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Tuesday, November 20, 2012

संकल्प शक्ति आभाव व् द्रढ़ता -












संकल्प शक्ति आभाव व्  द्रढ़ता -

संकल्प कोई छोटा मोटा शब्द भर नही हैं ये एक एसा शब्द हैं जो अपने आप मैं एक पूरा इतिहास लिए हुए हैं ये बहुत महान शब्द हैं और केवल पुरषार्थ करने वाले लोग ही इस शब्द का महत्व जानते हैं .

संकल्प का  अर्थ क्या होता हैं  -  
इस विषय मैं इतना ही कहा  जाना उचित हैं की किसी कार्य को करने के लिए अथवा न करने योग्य कार्य को करने से स्वयम को रोकने के लिए मन को कठोर करना स्वयम को प्रेरित करना मन को अनुशासित करना उसके पश्चात स्वयम को अनुशासित करना और फिर धर्म अनुरूप उसे करना न करना यही संकल्प की मोटी मोटी परिभाषा हैं

कार्यो का लक्ष्य स्वरूप ( करने व त्याज कार्यो का स्वरूप ) -

अब कल्पना कीजिये की आप ने संकल्प लिया की मैं सुबह चार बजे उठ कर दौड़ लगाने जाऊंगा, अब यदि आप किसी प्रेरणा से प्रेरित होकर कठोर संकल्प लेते हैं तो अवश्य आप उठेगे, परन्तु यदि आप मैं संकल्पशक्ति का आभाव हुआ तो सुबह की गहरी नींद ,रजाई की गर्माहट ,और आलस्य का आनन्द आप के संकल्प पर भारी पड़ जायेगा और आप कभी अपने लक्ष्य को नही पा सकेंगे .
आप जीवन मैं कोई भी लक्ष्य निर्धारित करे तो उसे पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम और  त्याग करना अनिवार्य हैं और ये त्याग - परिश्रम आपके ही संकल्प की उत्पति हैं .
यदि किसी को कोई बुरा व्यसन हैं तो उसे छोड़ने के लिए कठोर संकल्प लेना जरूरी हैं शराब की लत सिगरेट की लत आदि मादक पदार्थो से स्वयम को मुक्त  करने के लिए दृढ इच्छाशक्ति का होना आवश्यक हैं और ये  इच्छा शक्ति कठोर संकल्प से ही प्राप्त हो सकती हैं .

आज हमारे इतिहास और वर्तमान मैं जितने भी महान और आदर्श हमे देखने  व सुनने  मैं आते हैं  वे अपने द्वारा किये  गये महान कार्यो को अपने संकल्प से मूर्त रूप देकर ही इतने महान बने है।
उन्होंने वो काम किया जो साधारण लोगो को असम्भव प्रतीत होते हैं   अगर इनके संकल्प मैं कमी होती तो इतिहास के पन्नो मैं इनका नाम नही आता कमजोर संकल्प वाला व्यक्ति कभी इतिहास के पन्नो पर अपना  नाम नही लिख पाया हैं वो उसी तरह मिट गया जेसे पानी पर खिची कोई लकीर मिट जाती हैं .

किसी पहाड़ की छोटी पर एक विशाल पाषण शिला रखी थी  शिला पर लिखा था  -
"उत्थान कठिन हैं पतन सरल हैं" 

व्यक्ति को अपने उत्थान के लिए जितने भी कार्य करने पड़ते हैं वो सब कठिन हैं उन कामो को करने के लिए बहुत कष्ट सहना पड़ता हैं कई बाधाये पार करनी पडती हैं कई प्रकार के लालच जीवन मैं आते हैं और इन सब को जीत कर ही मनुष्य महान बनता हैं उत्थान के शिखर पर पहुचता हैं लाखो करोड़ो मैं कोई एक विवेकानंन्द होता हैं।

किसी सुंदरी के रूप और योवन  के आकर्षण मैं आकर काम के वेग मैं बहना अति सरल और आनंद देने वाला होता हैं पर करोड़ो मैं कोई एक एसा भी होता हैं जो अपने  लक्ष्य के आगे इस प्रस्ताव को ठोकर मार दे .
और  वही भीष्म कहलाता हैं।

आज के वर्तमान युग मैं चारो और भोतिक्तावादी संस्क्रति का बोल बाला हैं 
नित्य नए आकर्षण हमे अपने लक्ष्य से भटकाने के लिए तैयार खड़े हैं पर यदि हम अपने आदर्शो और इतिहास से प्रेरणा ले और अपनी संकल्पशक्ति के बल पर इन सभी बाधाओ पर विजय पा ले तो अपने जीवन को सार्थक कर सकते हैं।
हमारे इतिहास धर्म ग्रंथो मैं जितने भी महापुरुष व् अवतार हुए उन्होंने अपने कर्मो द्वारा हमे यही ज्ञान दिया हैं।