पाषाण को सरल भाषा मे पत्थर और हिमशिला को बर्फ
कहा जाता है।
दोनो के गुण धर्म मे भिन्नता होती है।
जहां पाषाण सरलता पूर्वक आकार नही बदलता
वही हिमखण्ड वातावरण मे थोड़ी सी उष्णता बढने पर
अपना मूल आकार खो देता है।
पाषाण मे किसी भी प्रकार की आकृति बनाना
चित्र रूप देना आसान नही होता।
परन्तु हिमखण्ड को योजना अनुसार
किसी भी प्रकार की आकृति दी जा सकती है।
हम पाषाण से निर्मित प्रतिमा को पूजते है।
पाषाण को प्राण प्रतिष्ठित करते है।
पाषाण पर रची गई कृतियाँ दीर्घकाल तक बनी रहती है।
हजारो वर्षो तक अपना मूल स्वरूप कायम रखती है।
पूरे मनोयोग से पाषाण पर रचे गये शिल्प सजीव और
जीवंत हो उठते है।
फिर किसी व्यक्ति को पाषाण ह्रदय कह कर
क्यो ?निष्ठुर ठहराया जाता है।
निष्ठाये पाषाण की तरह हो तो विश्वास साकार हो जाता है।
आस्थाये पाषाण की प्रतिमा के प्रति जग जाये
तो ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति होती है।
उत्क्रष्ट प्रकृति का पाषाण अथवा पत्थर
रत्न के रूप धारण कर लेता है।
तथा मूल्यवान बन जाता है।
वर्तमान मे लोगो के पारस्परिक विश्वास
जिस प्रकार से समाप्त हो रहे है।
निष्ठाये जिस प्रकार से परिवर्तित हो रही है।
ऐसे मे पाषाण मे उत्कीर्ण सृजनात्मकता
हमारे लिये एक मात्र प्रेरणा स्त्रोत रह गये है।
हिमखण्डो मे रचा गया शिल्प शाश्वत नही रहता
,आकर्षक हो सकता है
किसी व्यक्ति या वस्तु की बाह्य कोमलता
सम्वेदनशीलता का आधार नही हो सकती
बाह्य कोमलता भ्रान्ति उत्पन्न कर सकती है
किन्तु व्यक्ति या सामाज मे क्रान्ति और
सम्वेदना पैदा करने के लिये
आतंरिक कोमलता ,निर्मलता विशालता ,होनी आवश्यक है
उसके लिये विचारो की दृढ़ता भी होनी चाहिये
नारियल फल के बाहरी कवच की कठोरता
उसके भीतर के भाग को कोमल बना देती है
और आंतरिक जल को निर्मलता ,मधुरता प्रदान करती है
नदियो मे रहते पाषाण कण (रेत) कितने ही
वृहद् निर्माण के आधार है
निर्मल नीर के जनक है
इसलिये हे! पाषाण के भीतर बसे देव
हमारे मन मे निर्मलता बनाये रखो
ह्रदय को कोमलता प्रदान करो !
हमारे मन से उद्विग्नता तथा चंचलता समाप्त करो!
मन स्थिरता, शांती,तथा व्यक्तित्व को कान्ति प्रदान करो!
ताकि हमारी निष्ठाये अविचलित ,विश्वास अडिग हो
संकल्प अटल हो ।हम भीतर से निश्छल हो।