धर्मो रक्षति रक्षित: अर्थात हम धर्म की रक्षा करते है
तो धर्म हमारी रक्षा करता है
धर्म क्या है ? धारयेती इति धर्म
अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म है
धर्म को जीवन पध्दति भी कहा जाता है
आशय यह है कि धर्म केवल पूजा पध्दति नहीं
धर्म आचरण की विषय वस्तु है
व्यक्ति हो परिवार हो समाज हो देश हो
आचरण के भ्रष्ट हो जाने से ही पतन होता है
जिस व्यक्ति का आचरण उत्कृष्ट होता है
वह उतना ही सुरक्षित होता है
समुन्नत होता है
जिस समाज और परिवार में दुराचरण और
व्याभिचार जिस मात्रा में व्याप्त होता है
वह व्यक्ति, परिवार ,और समाज उतना ही असुरक्षित है
वहा अपराध और अराजकता उसी अनुपात में विद्यमान रहता है
धर्म में नैतिक बल रहता है
बाहुबल की अपेक्षा नैतिक बल अधिक शक्तिशाली होता है
बाहुबल से व्यक्ति मात्र शारीरिक सामर्थ्य परिलक्षित होता है
व्यक्ति समाज और देश का सम्पूर्ण सामर्थ्य
नैतिकता में निहित होता है
चरित्रवान नागरिको के दम पर कई ऐसे देश है
जो अल्प समय में शक्ति सम्पन्न हो चुके है
जो किसी विशेष पूजा पध्दति नहीं जुड़े है