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Tuesday, November 24, 2015

सुख और दुःख

सुख दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू है
सुख कोई  परोसी हुई थाली नहीं है
 जो सीधे ही किसी को सहज ही प्राप्त हो जाए 
वास्तव में हम रिश्तों से सुख उठाना तो चाहते है 
पर रिश्तों को सीचना नहीं चाहते 
दुसरो को सुख देना नहीं चाहते 
परन्तु स्वयं सुख पाना चाहते है 
सुख और दुःख क्रिया और प्रतिक्रिया है 
यदि  सुख पाना चाहते है तो 
तो दुसरो को सुख देना होगा 
यदि हम किसी प्रकार के दुःख भोग रहे है तो 
अवश्य ही हमारे जाने अनजाने कर्मो से 
कोई व्यक्ति दुखी रहा होगा
व्यक्ति सुखी होने होने के ढेरो उपाय करता है
 साधनो में सुख ढूंढता है 
पर सुख प्राप्ति का सामान्य सूत्र नहीं जानता 
कई लोग तो दुसरो के दुःख में अपना सुख ढूँढते है और दूसरे के सुख में अपना दुःख
 ऐसे व्यक्ति सुखी होने के  लिए
 दुसरो को दुखी करने के लिए 
तरह तरह के उपाय करते है 
दुःख होता नहीं दुःख पैदा करते है 
भूल जाते है कि सुख मिलता नहीं है 
सुख कमाना पड़ता है