Total Pageviews

Wednesday, March 7, 2012

bal hi jeevan hain


बल ही जीवन हैं 

पुरानो मैं एक श्लोक ता हैं -
                                " अस्व नेति गजं नेति व्याग्रः नेति  च नेति च
                            अजा पुत्रम बलि   दध्यात देवों दुर्बल घात्मस्चा "



इसका अर्थ ये हैं की -  दुनिया मैं हमेशा कमज़ोर ही प्रताड़ित होता हैं कमज़ोर ही शिकार होता हैं कमज़ोर और गरीब ही  बली होता  हैं  कमज़ोर को हर कोई परेशान करता हैं उसका उपयोग करता हैं वही सताया जाता  हैं कमज़ोर का कोई अस्तित्व नहीं होता उसकी कोई इच्छा नहीं होती क्योकि उसमे विरोध करने की शक्ति नहीं होती साहस  नहीं होता कमज़ोर प्रतिकार नहीं कर सकता और कर भी दे तो जीत नहीं सकता उसका प्रतिकार सफल नहीं हो सकता क्योकि वो शक्तिहीन  होता हैं बलहीन होता हैं .

इस श्लोक का अनुवाद - घोड़े की बलि नहीं दी जाती हाथी की बलि नहीं दी जाती और सिंह की बलि नहीं नहीं सिंह की बलि तो असम्भव हैं देवताओं  को भी  अजा ( बकरा ) जेसे निर्बल प्राणी की ही बलि दी जाती हैं लगता हैं जेसे देव स्वयं भी  निर्बल की  ही  घात करते हैं. 

"स्वामी विवेकानंद ने  कहा हैं -
 बल ही जीवन हैं निर्बलता मृत्यु,
                              बल ही परम आनंद हैं सात्विक और अमर जीवन "

सूजे हुये चेहरे


संस्कार((संस्कृत्ति ), सहयोग,स्वभाव,विकार(विकृत्ति ) ,प्रहार ,प्रतिकार,मे हम किस प्रकार भेद कर सकते है
इस विषय को हम इस तरह समझ सकते है 
जैसे कोई व्यक्ति अपने हाथ से दूसरे व्यक्ति को भोजन खिलाता है
हाथ की इस प्रव्रत्ती को हम संस्क्रति अर्थात संस्कार कहेंगे
हाथ मदद के लिये आगे बढे तो
हाथ की इस व्रत्ति को सहयोग वृत्ति  कहेंगे
जब हाथ अपनी प्रतिरक्षा मे सामने वाले व्यक्ति पर उठे
और  सामने वाले व्यक्ति के गाल पर सकारण थप्पड़ मारे
हाथ की इस प्रवृत्ति  को हम प्रतिकार कहेगे
जब हाथ किसी व्यक्ति पर अकारण आक्रमण करे
तो इस प्रवृत्ति को प्रहार कहेंगे
जब वही हाथ अपने उदर पोषण हेतु अपने मुख को भोजन का निवाला दे
इस व्रत्ति को हम स्वभाव कहेंगे
जब वही हाथ व्यक्ति अपने गाल पर थप्पड़ मारे
तो इस प्रव्रत्ती को हम विकृत्ति  अर्थात विकार कहेंगे
आज हमारे परिवेश मे व्यक्ति,समाज,देश जिस प्रवृत्ति से गुजर रहा है
वह विकृत्ति  या विकार का दौर है
प्रत्येक ,व्यक्ति,संस्था ,समाज,समुदाय अपने हाथो से
अपने हाथो से अपने गालो पर थप्पड मारे जा रहे है
हमारे सामाजिक ,वैयक्तिक चेहरे इस विकार के कारण सूजन लिये हुये है
जो सबसे बुरी स्थिति है
सूजे हुये चेहरे को लेकर हम व्यक्तिगत ,सामाजिक ,राष्ट्रिय उत्थान की चर्चाये किये जा रहे है
परिणामस्वरूप शब्द अपने अर्थ और प्रभाव खो चुके है