प्रेम यदि पूजा हो तो प्रेरणा प्रदान कर
वह ऊर्जा बन जीवन को प्रकाशित करता है
प्रेम यदि कामना हो तो वह व्यसन बन
व्याभिचार की और ले जाता है
प्रेम यदि भक्ति हो तो शक्ति बन जाता है
मन की शक्ति व्यक्ति को आध्यात्मिक उत्थान की ले जाती है
प्रेम यदि वात्स्ल्य हो तो
ममता और पोषण प्रदान कर स्वास्थ्य प्रदान करता है
प्रेम यदि करुणा हो तो
आँसू बन कर सम्पूर्ण मानवता को सींच देता है
प्रेम यदि सेवा हो तो
वह कर्म बन धर्म को जागृति देता है
प्रेम यदि आशीर्वाद बन जाए तो
भिक्षा में शिक्षा की दीक्षा प्रदान कर
शिष्य को सम्पूर्णता प्रदान कर देता है
प्रेम के कई प्रतिरूप है प्रतिमान है
प्रेम की प्रतिष्ठा है प्रेम से ही जीवन गतिमान है
प्रेम की भावना जीवंत है वसंत है
प्रेम स्वयं ही एक धर्म है एक पंथ है