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Friday, October 12, 2012

क्रिकेट एवम कैरियर तथा व्यवसाय प्रबंधन


क्रिकेट एवम कैरियर तथा व्यवसाय प्रबंधन का परस्पर सम्बन्ध है
इस विषय पर मौलिक दृष्टिकोण स्पष्ट करना आवश्यक है
क्रिकेट मै खिलाड़ी अलग अलग स्थितियों में अलग अलग भूमिका में रहते है
सभी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है
यह आवश्यक है की सम्बंधित खिलाड़ी अपनी भूमिका के महत्व समझे
सर्वप्रथम हम क्रिकेट मै बल्लेबाज की स्थिति मै खेल रहे खिलाड़ी को देखे
तो वह बल्लेबाज
सफलता पूर्वक रन बनाता है
जो प्रत्येक गेंद पर चौके छक्के न लगा कर सही गेंद का इन्तजार करे
अन्यथा वह अच्छा खेलने का अवसर खो सकता है
खतरनाक गेंद सुरक्षित तरीके से खेल कर अपना  विकेट सुरक्षित रख कर
वह अपना खेल जारी रख सकता है 
तथा अच्छी गेंद का मिलने पर वह चौके छक्के बरसा सकता है
इसका तात्पर्य यह है की कैरियर हो या व्यवसाय
उसमे उतार चढ़ाव आना स्वाभाविक है
विपरीत परिस्थियों मै व्यक्ति को चाहिए की मात्र
वह अपने अस्तित्व को बचाए रखे अनुकूल स्थितिया उपलब्ध होने पर
वह अपने  कैरियर तथा व्यवसाय का विस्तार करे
क्रिकेट में दूसरा भूमिका खिलाड़ी गेंद बाज होती है
कई बार खेल में ऐसा होता है
की किसी गेंद बाज की गेंद पर लगातार बल्लेबाज चौके छक्को की बरसात कर देता है
तब यदि गेंद बाज विचलित हो जाता है
तो बल्लेबाज और अधिक आक्रामक हो जाता है
इसके स्थान पर गेंद बाज मानसिक संतुलन बनाए रखते हुए
सधी हुई गेंद बाजी लगातार करता रहे
तो दूसरे क्षण बल्लेबाज आउट हो जाता है
और खेल की बाजी पलट जाती है
इसका यह तात्पर्य यह है की व्यक्ति को बुरे वक्त में धैर्य नहीं खोना चाहिए
और निरंतर एक जैसी गति से संतुलित रहते हुए कर्म करते रहना चाहिए
किसी समय सफलता मिल सकती है
क्रिकेट में मैदान पर खड़े क्षेत्र रक्षको की भूमिका भी महत्त्व पूर्ण होती है
सामान्य रूप से ऐसे क्षेत्र रक्षक जो यह सोचते है कि
उनकी और गेंद नहीं आ सकती इसलिए वे शिथिल अवस्था में रहते है
अगले ही क्षण कोई बल्लेबाज गेंद को बल्ले से उसी गेंदबाज कि उठा देता है
यदि क्षेत्र रक्षक सावधान है तो वह गेंद को कैच कर बल्लेबाज को आउट कर देता है
आशय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्वर्णिम अवसर आता है
उसे उचित अवसर पर अपनी भूमिका को समझना होता है

योग ,भोग और जीवन दृष्टि

व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान जीवन के प्रति
उसके दृष्टि कोण से होती है
व्यक्तित्व में योग वृत्ति हो तो
वह व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ती है
भोग प्रवृत्ति हो तो वह व्यक्ति को तोड़ती ही नहीं
अपितु रिश्तो को निचोड़ती है
हमारा व्यक्तित्व भ्रमर की प्रवृत्ति लिए हुए होना चाहिए
प्रेमपूर्ण मित्रता हो या आत्मीय रिश्ते हो
या प्रकृति के प्रति उपयोगिता के सिध्दांत हो
वे योग प्रवृत्ति से निभाये जाये 
तभी सार्थक और रसपूर्ण होते है
प्राकृतिक संसाधनों का  भोग प्रवृत्ति से उपयोग 
उपभोग कहलाता है
और हम उपभोक्ता बन जाते है
उसी प्रकार से हम प्रेम हो या रिश्ते 
उन्हें आदान प्रादान की भावना से निभाते है
तो वे रिश्ते हमें जोड़ते नहीं अपितु तोड़ते जाते है
रिश्तो में यह प्रवृत्ति भोग प्रवृत्ति कहलाती है
जीवन का आनंद भोग में नहीं योग में है
भोग रोग का जनक होता है
क्या हम जानते है ?
कि प्रकृति की सुन्दर प्रतिकृति
सौन्दर्य और रस से परिपूर्ण फूलो में
 उपवन में समाहित होती है
जब कोई भ्रमर फुल से पराग लेता 
और वह शहद एकत्र करता है
तो वह प्रकृति एवं जीवन के प्रति योग की भावना को
 प्रतिबिंबित करता है
परन्तु जब कोई मानव गुलाब के फूलो से
 गुलकंद एकत्र करने हेतु उन्हें यांत्रिक पध्दति से
सम्पूर्ण रूप से नष्ट कर गुलकंद ,
गुलाब जल का उत्पादन करता है
तो वह भोग प्रवृत्ति को प्रगट करता है
योग प्रवृत्ति से नियति हो या रिश्ते हो
 उन्हें सही रूप में सवारा संजोया जाय तो
सृजन होता है
भोग प्रवृत्ति नियति हो या रिश्ते हो 
उन्हें निखारता नहीं है
उन्हें सदा सदा के लिए मिटा देता है 
नष्ट कर देता है