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Saturday, December 8, 2012

वयम पंचाधिक शतकम

 

निकट सम्बन्धो मे सौहार्दता विकास का प्रमुख अाधार है
व्यक्ति समाज या देश हो या चहुमुखी विकास तभी सम्भव है
जबकि हम अपने निकटवर्ती सम्बन्धो मे जटिलताये ,समस्याये ,उत्पन्न न होने दे
जब हम देश की बात करते है तो विकास की दौड मे वे देश अत्यन्त पिछडे हुये है
जिनके निकटस्थ देशो से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नही है
परिवारो की बात करे तो परिवार विखण्डित हो रहे है
देश भिन्न धर्मो ,क्षैत्रो मे,धर्म अौर क्षैत्र जातीयो प्रजातियो मे
समाज समूहो मे विभाजित हो रहे है
कही भी कोई सहमति के बिन्दु तलाशे नही जा रहे है
असहमतियो ,अाशंकाअो , ने हमारे चिन्तन को जकड लिया है
सकारात्मक सोच से हम समाधान प्राप्त करने मे रूचि नही रख
अपनीरचनात्मकता को दिशा नही दे पाये है
ऐसे परिवार जिनमे परस्पर विवाद नही है
वे प्रगति की दौड मे बहुत अागे हो चुके है
जिन देशो के अपने निकटवर्ती देशो से सीमाअो के विवाद है
नदीयो के जल के बॅटवारो के बारे मे कोई सहमति नही है
वे प्रगति की पायदान मे बहुत नीचे है
विकसित देश अमेरिका ,इग्लैंड,फ्रांस ,रूस इत्यादी
शक्तिशाली देशो के अपने पडोसी देशो से
सीमाअो के सम्बन्ध मे या तो कोई विवाद नही है
यदि विवाद होंगे तो भी उनकी तीव्रता सीमा से अधिक नही है
अाज हमारे देश के सीमा विवाद इतने अधिक है
कि देश की अर्थव्यवस्था का अधिकतम बजट
सुरक्षा पर खर्च हो जाता है
पारिवारिक द्रष्टि से भी ऐसा परिवार
जिसमे परस्पर निकट सम्बन्धो मे विवाद हो
उत्थान नही कर पाता है
सामजिक वैमनस्यता का भाव
किसी समाज को विकास को दुष्प्रभावित करता है
परिवार के वरिष्ठ सदस्य से हमेशा यह अपेक्षा की जाती है कि
वह बडप्पन दिखाये
ह्रदय का छोटापन वह छोटे सदस्यो के लिये छोड दे
महाभारत मे द्रष्टान्त अाता है कि
जब दुर्योधन को गन्धर्व राज बन्दी बना कर ले जाने
लगे तो पान्डवो ने प्रतिरोध किया था
उन्होने दुर्योधन का साथ दिया था
तर्क यह दिया था परिवारिक विवाद अपने स्थान पर है
जब कोई बाहरी व्यक्ति अाघात करेगा तो हम एक है
अर्थात वयम पंचाधिक शतकम