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Friday, September 25, 2015

गणेश जी सृजन धर्मिता के प्रतीक

गणेश जी की प्रतिमा का निर्माण
 जितना सहज सरल है 
उनका व्यक्तित्व भी उतना ही सहज है सरल है 
गणेश जी की प्रतिमा निर्माण में जितने प्रयोग हुए है 
उतने प्रयोग किसी भी शिल्प निर्माण में नहीं हुए है 
यथार्थ में कहो तो 
गणेश जी सृजन कर्म  के देव है 
जो आमंत्रित करते है 
सृजन और शिल्प के लिए है 
सृजन कर्म  में यदि लचीलापन और प्रयोग धर्मिता की गुंजाईश नहीं हो तो 
नवीन विधाए कभी भी 
अपना स्थान नहीं बना सकती है 
और सृजन की असीम सम्भावनाओ पर
 विराम चिन्ह लग जाते है 
गणेश जी ने उनकी प्रतिमा के शिल्प निर्माण के माध्यम से सृजन कर्म को पूरी स्वतंत्रता प्रदान की है इसलिए गणेश चतुर्थी के पर्व से लगा कर 
अनंत चतुर्दशी के मध्य के समय को हम सृजन धर्मियों का उत्सव कहे तो 
अतिश्योक्ति नहीं होगी 
गणेश जी अर्थात गणाध्यक्ष 
गणाध्यक्ष अर्थात समूहों का नेतृत्व करने वाला 
गणेश जैसा व्यक्तित्व पाकर
 कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व में नेतृत्व क्षमता का गुण  समाहित कर सकता है 
गणेश जी की प्रतिमा का सृजन से विसर्जन करना 
यह दर्शाता है कि 
 किसी भी पदार्थ के प्रति आसक्ति ठीक नहीं
वृहद लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी प्रिय वस्तु  का त्याग करने में भी संकोच नहीं करना चाहिए