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Monday, February 11, 2013

शिष्टाचार और आत्मीयता


शिष्टाचार और आत्मीयता दोनों में बहुत भिन्नता है
आत्मीयता में दिखावा नहीं अपनापन होता है
जबकि शिष्टाचार कृत्रिम आवरण को ओढे मानवीय आचरण होता है
शिष्टाचार में औपचारिकताये अधिक होती है
संबोधन भले ही सम्मान जनक हो
पर दिलो में दूरिया दर्शाते है
वर्तमान में रिश्तो में आत्मीयता का स्थान
औपचारिकताओं ने ले लिया है
व्यवहार कुशलता का छद्म आवरण व्यक्ति की कुटिलता को छुपा लेता है
पर स्वभाव में स्वाभाविक सहजता सरलता
आत्मीयता को छुपा नहीं सकती
वह तो कभी गोकुल की गोपियों की तरह
तो कन्हैया की मैया यशोदा की तरह
भावनाओं का मीठी मिश्री और मख्खन की अनुभूति करा ही देती है
जब नदियों पर बढे -बढे घाट बने
 नदियों से हमारे आत्मीय सम्बन्ध समाप्त हो चुके है
घाट पर कर्म काण्ड अनुष्ठान हो सकते है
परन्तु नदी के कल कल बहते जल का ममत्व तो
निर्मल तटों से ही प्राप्त हो सकता है
हमें शिष्टाचार के घाटो से पुन आत्मीयता के तटों की और लौटना होगा
तभी हम रिश्तो के भीतर नदी के कल कल प्रवाह की तरह चलते और पलते
दुःख और सुख की अनुभूति कर पायेगे