सुख दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू है
सुख कोई परोसी हुई थाली नहीं है
सुख कोई परोसी हुई थाली नहीं है
जो सीधे ही किसी को सहज ही प्राप्त हो जाए
वास्तव में हम रिश्तों से सुख उठाना तो चाहते है
पर रिश्तों को सीचना नहीं चाहते
दुसरो को सुख देना नहीं चाहते
परन्तु स्वयं सुख पाना चाहते है
परन्तु स्वयं सुख पाना चाहते है
सुख और दुःख क्रिया और प्रतिक्रिया है
यदि सुख पाना चाहते है तो
तो दुसरो को सुख देना होगा
यदि हम किसी प्रकार के दुःख भोग रहे है तो
अवश्य ही हमारे जाने अनजाने कर्मो से
कोई व्यक्ति दुखी रहा होगा
व्यक्ति सुखी होने होने के ढेरो उपाय करता है
साधनो में सुख ढूंढता है
पर सुख प्राप्ति का सामान्य सूत्र नहीं जानता
कई लोग तो दुसरो के दुःख में अपना सुख ढूँढते है और दूसरे के सुख में अपना दुःख
ऐसे व्यक्ति सुखी होने के लिए
दुसरो को दुखी करने के लिए
तरह तरह के उपाय करते है
दुःख होता नहीं दुःख पैदा करते है
भूल जाते है कि सुख मिलता नहीं है
सुख कमाना पड़ता है