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Friday, June 7, 2013

मन कर्म वचन

ईश्वरीय शक्तियों की अनुभूतियाँ 
एवं उनका साक्षात्कार किन व्यक्तियों को होता है 
परम सत्ता के अनुभव और उसका सामीप्य पाने के लिए
 व्यक्ति कितने ही मंत्रो यंत्रो और अनुष्ठानो गुरुओ का आश्रय लेता है फिर वह सर्व शक्तिमान के आशीष से वंचित ही रहता है
 वह कौनसा मार्ग है 
जो परम सत्ता के अस्तित्व की अनुभूति करवाता है 
इस विषय पर यह आवश्यक हो जाता है 
ईश साधना के पूर्व व्यक्ति मन कर्म वचन से एक हो जाए 
अर्थात मन में जो संकल्प हो विचार हो 
वह ही वचन के रूप जिव्हा पर शब्द रूप में हो 
जो वचन हो वह ही कर्म के रूप में परिणित हो
 जिस व्यक्ति के मन कर्म वचन में भेद नहीं होता
 उस व्यक्ति की क्षणिक साधना ही 
उस व्यक्ति को  ईश्वरीय अनुभूतियो से परिचित करा देती है
 मन शिव स्वरूप है वचन ब्रह्म स्वरूप है 
तथा कर्म विष्णु स्वरूप है
उल्लेखनीय है की  त्रिदेवो के कार्य भले ही भिन्न हो 
परन्तु उनके बीच कभी भी मतभेद नहीं होते 
समय के अनुसार त्रिदेव अपनी अपनी भूमिका को 
बेहतर और सर्वोत्त्कृष्ट पध्दति से क्रिवान्वित करते है
 व्यक्ति जब मन वचन और में भेद रखता है 
तो ऐसा व्यक्ति दोगला कहलाता है 
दोगले व्यक्ति का मुल्य कौड़ी का नहीं रहता 
ऐसे व्यक्ति पर जब संसार सांसारिक लोग विशवास  नहीं करते है
 तो भला ईश्वर  कैसे विशवास कर सकता है