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Friday, April 6, 2012

हनुमद दृष्टि विकसित करे सृष्टि

पवन पुत्र हनुमान शिव के अंशावतार कहे जाते है
सर्वप्रथम हम इस विषय पर सोचे कि
जिस दशानन रावण को शिव जी ने अभयदान दिया था 
शिव जी रावण के इष्ट देवता थे 
उन्हें हनुमान जी के रूप में अवतार लेने की आवश्यकता क्यों हुई इसका मूल कारण यह था कि
  जिस व्यक्ति को एक बार अभयदान दे दिया और जो शरणागत आ गया हो वह कितना भी दुष्ट क्यों न हो 
उसका वध करना उचित नहीं होता है 
इसलिए शिव जी ने हनुमान जी के रूप में 
वानर कुल में अवतार लिया था 
हनुमान जी चाहते तो स्वयं रावण का वध कर सकते थे 
किन्तु उन्होंने श्रीराम जी का साथ दिया तथा भिन्न भिन्न प्रकार से रावण के सहयोगियों संहार किया 
स्थितिया श्रीराम के अनुकूल बनायी 
संभवत यदि हनुमान जी नहीं होते तो 
रावण का वध किया जाना श्रीराम के लिए मुश्किल था 
इसका तात्पर्य यह है कि 
 शिव जी ने हनुमान जी के रूप में अवतार लेने के बावजूद मर्यादा का पालन किया  
हनुमान जी के बारे में कहा जाता है 
 कि वे राम काज करने को आतुर रहते थे 
राम काज का तात्पर्य यदि राम जी के सहयोग को मानना 
संकीर्ण अर्थ होगा 
उन्होंने श्रीराम जी से हुई प्रथम भेट के पूर्व भी 
सुग्रीव जैसे सज्जन व्यक्ति की  रक्षा  की 
तथा तपस्यारत मुनियों को राक्षसों से सरंक्षण भी प्रदान किया 
आज भी जब कोई सज्जन व्यक्ति संकट ग्रस्त होता 
तो श्री हनुमान जी को याद करने पर वे तुरंत राम काज मान कर 
मदद करने को तत्पर हो जाते है 
हनुमान जी में एक विशेष गुण था की वे छद्म वेशी को तुरंत पहचान जाते थे
 जैसे उन्होंने विभीषण एवम कालनेमि में पहचान की 
हमारे जीवन में सदा हनुमद दृष्टि रहे यह प्रयास करना चाहिए 
 हनुमान जी का यह गुण की कभी भी उन्होंने किसी भी महत्वपूर्ण कार्य का श्रेय स्वयं नहीं लिया अद्भुत था 
जैसे राम एवम रावण के युध्द के पूर्व एवम युध्द के समय उन्होंने नल -नील से समुद्र पर सेतु निर्माण का कार्य प्रारंभ करवाना 
,अंगद को राम जी के दूत के रूप रावण के दरबार में भेजना 
,सुग्रीव को सेनापति के रूप युध्द में अग्रसर करना 
जाम्बवंत जी को मार्गदर्शन समय समय पर प्राप्त करना 
यह हनुमान जी की नेत्रत्व क्षमता को दर्शाता है 
किसी भी कार्य के श्रेय लेने वाले व्यक्तियों को 
हनुमान जी से उक्त गुण ग्रहण कर अपने व्यक्तित्व में विकास कर कार्य का श्रेय  बांटने का अभ्यास करना चाहिए