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Monday, May 5, 2014

आतंक या अनुशासन

 प्रशासन  करने के दो तरीके हो सकते है 
पहला अनुशासन , दूसरा  आतंक 
आतंक से व्यक्ति भयभीत रहता है
अनुशासित नही 
आतंक अपराधियो के लिये होता है 
जबकि अनुशासन क्षमताओ को सही दिशा और मार्गदर्शन के लिये 
अनुशासन से क्षमताये निखरती है प्रतिभाये उभरती है 
जबकि आतंक से राजकता  समाप्त होती  है 
परिवार समाज  और देश में अनुशासन बना रहे 
सर्वप्रथम प्रयास इस दिशा में होना चाहिये 
अनुशासन के प्रयास विफल हो जाने पर ही  
दंड भय का इस्तेमाल होना चाहिये 
आतंक जब अनुशासित व्यक्ति को भी 
आतंकित और भयभीत करने लग जाये तो 
उसे आतंकवाद कहा जाता है 
चाहे वह प्रशासनिक आतंक वाद ही क्यो न हो ?
अनुशासन का प्रभाव सदा बना रहता  है 
चाहे प्रशासक रहे या न रहे 
अनुशासन एका-एक विकसित नही होता 
अनुशासन विकसित करने हेतु 
एक प्रकार कि कार्य संस्कृति विकसित करना होती है 
जो प्रशासनिक निष्पक्षता से प्रारम्भ होकर
 श्रेष्ठता को सम्मानित करने की अग्रसर होती है 
आतंक पूर्ण प्रशासन मे आत्म सम्मान का कोई स्थान नही होता 
प्रत्येक व्यक्ति खुशामद करने मे लगा रहता है 
खुशामद और चापलूसों से घिरा व्यक्ति  आत्ममुग्ध  होकर अव्यवहारिक निर्णय लेता है
 ऐसा आत्ममुग्ध व्यक्ति तरह तरह कि भ्रांतियों मे
 जीता है और मरता है