ईश्वरीय शक्तियों की अनुभूतियाँ
एवं उनका साक्षात्कार किन व्यक्तियों को होता है
परम सत्ता के अनुभव और उसका सामीप्य पाने के लिए
व्यक्ति कितने ही मंत्रो यंत्रो और अनुष्ठानो गुरुओ का आश्रय लेता है फिर वह सर्व शक्तिमान के आशीष से वंचित ही रहता है
वह कौनसा मार्ग है
जो परम सत्ता के अस्तित्व की अनुभूति करवाता है
इस विषय पर यह आवश्यक हो जाता है
ईश साधना के पूर्व व्यक्ति मन कर्म वचन से एक हो जाए
अर्थात मन में जो संकल्प हो विचार हो
वह ही वचन के रूप जिव्हा पर शब्द रूप में हो
जो वचन हो वह ही कर्म के रूप में परिणित हो
जिस व्यक्ति के मन कर्म वचन में भेद नहीं होता
उस व्यक्ति की क्षणिक साधना ही
उस व्यक्ति को ईश्वरीय अनुभूतियो से परिचित करा देती है
मन शिव स्वरूप है वचन ब्रह्म स्वरूप है
तथा कर्म विष्णु स्वरूप है
उल्लेखनीय है की त्रिदेवो के कार्य भले ही भिन्न हो
परन्तु उनके बीच कभी भी मतभेद नहीं होते
समय के अनुसार त्रिदेव अपनी अपनी भूमिका को
बेहतर और सर्वोत्त्कृष्ट पध्दति से क्रिवान्वित करते है
व्यक्ति जब मन वचन और में भेद रखता है
तो ऐसा व्यक्ति दोगला कहलाता है
दोगले व्यक्ति का मुल्य कौड़ी का नहीं रहता
ऐसे व्यक्ति पर जब संसार सांसारिक लोग विशवास नहीं करते है
तो भला ईश्वर कैसे विशवास कर सकता है