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Wednesday, November 27, 2013

महर्षि पाणिनि

महर्षि पाणिनि का संस्कृत व्याकरण में 
बहुत बड़ा योगदान है 
उनके बाल्य काल कि घटना है 
उनके गुरु ने उनकी हस्त रेखा देखकर 
बताया कि उनके हाथ में विद्या कि रेखा नहीं  है 
वे बहुत दुखी हुए और उन्होंने 
गुरूजी से प्रश्न किया कि 
विद्या कि रेखा हथेली में कौनसे स्थान पर पाई जाती है 
गुरूजी द्वारा बताये जाने पर वे नदी के तट पर गए 
और उन्होंने एक तिकोना पत्थर उठाया
तद्पश्चात अपने हाथ में विद्या रेखा बनाने का यत्न करने लगे 
उनके हाथ लहू -लुहान हो गए थे 
तभी गुरूजी ने उन्हें आकर समझाया कि
ऐसे कोई विद्या कि रेखा बनती है 
विद्या कि रेखा तो प्रारब्ध और पुरुषार्थ से उन्पन्न होती है 
महर्षि पाणिनि ने उनके आराध्य देव भगवान् महादेव कि
 तपस्या कि भगवान् महादेव ने उनकी 
तपस्या से प्रसन्न होकर इच्छित वर माँगने को कहा 
महर्षि पाणिनि ने उन्हें ज्ञान का वर माँगा 
भगवान् महादेव द्वारा डमरू बजाते हुए उन्हें  जो सूत्र दिए वे
 अष्ट अध्याय के पहले सूत्र बने 
महर्षि पाणिनि ने उन सूत्रो को आधार बना कर आठ अध्याय में संस्कृत व्याकरण के सारे सूत्रो को समेट लिया 

Monday, November 25, 2013

व्यवसाय कल्पना आशियाना

व्यक्ति कि कल्पना उसके द्वारा किये गए व्यवसाय और
 कार्य पर निर्भर करती  है यह अनुभव भवन निर्माण में आता है  
व्यक्ति जीवन भर  कि कमाई का उपयोग एक आशियाना 
बनाने में खर्च कर देता है एक बार एक रिटायर्ड स्टेशन मास्टर के 
निवास स्थान पर जाने का प्रसंग आया अवसर था गृह -प्रवेश  का मकान के प्रत्येक कौने से  उन्होंने आगंतुकों को अवगत कराया 
लगता था उन्होंने रेलवे का प्लेटफार्म बना दिया है सीढ़िया ऐसी लग रही थी जैसे  ओवर ब्रिज से एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म 
पर जा रहो हो कमरे ऐसे लग रहे थे जैसे रेल के डिब्बे ,मकान का का अग्र  मानो किसी ट्रैन कि प्रतीक्षा कर रहा हो इसी प्रकार एक शिक्षक के मकान कि आकृति विद्यालय या पाठ शाला जैसी प्रतीत हो रही थी सेवानिवृत्ति के पश्चात बोध हो रहा था कि मानो उन्होंने निजी विद्यालय खोल दिया है कमरो का परिचय ऐसे करा रहे थे जैसे कोई कमरा प्रधाना ध्यापक को हो तो कोई कमरा प्रयोगशाला या कोई कक्ष पुस्तकालय  एक बार एक सेवानिवृत्त सैनिक ने उनके भवन के गृह प्रवेश के अवसर पर आमंत्रित किया भोजन के पश्चात मकान कि भौगोलिक स्थिति से परिचित कराया दूसरी मंजिल पर ऊँची ऊँची दिवाले जिन पर कोई छत नहीं थी देखकर लगा कि दुश्मन 
देश कि सेना से प्रतिरक्षा  के लिए बंकर र बना रखा हो कमरो कि आकृति बैरक नुमा लग रही थी 

भ्रम निवारण का उपाय

भ्रम कई प्रकार के होते है
 व्यक्ति का स्वयम कि क्षमता के बारे में भ्रम होना 
स्वयम को अति क्षमतावान और बुध्दिमान मान लेने का भ्रम 
दूसरे व्यक्तियो कि क्षमताओ को अधिक या अल्प 
मान लेने का भ्रम 
दोनों प्रकार के भ्रम का निवारण होना आवश्यक है 
रामायण में जब सीता  जी कि खोज हेतु 
वानर सेना सहित श्रीराम हनुमान लक्ष्मण 
सुग्रीव अंगद सिंधु के किनारे किंकर्त्तव्य  विमूढ़  अवस्था में बैठे थे 
तब यह ज्ञात होने पर कि लंका जो उस पार है
 रावण ने सीता जी  को वहा 
अशोक वाटिका में बंधक बना रखा है 
समुद्र कि चौड़ाई ज्ञात होने पर कि
 समुद्र शत योजन अर्थात चार सौ कोस है 
जांबवान को अपनी वृद्धावस्था को देखते हुए
 समुद्र लांघ जाने में विफल होने का भ्रम था 
अंगद को मात्र अपनी क्षमता को अल्पता  का भ्रम था 
परन्तु हनुमान जी जो न तो अधिक उतावले थे 
और न ही किंकर्त्तव्य विमूढ़ को किसी 
प्रकार का भ्रम नहीं था 
परन्तु हनुमान जी कि क्षमता पर सभी लोगो को विश्वास था 
ऐसे क्षमतावान पराक्रमी पर
  विश्वास  व्यक्त करने का ही परिणाम ही था
 कि सीता रूपी लक्ष्य कि प्राप्त कर सके
आशय यह है जहा भ्रम  रहता है वहा सफलता प्राप्त नहीं होती 
सीता रूपी लक्ष्य तभी प्राप्त होता है 
जहा भ्रम  विहीन विश्वास  से युक्त ऐसी क्षमता विदयमान हो  
जिसे प्रभु राम जैसे ईश का आशीष प्राप्त हो  
इसलिए हनुमान जी के  स्मण  मात्र से सारे भ्रम दूर हो जाते है 

Friday, November 15, 2013

तू श्रीराम को पा जाएगा

भगवान् के भव् में भाव होते है 
भाव बिन अभाव रहता है 
भावो से प्रभाव होता है 
भावो से भावनाए होती है 
भावुकता एक अच्छे इंसान के ह्रदय में पलती  है 
दिल जब टूटता है भावनाए जलती है 
भावनाए पिघलती है
भाव विहिन्  चेहरा पत्थर  और निर्जीव  पाषाण कहलाता है 
भावनाओ से भरा व्यक्तित्व निष्प्राण में भी चेतना जगाता है 
भावनाओ के बल पर व्यक्ति हर मंजिल  और मुस्कान पाता  है 
भावनाओ के धरातल पर 
भगवान् भी इस जहां में इंसान बन कर आता है 
भगवान् प्रसाद का नहीं भावो का भूखा है 
भावो के जल के बिना यह जग मरुथल है  रूखा है 
भावो के दीप है भावो के सीप है 
भावो के पंछी है नभ भी समीप है 
भावो से कल्पनाये है ,भावो से वन्दनाएं है
भाव नहीं हो पूजन में तो व्यर्थ सारी  साधनाये है
भावनाए निश्छल हो तो हर व्यक्ति राम है 
भावनाए दुर्बल हो तो लक्ष्य भी गुमनाम है 
भावो के कैलाश पर शिव भी विराजमान है 
इसलिए जहा तक सम्भव हो भावनाए सुधारो 
भावो से विह्विल हो परम पिता  परमात्मा को पुकारो 
यह सच है भावो से खिंच कर तेरा प्रभु तेरे समीप आयेगा 
निषाद राज केवट कि तरह तू  प्रभु श्रीराम को पा जाएगा

Saturday, November 2, 2013

महालक्ष्मी पूजा के निहितार्थ

अकेली महादेवी लक्ष्मी उल्लू पक्षी पर आरूढ़ रहती है 
अर्थात जो व्यक्ति मात्र धन के पीछे भागता है 
लालच वश वह मुर्ख बन कर ठगा जाता है
हम  ऐसे कई लोगो को पहचानते है जिन्होने धन लोलुपता के कारण 
गलत प्रकार से गलत योजनाओ में धन का निवेश किया और 
अपने जीवन भर कि कमाई गँवा बैठे
जब महादेवी लक्ष्मी भगवान् विष्णु के साथ रहती है 
भगवान् विष्णु कर्म के देव होने से उनकी अनुगामिनी हो जाती है 
जहां कर्म है वहा धन के स्त्रोत अपने अपने आप उत्पन्न  हो जाते है 
यथार्थ में  हम ऐसे कई लोगो को देखते है 
जो एक समय कुछ भी नहीं थे 
उनके पास किसी प्रकार कि धन सम्पत्ति नहीं थी 
परन्तु कर्मरत रहने से धीरे धीरे वे सम्पन्न होते चले गए
महालक्ष्मी जब भगवान् गणेश के साथ रहती है तो 
धन  के साथ ऐश्वर्य भौतिक सुख आरोग्य कि प्राप्ति   होती है
गणेश के साथ महालक्ष्मी की  पूजा से 
स्थिर लक्ष्मी सहज ही प्राप्त हो जाती है 
इसलिए महालक्ष्मी पूजा के समय उपरोक्त तथ्यो को  
याद रखना आवश्यक है