Total Pageviews

Friday, January 9, 2015

स्वर्ग नरक की अवधारणा

सनातन धर्म में स्वर्ग नरक की अवधारणा है 
जिसके पीछे यह तर्क दिया गया है 
की शुभ कर्मो को करने वाले पुण्यात्मा को 
स्वर्ग की प्राप्ति और दुष्कर्मो करने वाली आत्मा को
 नरक की प्राप्ति होती है  
उपरोक्त अवधारणा की समय समय पर 
आलोचकों द्वारा कटु आलोचनाएँ की जाती है
 और वैज्ञानिक तथ्यों से परे  बताया जाता है
 परन्तु व्यवहारिक जगत में देखे तो 
  उपरोक्त अवधारणा के सफल प्रयोग और उदाहरण हमें मिलते है व्यवहारिक जगत में स्वर्ग क्या है स्वर्ग वहा है
 जहा मन चाही  वस्तु पाई जा सके
 केवल संकल्प से साधन की प्राप्ति हो जाए 
सुख के शान्ति भी प्राप्त हो समृध्दि को निरंतरता मिलती रहे 
नरक कहा है? नरक वहा है
 जहा अभाव हो कठिनाइयाँ हो असुरक्षा आतंक भय व्याप्त हो 
थोड़ी देर के लिए कोई दुष्टात्मा व्यक्ति 
ऐसे स्थान पर पहुंच जाए जो स्वर्ग तुल्य हो 
तो निश्चय ही वहा का वातारण कलुषित हो जाएगा 
स्वर्ग  नरक बनाने में कोई देरी नहीं लगेगी
 वह अपने दुष्कर्मो से उन वस्तुओ से भी वचित हो जाएगा
 जो सहज और सरलता से उसे उपलब्ध हो सकती थी
  इसलिए ऐसे व्यक्ति के कर्म ही नरक के  जनक होते है 
इसलिए शुभ कर्मो को धारण करने वाली पुण्यात्मा को 
स्वर्ग प्राप्ति का विधान है