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Friday, May 9, 2014

कर्म और पूजा

लोग कहते है कर्म ही पूजा है 
परन्तु प्रश्न यह उठता है कि
 वह कर्म जिसे पूजां कहा जाये वह कर्म क्या है 
किसान के लिये कृषि और पशुपालन पूजा है 
व्यापारी के लिये ईमानदारी से व्यापार करना ही पूजा है 
विद्यार्थी के लिए विद्या अध्ययन करना ही पूजा है 
एक राजनेता के लिये धवल राजनीति करना ही पूजा है 
सन्यासी के लिये पदार्थो से प्रति आसक्ति नही रखना
 राग द्वेष की भावना से मुक्त रहना ही पूजा है 
कर्मचारियों के लिए अपने को सौपे गये कार्य को
 पूरी दक्षता और ईमान्दारी से करना ही पूजा है 
अधिकारियों के लिए अधिकारों और कर्तव्यों का 
समुचित निर्वहन करना पूजा की श्रेणी मे है 
घरेलु महिला के लिये घरेलु कार्य का निर्वहन करते हुये 
परिवार मे समन्वय और शान्ति बनाये रखना पूजा है 
पर क्या ऐसा होता यह है कि 
किसान, व्यापारी ,विद्यार्थी ,राजनेता ,संन्यासी 
  ,कर्मचारी ,अधिकारी ,ग्रहणी अपने -अपने कर्म को
 पूजा की तरह करे 
वास्तव में देखा यह जाता है कि  
किसान, व्यापारी ,विद्यार्थी ,राजनेता ,संन्यासी
  ,कर्मचारी ,अधिकारी ,ग्रहणी अपने अपने कर्म को 
छोडकर दुसरे कार्यो मे लिप्त हो जाते है 
आजकल राजनेता राजनीति के स्थान पर
 कूटनीति षड्यंत्र मे लिप्त है 
किसान और व्यापारी राजनैतिक आंदोलनों मे लिप्त है 
विद्यार्थी विद्या   अध्ययन  के बजाय 
अन्य प्रकार कि गतिविधियों में लिप्त है 
संन्यासी पदार्थो के प्रति आसक्ति छोड़ नही पा रहे है 
और महँगे वाहन ,इलैक्ट्रॉनिक वस्तुओ से घिरे हुये है 
कर्मचारी अपने दायित्व के अतिरिक्त समस्त
 अन्य प्रकार कि व्यवसायिक गतिविधियों में लिप्त है 
न तो सही प्रकार से सौपे गये दायित्व का निर्वहन पा रहे है 
और न ही सही प्रकार से व्यवसाय करने कि स्थिति मे है
 यही अवस्था गृहणियों कि है
 किसी भी परिवार मे समन्यव और शान्ति का 
आधार रहने वाली गृहणियां ही अशांति का पर्याय हो चुकी है 
फ़िर हम कैसे कहे कि कर्म ही पूजा है 
कर्म को पूजा कहने के पहले हमे अपने -अपने 
कर्म को समझना होगा
कर्म को पूजा कहना बहुत आसान है 
परन्तु पूजित कर्म कर पाना अत्यंत कठिन है