Total Pageviews

Monday, November 26, 2012

व्यक्तित्व निर्माण मे अनुकूलन क्षमता

-->
व्यक्तित्व निर्माण के क्षैत्र मे एक महत्वपूर्ण सूत्र है
स्वयम मे अनुकूलन क्षमता का विकसित करना
अनुकूलन क्षमता का सीधा सम्बन्ध विपरीत परिस्थितियो
स्वयम की क्षमता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होता है
अथवा नितान्त जीवन के लिये अनुपयुक्त परिस्थितियो मे
जीवन निर्वाह कर लेना अनुकूलन क्षमता होती है
अनुकूलन क्षमता के प्रमाण प्रक्रति मे चारो तरफ बिखरे पडे है
हाइड्रिला नामक जलीय पौधा का निरन्तर 
जल मे मग्न रहते जीवित रहना
,नागफनी का पौधे का मरूथल मे जीवन को बचाये रखना
वनस्पतिक अनुकूलन क्षमता है
हम बहुत से ऐसे लोगो को जानते है
जो निरन्तर परिस्थितियो का रोना रोते रहते है
मौसम को कोसते है
अपनी असफलताअो के लिये दूसरो को दोषी मानते है
वे व्यक्ति जीवन मे कभी सफल नही हो सकते है
सफल वह व्यक्ति होता है जो घोर विषम परिस्थितियो मे भी
धैर्य नही खोता ,परिस्थितियो से सन्तुलन स्थापित कर
अपने लक्ष्य की अोर निरंतर अग्रसर होता जाता है
प्रत्येक परिस्थिति मे संतुष्ट रहता है
अपनी वास्तविक क्षमता अौर कमजोरियो को अच्छी तरह जानता है
निरन्तर अात्म मुल्यांकन करता रहता है
अपनी मौलिक क्षमता के अनुरुप लक्ष्य निर्धारित करता है
असफल होने पर निराश नही होता है
असफलता मे सफलता के बीज तलाश करता है
ऐसा व्यक्तित्व विपरित परिस्थितियो रोना नही रोता
अपितु प्रतिकूलताअो को अपने लिये वरदान बना लेता है
इतिहास साक्षी है सम्राट चन्द्रगुप्त , योगेश्वर श्रीक्रष्ण
शैशव काल से ही घनघोर प्रतिकूलताअो मे रहे
पर वे कभी दुखी नही हुये स्वयम दुखो से घिरे होने के बावजुद
 दूसरो के दुख कम किये
संसार प्राणीयो की अाॅखो से अाॅसू पौछे
अनुकूलन क्षमता का अाशय यह नही है कि
विचारो से समझौता कर पतन की राह पर चले जाना
अनुकूलन क्षमता सकारात्मक सोच को 
अागे बढाने वाली होनी चाहिये
जिस प्रकार हमारे महापुरुष महाराणा प्रताप ने
वनवासियो की तथा भगवान राम ने वानरो की क्षमताअो
का उनके बीच रह कर समाज कल्याण 
तथा राष्ट्र रक्षा के लिये उपयोग किया
नकारात्मक विचारो प्रभावित हुये बिना
अपने सर्वोच्च अादर्शो पर टिके विचारो से 
जन -मन को प्रभावित किया था