गणेश जी की प्रतिमा का निर्माण
जितना सहज सरल है
उनका व्यक्तित्व भी उतना ही सहज है सरल है
गणेश जी की प्रतिमा निर्माण में जितने प्रयोग हुए है
उतने प्रयोग किसी भी शिल्प निर्माण में नहीं हुए है
यथार्थ में कहो तो
गणेश जी सृजन कर्म के देव है
जो आमंत्रित करते है
सृजन और शिल्प के लिए है
सृजन कर्म में यदि लचीलापन और प्रयोग धर्मिता की गुंजाईश नहीं हो तो
नवीन विधाए कभी भी
अपना स्थान नहीं बना सकती है
और सृजन की असीम सम्भावनाओ पर
विराम चिन्ह लग जाते है
गणेश जी ने उनकी प्रतिमा के शिल्प निर्माण के माध्यम से सृजन कर्म को पूरी स्वतंत्रता प्रदान की है इसलिए गणेश चतुर्थी के पर्व से लगा कर
अनंत चतुर्दशी के मध्य के समय को हम सृजन धर्मियों का उत्सव कहे तो
अतिश्योक्ति नहीं होगी
गणेश जी अर्थात गणाध्यक्ष
गणाध्यक्ष अर्थात समूहों का नेतृत्व करने वाला
गणेश जैसा व्यक्तित्व पाकर
कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व में नेतृत्व क्षमता का गुण समाहित कर सकता है
गणेश जी की प्रतिमा का सृजन से विसर्जन करना
यह दर्शाता है कि
किसी भी पदार्थ के प्रति आसक्ति ठीक नहीं
वृहद लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी प्रिय वस्तु का त्याग करने में भी संकोच नहीं करना चाहिए