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Sunday, January 27, 2013

भगवान् सत्यनारायण


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कोई विषय , समस्या हो या 
किसी प्रकार का वाद -विवाद हो
 समग्र एवं निष्पक्ष दृष्टिकोण आवश्यक है
कभी भी एक पक्षीय सोच कर
किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है
समस्त प्रकार के आग्रहों पूर्वाग्रहों दुराग्रहो से परे हो कर
सर्वप्रथम विषय विवाद का अध्ययन किया जाना होता है
कोई भी विषय या विवाद हो
जब हम उसे किसी एक दिशा या एक पहलू से देखते है
तो हमें एक समस्या विषय या विवाद का एक पक्ष समझ आता है
जब हम सभी दिशाओं से सभी पहलुओ से समग्र विषय को
समझ कर निष्पक्ष रूप से तथ्यों का मूल्यांकन कर
निष्कर्ष पर पहुँचते है तो इस प्रक्रिया को
न्याय प्रक्रिया कहा जाता है
न्याय दान न्यायालय का कार्य है
परन्तु उक्त प्रक्रिया का जीवन में समग्र रूप से 
पालन किये जाने पर
हम स्वयं को विवादों से परे रख पाते है
समस्याओं के सही समाधान सुझा सकते है
कूप मंडूक मानसिकता से ग्रस्त व्यक्ति
कभी भी न्याय दृष्टि से संपन्न नहीं हो सकता
कभी भी ऐसे व्यक्ति से कोई व्यक्ति समाधान की
अपेक्षा नहीं कर सकता है
न्याय प्रक्रिया क्या है ?
सत्य के अनुसंधान अन्वेषण ,विचारण ,की क्रिया को
न्याय प्रक्रिया कहा जाता है
विचारों से सभी आयाम चिंतन की समस्त दिशाओं के
झरोखे खोल कर रखने से
हमें सत्य को परखने को दृष्टि प्राप्त होती है
जब हम सत्य के निकट पहुच जाते है
तो भगवान् सत्यनारायण रूपी ईश्वरीय सत्ता से साक्षात्कार होता है