मर्यादा वह गुण हैं
जो व्यक्ति के अन्य गुणों को सही दिशा देता हैं
व्यक्ति की कार्यक्षमता में विस्तार करता हैं
व्यक्ति को अहंकार भावना से परे रखता है
नारी को लज्जा रूपी आभूषण प्रदान करता है
वीरों को जितेन्द्रिय बनता हैं
रामायण महाग्रंथ मर्यादाग्रंथ कहा जा सकता है
रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में
श्रीराम को संबोधित किया गया है
जहाँ महाभारतकाल में भगवान् विष्णु के अंश श्रीकृष्ण ने स्वयं को ईश्वर प्रमाणित किया है
वहीं पर रामायण में श्रीराम ने हर क्षण स्वयं को मानव प्रमाणित करने का प्रयास किया है
श्रीराम के साथ रामायण में उनके अनुज भरत, लक्ष्मण उनके सेवक श्रीहनुमान ने भी जहाँ कहीं भी प्रसंग आये मर्यादा निभाई हैं उदाहरणार्थ
सीताजी की खोज के समय श्रीहनुमान द्वारा निभाई गयी मर्यादा उल्लेखनीय है
हनुमान जी द्वारा प्रभु के आदेशानुसार
समुंद्र लांघ कर मात्र अशोक वाटिका में सीताजी की खोज कर उन्हें श्रीराम जी के सन्देश से अवगत कराया
श्रीहनुमान जी यदि चाहते तो मर्यादा का उल्लंघन कर
सीताजी की खोज होने के पश्चात
स्वयं सीताजी को लेकर श्रीरामजी के पास ले आते
ऐसी स्थिति में श्रीराम और रावण के मध्य युद्ध भी नहीं होता
और लंका में भारी विध्वंस से बच जाती
हनुमानजी ने सामाजिक मर्यादा का भी पालन किया
बालि के वध हेतु श्रीराम की प्रतीक्षा की
हनुमानजी यदि चाहते तो वे इतने सामर्थ्यवान थे कि वे स्वयं बालि को काल के गाल में पहुँचा सकते थे
किन्तु वे ऐसा करते तो उन्हें विभीषण की भाँति कुलघाती के रूप में याद रखा जाता
माता सीता ने जीवनभर मर्यादा का पालन किया
किन्तु मात्र लक्ष्मण रेखा रूपी मर्यादा का उल्लंघन किये जाने का दुष्परिणाम उन्हें जो झेलना पड़ा
यह सर्वविदित है
श्रीराम ने भगवान् विष्णु के अवतार होने के बावजूद
कभी भी विशिष्ट होने का भाव कभी भी ह्रदय में नहीं रखा
जबकि वर्तमान में कोई भी व्यक्ति विशिष्ट पद धारण करने के पश्चात निरंतर उस पद के अहं भाव में रहकर विशिष्ट सुविधाओं की आकांक्षा रखता है
इसका तात्पर्य यह है कि जीवन में वृहद लक्ष्य प्राप्त करना हो तो जीवन में मर्यादा होना अत्यंत आवश्यक हैं
नारी के सभी गुण मर्यादा के बिना निरर्थक है
रिश्तों में भी मर्यादा आवश्यक है
प्रत्येक व्यक्ति के कार्यव्यवहार एवं आचरण में मर्यादा परिलक्षित होनी चाहिए मर्यादा जीवन प्रबंधन का प्रभावशाली सूत्र हैं
जो व्यक्ति के अन्य गुणों को सही दिशा देता हैं
व्यक्ति की कार्यक्षमता में विस्तार करता हैं
व्यक्ति को अहंकार भावना से परे रखता है
नारी को लज्जा रूपी आभूषण प्रदान करता है
वीरों को जितेन्द्रिय बनता हैं
रामायण महाग्रंथ मर्यादाग्रंथ कहा जा सकता है
रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में
श्रीराम को संबोधित किया गया है
जहाँ महाभारतकाल में भगवान् विष्णु के अंश श्रीकृष्ण ने स्वयं को ईश्वर प्रमाणित किया है
वहीं पर रामायण में श्रीराम ने हर क्षण स्वयं को मानव प्रमाणित करने का प्रयास किया है
श्रीराम के साथ रामायण में उनके अनुज भरत, लक्ष्मण उनके सेवक श्रीहनुमान ने भी जहाँ कहीं भी प्रसंग आये मर्यादा निभाई हैं उदाहरणार्थ
सीताजी की खोज के समय श्रीहनुमान द्वारा निभाई गयी मर्यादा उल्लेखनीय है
हनुमान जी द्वारा प्रभु के आदेशानुसार
समुंद्र लांघ कर मात्र अशोक वाटिका में सीताजी की खोज कर उन्हें श्रीराम जी के सन्देश से अवगत कराया
श्रीहनुमान जी यदि चाहते तो मर्यादा का उल्लंघन कर
सीताजी की खोज होने के पश्चात
स्वयं सीताजी को लेकर श्रीरामजी के पास ले आते
ऐसी स्थिति में श्रीराम और रावण के मध्य युद्ध भी नहीं होता
और लंका में भारी विध्वंस से बच जाती
हनुमानजी ने सामाजिक मर्यादा का भी पालन किया
बालि के वध हेतु श्रीराम की प्रतीक्षा की
हनुमानजी यदि चाहते तो वे इतने सामर्थ्यवान थे कि वे स्वयं बालि को काल के गाल में पहुँचा सकते थे
किन्तु वे ऐसा करते तो उन्हें विभीषण की भाँति कुलघाती के रूप में याद रखा जाता
माता सीता ने जीवनभर मर्यादा का पालन किया
किन्तु मात्र लक्ष्मण रेखा रूपी मर्यादा का उल्लंघन किये जाने का दुष्परिणाम उन्हें जो झेलना पड़ा
यह सर्वविदित है
श्रीराम ने भगवान् विष्णु के अवतार होने के बावजूद
कभी भी विशिष्ट होने का भाव कभी भी ह्रदय में नहीं रखा
जबकि वर्तमान में कोई भी व्यक्ति विशिष्ट पद धारण करने के पश्चात निरंतर उस पद के अहं भाव में रहकर विशिष्ट सुविधाओं की आकांक्षा रखता है
इसका तात्पर्य यह है कि जीवन में वृहद लक्ष्य प्राप्त करना हो तो जीवन में मर्यादा होना अत्यंत आवश्यक हैं
नारी के सभी गुण मर्यादा के बिना निरर्थक है
रिश्तों में भी मर्यादा आवश्यक है
प्रत्येक व्यक्ति के कार्यव्यवहार एवं आचरण में मर्यादा परिलक्षित होनी चाहिए मर्यादा जीवन प्रबंधन का प्रभावशाली सूत्र हैं