बल ही जीवन हैं
" अस्व नेति गजं नेति व्याग्रः नेति च नेति च
इसका अर्थ ये हैं की - दुनिया मैं हमेशा कमज़ोर ही प्रताड़ित होता हैं कमज़ोर ही शिकार होता हैं कमज़ोर और गरीब ही बली होता हैं कमज़ोर को हर कोई परेशान करता हैं उसका उपयोग करता हैं वही सताया जाता हैं कमज़ोर का कोई अस्तित्व नहीं होता उसकी कोई इच्छा नहीं होती क्योकि उसमे विरोध करने की शक्ति नहीं होती साहस नहीं होता कमज़ोर प्रतिकार नहीं कर सकता और कर भी दे तो जीत नहीं सकता उसका प्रतिकार सफल नहीं हो सकता क्योकि वो शक्तिहीन होता हैं बलहीन होता हैं .
इस श्लोक का अनुवाद - घोड़े की बलि नहीं दी जाती हाथी की बलि नहीं दी जाती और सिंह की बलि नहीं नहीं सिंह की बलि तो असम्भव हैं देवताओं को भी अजा ( बकरा ) जेसे निर्बल प्राणी की ही बलि दी जाती हैं लगता हैं जेसे देव स्वयं भी निर्बल की ही घात करते हैं.
"स्वामी विवेकानंद ने कहा हैं -
बल ही जीवन हैं निर्बलता मृत्यु,
बल ही परम आनंद हैं सात्विक और अमर जीवन "