कुरुक्षेत्र में भगवान् कृष्ण अर्जुन के सारथी थे
अर्जुन के रथ की ध्वजा को हनुमान जी थामे हुए थे ऐसा चित्र हम देखते आये है
वर्तमान में हम भगवान् कृष्ण को खोजते है
की वे कहा पर है
इस विषय के सम्बन्ध में यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है
पहले जो कुरुक्षेत्र था
वह आज कर्म क्षेत्र बन चुका है
यदि हमने हमारे मन को हमने ईश साधना के माध्यम से परमात्मा से जोड़ लिया तो हमारी आत्मा एवम मन अर्जुन की भाँती परिष्कृत सुसंस्कृत हो जाएगा
ऐसी स्थिति में जीवन का कार्य क्षेत्र
जो कुरुक्षेत्र की तरह है
उसमे आने वाली कौरव रूपी दुष्प्रवत्तियो से हम सदबुद्धी रूपी श्रीकृष्ण रूपी सारथी की सहायता से परास्त कर सकते है
क्योकि जिस प्रकार श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को समय समय पर गलत निर्णय लेने से बार बार रोका था और जीवन को सही दिशा प्रदान की थी
उसी प्रकार हमारी देह में स्थित सदबुध्दी जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों में मन में आ रही किंकर्तव्य -विमूढ़ता को समाप्त कर
सही दिशा एवम सही गति प्रदान करती है
इस प्रकार हम जीवन के कर्म क्षेत्र में विजय प्राप्त कर सकते है अब प्रश्न यह उठता है की हम अपनी देह में स्थित सदबुद्धी रूपी भगवान् कृष्ण को
कैसे चैतन्य रखे
इसका मार्ग महर्षि विश्वामित्र द्वारा रचित महामंत्र गायत्री मन्त्र में निहित है
यह मन्त्र दुसरे मंत्रो की भाँती
यह मन्त्र दुसरे मंत्रो की भाँती
सांसारिक समस्याओं को समाप्त करने के स्थान पर आत्मा एवम मन का उत्थान करता है
इस मन्त्र के माध्यम से हमने ईश्वर जो प्राण दाता दुःख हरता सुख देने वाला है
जो शुध्द स्वरूप है
सर्व जगत का उत्पत्ति कर्ता है से अपनी बुध्दी को अच्छे गुण कर्म स्वभाव प्रेरित किये जाने की प्रार्थना की है