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Tuesday, February 7, 2012

सत्यम शिवम् एवम सत्य के प्रतिष्ठान शक्ति पीठ

सत्यम शिवम् सुन्दरम 
अर्थात सत्य कल्याणकारी हो मधुर ,सुन्दर हो 
सत्य कल्याणकारी हो सकता है 
किन्तु सदा सुन्दर नहीं हो सकता
सत्य कुरूप ,कटु ,नग्न भी हो सकता है
जो कल्याणकारी तो होगा परन्तु सुनने  देखने में कुरूप ,कटु ,नग्न होगा 
क्योकि असत्य का आवरण कुरूप ,एवम नग्न सत्य को ढक तो सकता है
उससे किसी का कल्याण नहीं होता ऐसे सत्य को बर्दाश्त करना जहर पीने के सामान होता है 
इसलिए सत्य के साथ शिव शब्द का उल्लेख आया है सत्य ईश्वर का पर्याय है 
जहा सत्य है वहा ईश्वर है
सत्य पर आवरण डालना ईश्वरीय तत्व को सामने न आने देना है 
ऐसे व्यक्तियों से ईश्वर कैसे प्रसन्न हो सकता है सम्पूर्ण अपराध शास्त्र ,न्याय शास्त्र में अपराध का अन्वेषण एवम विचारण की प्रक्रिया सत्य के अन्वेषण पर आधारित है
इसीलिए सत्य के प्रयोग सदा सफल रहे है 
सत्य के रूप में ईश्वर से साक्षात्कार उसी व्यक्ति को हो सकता है
जिसमे शिवत्व अर्थात शिव के समान सहिष्णु भाव एवम लोक कल्याण की भावना हो
शिव के साथ उनकी अर्ध्दांगिनी सती का उल्लेख
तथा सती के द्वारा सत्य एवम शिव की रक्षार्थ आत्मदाह करना यह दर्शाता है 
की व्यक्ति को सत्य की रक्षा के लिए आत्म आहुति देने के लिए तत्पर रहना चाहिए
यह उल्लेखनीय है की सती आत्मदाह करने के पश्चात शिव जी ने उनके शव को लेकर तांडव नृत्य किया था जिससे सती के शरीर के भिन्न भिन्न अंग भारत वर्ष में भिन्न भिन्न स्थानों पर गिरे थे
जहा जहा गिरे थे उन स्थानों को शक्ति पीठ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया 
अर्थात सत्य के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने वाले व्यक्ति के लिए 
शिव ,सत्य रूपी ईश्वर क्रुध्द हो जाते है 
माता सती के शव के अंग के टुकड़े जहा जहा गिरे 
वे स्थान ५२ शक्ति पीठ कहलाये 
वे शक्ति पीठ न होकर वास्तव में ५२ सत्य के प्रतिष्ठान है
जिनके दर्शन कर माता सती के सत्य के प्रति बलिदान का स्मरण किया जाता है
वहा झूठ फरेब को छोड़ कर दर्शन करना चाहिए अन्यथा दर्शन का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है