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Sunday, September 8, 2013

श्रीकृष्ण बलराम संवाद


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यमुना तट पर बैठे भगवान् श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम श्रीकृष्ण से बोले की कृष्ण त्रेता युग में मै  तुम्हारा अनुज लक्ष्मन था | तब मै  तुम्हारी आज्ञा का पालन करता था तुम्हारी रक्षा में संलग्न रहता था |वर्तमान युग द्वापर में मै  तुम्हारा ज्येष्ठ हूँ फिर भी मुझसे ज्यादा निर्णायक भूमिका तुम्हारी है |
तुम अधिक पूज्य हो आखिर बड़े भाई होने का मुझे क्या लाभ ? 
भगवान् श्रीकृष्ण बोले !दाऊ  त्रेता युग में जब मेरे अनुज लक्ष्मन थे | 
तब तुम बार क्रोधित हो जाते थे, छोटी छोटी बाते तुम्हे विचलित कर देती थी, तब मै  तुम्हे शांत कर देता था, भैया भारत को और परशुराम को देखकर तुम कितने उत्तेजित हो गए थे |उत्तेजना वश मेघनाथ से युध्द करने के कारण तुम अचेत हो गए थे |वर्तमान में भी दाऊ आप कभी    सुभद्रा हरण के प्रसंग पर क्रोधित हो जाते हो तो कभी महाभारत युध्द में भीम द्वारा दुर्योधन की जंघा तोड़े जाने पर  क्रोधित हो जाते हो | निर्णायक क्षणों में तीर्थाटन पर निकल जाते हो और मै  रामावतार में भी विचलित नहीं होता था |और इस अवतार में भी क्रोधित नहीं निर्णायक क्षणों में मै  मूक दर्शक नहीं रहता | समस्याओं से पलायन नहीं करता,उनके बीच में रह कर उन्हें सुलझाने के सारे उपाय करता हूँ |सज्जनों का सरंक्षण कर उनका मार्ग प्रशस्त करता हूँ, उन्हें नेत्रत्व प्रदान कर समाज को सही दिशा प्रदान करता हूँ |जहा भी मेरी आवश्यकता पड़ती मै तुरंत पहुँच जाता हूँ |इसलिए भैया छोटे या बड़े होने का कोई अर्थ नहीं जो समाज परिवार और राष्ट्र में अपनी भूमिका को समझ पाता है वही अधिक  पूज्य होता है