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Tuesday, December 10, 2013

वैचारिक दीवारो में कैद व्यक्ति

जितने व्यक्ति विश्व में भौतिक दीवारो में कैद नहीं है 
उससे कई गुना व्यक्ति वैचारिक दीवारो में कैद है 
व्यक्ति स्वयम द्वारा रची गई वैचारिक दायरे के बाहर 
न तो निकलना चाहता है 
और नहीं कुछ देखना चाहता है 
इसलिए ऐसे व्यक्तियो का चिंतन स्वस्थ  कैसे रह सकता है 
व्यक्ति यदि वैचारिक दृष्टि से कैद रहे तो 
उसका दृष्टिकोण अत्यंत संकुचित रहता है 
वैचारिक कैद से मुक्त होना प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है 
स्वयम के मत को ही सही मान लेना 
अन्य के विचारो को नहीं सुनना 
व्यक्ति में पूर्वाग्रह और दुराग्रह का कारण है 
जीवन में नए और ताजे विचारो को पाने का यत्न करना 
स्वयम के व्यक्तित्व को सवारने हेतु उपयोगी होता है 
विश्व में महानतम व्यक्तियो कि जीवनियों कि ओर 
  जब  हम दृष्टि पात करते है 
तो उन्होंने अपने विरोधियो के विचारो को भी 
ध्यान से और धैर्य से सुना  है
सभी प्रकार के धर्मो संस्कृतियों सिद्धांतो के साहित्य को पढ़ा  है 
उन्होंने ही नित नए विचारो को पाया है 
और नया ही कुछ गढ़ा  है
 वैचारिक उदारता का तात्पर्य यह नहीं कि 
 हम दिशाहीन हो जाए 
हमारी मौलिकता ही समाप्त हो जाए 
वैचारिक उदारता हमारी इसी में है कि 
हमारे जीवन में चिंतन में नवीन विचार अंकुरित होते रहे
 किसी भी विषय पर सभी दृष्टिकोण से देखे परखे 
इस प्रक्रिया में हम यह पायेगे कि 
हम जिस निष्कर्ष पर पहुचे है वह बिलकुल सही है 
वह सभी मापदंडो के अनुरूप है