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Saturday, March 19, 2016

मनुष्यता के मापदंड

कोई भी व्यक्ति तब तक मनुष्य कहलाने योग्य नहीं होता जब तक उसमें शास्त्रों में बताए गये सात गुणों का अभाव हो वह सात गुण है
विद्या - विद्या से आशय किताबी ज्ञान , डिग्रीयों के बडंल या रटंत विद्या से नहीं अपितु उस विद्या से है जो व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करने वाली हो उसे सत-असत का बोध कराती हो उसे राष्ट्र -समाज का आदर्श नागरिक बनाती हो जो उसे अपने ही परिवार  का उत्तम सदस्य बनाती हो सारत: विद्या वह है जो व्यक्ति को मनुष्य बनाती हो
तप - दूसरा गुण है तप यहाँ तप से मतलब हिमालय कि किसी कन्दरा या गहन वन मे एक टांग पर खड़े होकर किये जाने वाले तप से नहीं हे अपितु मनुष्य द्वारा समाज जीवन में किये गए उसके पुरुषार्थ से है पुरुषार्थी पुरूष का हर कर्म स्वत: में ही तप हे चाहे वो कर्म  राष्ट्र के लिए हो समाज के लिए अथवा परिवार  की उन्नति के लिए किया गया हो  पुरुषार्थी व्यक्ति का हर कर्म तप ही होता हे बस उसमें  "में " की भावना का का पूर्ण रूप से अभाव होना चाहिए
दान - किसी भिखारी को जेब में शेष रह गयी रेंजगारी दे देना अथवा पुण्य के स्वार्थ में किया गया कोई एेसा दान जो सतही हो दान नही है , प्रतिकर  की  भावना से किया गया दान दान हो ही नहीं सकता
दान की परिभाषा तो बहुत व्यापक होती है दान का महत्व तभी है जब दाता को उस सम्बधित दान की उतनी ही अधिक आवश्यकता हो जितनी की दान लेने वाले को हे सारत: दान वह है जो प्रतिकर ,स्वार्थ रहित हो तथा जो दाता के लिए उतना ही महत्व रखता हो जितना की वह अदाता के लिए महत्वपूर्ण है  जो स्वयं कष्ट पाकर भी परहित के लिए किया गया हो वही दान व्यक्ति को मनुष्य बनाती है
                                               शेष भाग .........