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Monday, April 2, 2012

तमोगुण से सतोगुण की यात्रा नवरात्री

चैत्र नवरात्रि का समापन रामनवमी पर होता है
 नवरात्रि के अवसर व्यक्ति अपनी आसुरी वृत्तियों से मुक्त होने के लिए भिन्न भिन्न उपाय करता है 
अर्थात भूख  प्यास पर नियंत्रण ,जप -तप इत्यादि उपाय करता है किन्तु 
यह देखने में यह भी आता है की 
कुछ साधको के मन में शांति एवम वृत्तियों के नियंत्रण के स्थान पर 
मन में अशांति ,क्रोध ,अहंकार की उत्पत्ति होती है
 वह आसुरिक प्रवृत्तिया इस पर्व के मूल महत्त्व को समाप्त कर देती है कुछ साधक स्वयम को ईश्वर के अधिक समीप बताने हेतु 
तरह तरह से अनावश्यक पाखण्ड रचते है 
जबकि वास्तव में ईश्वरीय तत्व  
नित्य शुध्द एवम पाखण्ड विहीन होता है 
पाखण्ड कर्म पुरातन युग में दैत्य गण भी करते थे 
इसके शास्त्रों में तरह तरह के प्रमाण मिलते है 
इसलिए आवश्यकता है 
नवरात्रि में सात्विक भावना से दुष्प्रवृत्तियों को त्यागने हेतु निरंतर  साधना एवम अहंकार शून्य होकर ईश्वरीय शरणागति होकर साधना की जाये 
रामनवमी को हवन की अग्नि में सामग्री के साथ मन की दुष्प्रवृत्तियों का दहन किया जाय 
 तद्पश्चात श्रीराम जी दर्शन करने का तात्पर्य यह है की 
समस्त दुष्प्रवृत्तियों को दहन करने के पश्चात
 सतोगुण रूपी राम को स्वयं में समाहित किया जाय 
यदि हमने राम नवमी के दिन सतोगुण रूपी राम को स्वयं समाहित नहीं किया तो नवरात्रि में की गई साधना निरर्थक है 
 नवरात्रि तमोगुण से सतोगुण की यात्रा है 
इसकी भिन्न भिन्न तिथिया तमोगुण से सतोगुण की और बढ़ने की अवस्थाये है 
महत्त्वपूर्ण यह तथ्य है की इस यात्रा में कौनसा पथिक रामत्व रूपी सतोगुण के कितना निकट पहुचा