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Tuesday, January 3, 2012

त्रिजटा

त्रिजटा रामायण की वह पात्र है 
जिसको मात्र अशोक वाटिका में माता सीता को सांत्वना देने के लिए जाना जाता है किन्तु क्या कभी यह सोचा गया है की त्रिजटा का यह कार्य कितना महान था  
त्रिजटा ने सीता जी को सांत्वना देते समय जो उनका सामीप्य प्राप्त किया था क्या वह किसी भी देवी साधक के लिए सुलभ था
सीता जो अच्छाई की प्रतिक थी वह चारो और बुराई की प्रतिक लंका निवासियों अर्थात राक्षसों से घिरी हुई थी
वहा मात्र त्रिजटा द्वारा उन्हें मनोबल दिया जाने का महत्व वही व्यक्ति जान सकता है
जो चारो और धूर्तो एवम दुष्टों से घिरा हुआ हो वहा उसे कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाय जो अच्छाई को बल प्रदान करे 
तब उस व्यक्ति को ऐसा प्रतीत होता है मानो विशाल मरुथल में एक बूँद आशा का जल मिल गया है 
हम बहुत से ऐसे लोगो को जानते है जो ईशवर की आराधना में अत्यधिक समय व्यतीत करते है 
त्रिजटा न तो कोई बहुत बड़ी भक्त थी और नहीं ज्यादा पूजा पाठ में रूचि रखती थी
परन्तु उसके द्वारा माता सीता को बुरे वक्त में दी गई सांत्वना भक्ति तथा साधना से श्रेष्ठ ही थी
जब सभी और बुराइयों का साम्राज्य हो तब कोई व्यक्ति किसी अच्छे विचार या व्यक्ति का समर्थन करे उसे बल प्रदान करे महत्त्व इसी  तथ्य का होता है 
यह कार्य पूजा पाठ एवम ईश आराधना से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है 
यही कार्य पवन पुत्र हनुमान ने भी सुग्रीव को बुरे वक्त में सांत्वना देते समय किया था तथा भगवान कृष्ण ने वनवासी पांडवो के साथ किया था 
इसका तात्पर्य यह है की जो व्यक्ति अच्छाई का साथ दे अच्छे व्यक्ति को बुरे वक्त में मनोबल प्रदान करे उस पुनीत कार्य का मूल्यांकन भक्ति एवम पूजा से नहीं किया जा सकता ऐसा कार्य स्वयम में ईष्ट की साधना होती है क्योकि सज्जनों में ईश्वर का वास होता है