बाल जिन्हें संस्कृत में केश कहते है कि लीला बहुत ही निराली है। जिन व्यक्तियों के सिर पर अक्सर दायित्वों को बोझ नहीं होता उनके बालो में सफेदी नहीं आ सकती ।बहुत से व्यक्ति ऐसे भी होते है जो अकारण ही बालो में सफेदी के शिकार हो जाते है ।ऐसे व्यक्तियों के लिए कहा जाता है की उन्होंने बाल धुप में सफ़ेद किये है ।
कुछ लोग अज्ञात कारणों से केशविहीन अवस्था में पहुँच जाते है उनके बारे में सुधी जन यह कहते हुए दिखाई देते है की उनका भाग्योदय हो चुका है ।परन्तु किस मात्रा में ऐसे केश विहीन सज्जन का भाग्य उदय हुआ यह तो वे सज्जन ही बता सकते है
समस्या वहा आकर खड़ी होती है जबकि ऐसे अल्प केशधारी सज्जन नाई की दूकान पर केश कर्तन कार्य हेतु जाते है एक तो केश की अल्प मात्रा ,दूसरी और बालो के कर्तन की पावन परम्परा की निर्वहन की चुनौती, दोनों के बीच केश कर्तनालय का स्वामी धर्म संकट में खडा नजर आता है ,कि वह कौनसे बाल काटे और कौनसे नहीं ,फिर भी ज़रा सी असावधानी अल्प केश धारी सज्जन के क्रोध का कारण बन जाती है ।बेचारा केश कर्तन कार बेबस और असहाय नजर आता है। अनावश्यक क्रोध का भाजन बन जाना उसकी नियति बन जाती है ।
कोरोना काल मे बालो के विकराल होने की कथाये अलग है ।लम्बे लॉक डाउन ने जहाँ केश कर्तन कारो को बेरोजगार बना दिया है ।वही प्रत्येक मोहल्ले में बढ़ते बालो के कारण कुछ लोग ऋषि महर्षि और चिंतक मनीषी के रूप में नजर आने लगे । सामान्य दिनों में कोई व्यक्ति बढ़ी हुई दाढ़ी और बड़े बाल वाला दिखाई देता है तो उसे किसी प्रतिज्ञा से जोड़कर देखा जाता है और बालधारी व्यक्ति स्वयम को भीष्मपितामह मान लेता है
ऐसा नही कि बड़े बालों का सम्बन्ध मात्र किसी भीषण प्रतिज्ञा से हो । जब कोई साधारण व्यक्ति सिर एवम दाढ़ी पर बड़े बाल रखता दिखाई देता है तो सहज ही यह अंदाज लगाया जा सकता कि वह या तो अपनी प्रेमिका के विरह वेदना में है या लेखक ,कवि ,शायर बनने की प्रक्रिया गुजर रहा है और यही भ्रम किसी व्यक्ति को साहित्य से दूर दूर तक सम्बंध नही होने पर भी साहित्यकार धोषित कर देता है ।
बालो को एक सीमा के बाद बढ़ाना सबसे मुश्किल कार्य होता है । कुछ महिलाये और पुरुष अपने बालों को बढ़ाने के लिये तरह तरह के उपाय उपचार करते है । महिलाये तो अपने छोटे बालो को लेकर चिंतिंत ही नही चिड़चिड़ी हो जाती है । बालो के प्रति असुरक्षा का भाव उनके भीतर इस कदर समाया रहता है ।वे बालो को छोड़कर किसी की भी क़सम खा सकती है , परन्तु बालदेव की नही ।
मूंछ के बालों की एक अलग कहानी है । सामान्य रूप से मूंछ के बालों को व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता है ।गर्दन कट जाये पर मूंछ नही कटे इस प्रतिज्ञा के कारण कई मूंछ्धारी पराक्रमी अपनी गर्दन ही नही सब कुछ कटा चुके है ।मूंछ के बालों पर नींबू टिकाना, मूंछ को तरह तरह से नए नए तरीके से सज्जित करना यह एक कला है ।इस कला में भले ही कोई स्नातक उपाधि न हो, परन्तु सर्वक्षेष्ठ मूंछ्धारी अपने आप को इस कला में एम.फिल. या पी.एच, डी होल्डर से कम नही समझते है । उन्हें लगता है उनकी आकर्षक मूंछो के कारण ही यह दुनिया टिकी हुई है
जब कोई आत्मीय व्यक्ति उसके व्यवहार से घर के बुजुर्गों को आहत कर देता है ।तब बड़े बुजुर्ग यह कहते हुए नज़र आते है कि वह माथे का बाल था ।जो टूटने पर कही पर भी जाये हमे क्या ? मतलब । ऐसा नही कि बालों का स्थान उनका महत्व स्थापित नही करता । बाल किस अंग पर है किस प्रकृति का यह सबसे महत्वपूर्ण होता है । सभी बालो के मूल्यांकन का एक ही आधार नही हो सकता । आजकल तो बालो की लंबाई और मोटाई के आधार पर उसके मूल्य तय होते है । खबरे तो यहां तक सुनने में आती कि कुछ देवस्थानों पर बड़ी मात्रा बाल त्यागी लोगो की वृहद पैमाने पर नीलामी होती है । नीलामी से एकत्र धनराशी लाखो में नही करोड़ो में होती है ।
कुछ लोग तो बालो की महत्ता से इतने अधिक परिचित है कि वे अक्सर यह कहते रहते है कि यह तो घर की खेती है ।कितना भी गरीब आदमी हो , उसके पास जीवन निर्वाह के कोई साधन न भी हो फिर भी घनी भूत केश संपदा का स्वामी तो होता ही है । या यूँ कहे कि जितना गरीब व्यक्ति होगा उसके पास उतनी ही घनी भूत केश सम्पदा होगी ।
बालो के सम्मान में उस समय ज्यादा वृध्दि होती है , जब बालो के बारे में कहा जाता है कि वे किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के नाक के बाल है ।ऐसा तब होता है कोई व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण पदधारी व्यक्ति का विशेष कृपा पात्र होता है