निवास कर विचरण करते थे
जरासन्ध का वध भीम के द्वारा द्वन्द्व युद्ध के
 माध्यम से करवाया गया
आशय यह है कि बुढापा के युवावस्था पर सोलह 
प्राण घातक प्रहार होते है
जो सोलह प्रकार की शारीरिक दुर्बलताओ  को देते है
अन्त मे बुढापा व्यक्ति के प्राण हर लेता है
यदि बुढापे के जरासन्ध को परास्त करना है तो
हमे भगवान क्रष्ण द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार जीवन यापन करना होगा
दिनचर्या को नियमित करना होगा
आहार विहार संयमित करना होगा
यम नियमो का पालन करने होगा
तभी हम बुढापे को युवावस्था के सन्धि स्थल से प्रथक 
किया जाना संभव होगा
हमे अपनी युवा वय एवम शारीरिक स्वास्थ्य को बचाने के लिये
महाबली भीम का अवलम्बन लेना होगा
अर्थात अधुरे प्रयास न कर भीम अर्थात भरसक प्रयास करना होगे
एक-एक कर सारी दुर्बलताओ को दूर करनी होगी
तथा जरासन्ध का वध कर युवावय को दीर्घ काल तक 
बनाये रखना होगा
वर्तमान मे सुखी और स्वस्थ जीवन का यही मन्त्र है